भारत में सरकारों द्वारा नि:शुल्क इलाज के दावे किए जाते हैं परन्तु जमीनी हकीकत इससे इतर है। प्रश्न उठता है कि कैसे उस आधारभूत ढांचे का निर्माण किया जाए जिससे कि देश के स्वास्थ्य मानचित्र में परिवर्तन आए। आज जब हम अस्वस्थ भारत की बात करते हैं तो यकीनन हमारी संपूर्ण दृष्टि पश्चिमी चिकित्सा पद्धति पर टिकी होती है। इससे इतर हमें उस ओर दृष्टि करनी होगी जो भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ी हुई है। इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि देश की मूल चिकित्सा पद्धति अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है।
सरकारी स्तर पर जब भी कोई चिकित्सा सुधार योजना बनती है तो उसमें आधुनिक चिकित्सा सुधार के लिए तो भारी-भरकम बजट का प्रावधान होता है पर भारत की अपनी पद्धति आयुर्वेद में सुधार के लिए शायद ही कोई ठोस उपाय किया जाता हो। आयुष पद्धति के अधिकांश चिकित्सक अब भी ग्रामीण और छोटे शहरों में लोगों की सेवा कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों में विशेष रोग के इलाज की बजाय प्रकृति को ही एक अंग समझकर मरीज का उपचार किया जाता है।
वे देश जो एलोपैथिक के पुराने पैरोकार हैं वह भी विविध प्रकार के प्राकृतिक इलाज की ओर रुख कर रहे हैं। जबकि आयुर्वेद जैसी चिकित्सा पद्धति के प्रति हमारी उदासीनता बनी हुई है। विश्व का एक बड़ा तबका वैकल्पिक चिकित्सा की ओर न केवल बढ़ रहा है बल्कि उसके विस्तार के लिए एक नवीन धरातल भी तैयार कर रहा है। भारत जैसे विशाल देश में, जहां की लगभग सत्तर प्रतिशत जनसंख्या आज भी गांवों में निवास करती है, वैकल्पिक चिकित्सा का ज्ञान, स्वस्थ्य भारत की पृष्ठभूमि निर्मित कर सकता है। भारत में मुख्यधारा से जुड़ी चिकित्सा प्रणाली के ढांचागत सुधार सहजता से होना संभव नहीं है, ऐसे में वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति, स्वस्थ भारत के स्वप्न को साकार करने में यकीनन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। आवश्यकता है अपनी परम्पराओं को पहचानने एवं स्वीकारने की।