लग्जरी हाउसबोट विशाल और मजबूत होते हैं। आप इन्हें ऑनलाइन भी बुक कर सकते हैं। हाउसबोट पर ही सैलानियों को केरल के पारम्परिक स्वाद चखने का मौका भी मिलता है। यह सब आपके पैकेज में शामिल होता है। जब लॉर्ड कर्जन ने इस रमणीक स्थान को देखा तो इसे पूरब का वेनिस नाम दिया। यह जगह कभी व्यापार का बड़ा केंद्र हुआ करती थी। इसका प्रमाण यहां के बीच पर बना खूबसूरत लाइट हाउस है। यह दक्षिणी पश्चिमी तट का सबसे प्राचीन लाइट हाउस है। कहते हैं इसकी नींव त्रावणकोर के राजा मार्थंड वर्मा के शासनकाल के दौरान 1860 में तत्कालीन बंदरगाह अधिकारी ह्यूग क्रॉफर्ड की पत्नी ह्यू क्रॉफर्ड ने रखी थी। इसका निर्माण लगभग दो वर्षों में पूरा हुआ। लाइटहाउस की रोशनी पहली बार 28 मार्च, 1862 को प्रकाशित की गई थी। तब उसमें नारियल के तेल से नौ बड़े दीपक जलाए जाते थे। मेटल रिफ्लेक्टर से जब यह रोशनी फेंकी जाती थी तो 17 नॉटिकल माइल्स तक समुद्री जहाजों को रास्ता दिखाती थी। इसे अब सैलानियों के लिए दोपहर 3 बजे से 5 बजे तक खोला जाता है। यहां एक पार्क, संग्रहालय और सोवेनियर शॉप भी है।
अलप्पुझा का दूसरा मुख्य आकर्षण है समुद्री किनारा- अलप्पुझा बीच। यहां से अरब सागर का सबसे खूबसूरत दृश्य देखा जा सकता है। सुनहरी रेत के कणों से अठखेलियां करता नीला समुद्र का पानी मखमली सर्फ बनाता हुआ एक जादुई समां दिखाता है। एक शांत बीच जिसका सूर्यास्त आपको हमेशा हमेशा के लिए याद रह जाएगा। जहां अलप्पुझा बीच शाम को एक खूबसूरत सूर्यास्त का गवाह बनता है, वहीं सुबह से लेकर दिन भर यह बीच सर्फिंग जैसे एडवेंचर स्पोट्र्स के लिए जाना जाता है। यदि आप भी समुद्र की लहरों से दो-दो हाथ करना चाहते हैं तो थोटापल्ली बीच आपके लिए सबसे उपयुक्त स्थान है। यहां लहरों की ऊंचाई छह से आठ फुट तक होती है। अलप्पुझा के प्राकृतिक सौंदर्य को अनुभव करने के कई तरीके हैं। लेकिन आप अगर प्रकृति के और भी नजदीक जाना चाहते हैं तो उसके लिए आपको थोड़ा और गहराई में जाना होगा जिसके लिए कयाकिंग एक अच्छा विकल्प है। यहां प्रोफेशनल तरीके से कयाकिंग उपलब्ध करवाई जाती है। बैकवाटर्स में बसे गांवों, खेतों और जीवन को नजदीक से देखने के लिए कयाकिंग एक जबरदस्त एडवेंचर है।
अलप्पुझा में इंटरनेशनल कॉयर संग्रहालय देखना न भूलें। भारत की पहली जूट फैक्ट्री यहीं लगाई गई थी। अंबलपूजा श्री कृष्णा मंदिर यहां का एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसका निर्माण पंद्रह से सत्रहवीं शताब्दी के दौरान करवाया गया था। इसके अलावा कुमारकोम पक्षी अभयारण्य में बर्ड वाचिंग टूर भी कर सकते हैं।