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राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के लिए बनानी होगी कार्ययोजना, लेना होगा सबका साथ

मोदी गठबंधन की कमजोरियों के साथ भी अपने नेतृत्व में अगले पांच साल तक राष्ट्र की सेवा करते रहेंगे। उन्होंने भारत को वैश्विक शक्ति बनाने के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का संकल्प दिखाया है। इस पृष्ठभूमि में, विपक्ष को रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए , यही देश की जनता के हित में होगा।

जयपुरJun 10, 2024 / 02:59 pm

Gyan Chand Patni

के.एस. तोमर
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक
नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ग्रहण कर ली है। उनके नेतृत्व वाली नई राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार के सामने चुनौती भरे अनेक ऐसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दे हैं जिन पर तत्काल ध्यान देने और इन मुद्दों से निपटने के लिए रणनीति एवं कार्ययोजना बनाने की आवश्यकता होगी। मोदी का लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनना एक उपलब्धि है। ऐसी उपलब्धि जो अब तक सिर्फ जवाहर लाल नेहरू के नाम दर्ज थी। नेहरू की कांग्रेस ने 1962 में 44.7 फीसदी वोटों के साथ 494 सीटों में से 361 पर विजयश्री हासिल की थी। इसके विपरीत नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा को लोकसभा की कुल 543 सीटों में से भाजपा को 240 सीटें मिलीं। भाजपा की अगुवाई वाला राजग गठबंधन 293 सीटों के साथ सबसे बड़े गठबंधन के रूप में सामने आया है। भाजपा, टीडीपी और अन्य गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर है, जबकि नेहरू ने ऐसे किसी गठबंधन के बिना ही अपने बलबूते बहुत मजबूत स्थिति दर्ज कराई थी। ब्रिटेन में भी, मार्गरेट थैचर और टोनी ब्लेयर जैसे नेता भी तीन कार्यकाल पूर्ण करने में सफल रहे हैं।
वैसे गठबंधन का परिदृश्य भारत के लिए कोई नई बात नहीं है। हालांकि, बहुमत से दूर गठबंधन सरकारों के लिए सरकार चलाना चुनौतीभरा होता है।सीटों के कम होने से गठबंधन सहयोगियों की सौदेबाजी करने की ताकत बढ़ जाती है जिससे शासन करना और नीतियों का कार्यान्वयन जटिल हो जाता है। नई सरकार के समक्ष आने वाली चुनौतियों की बात की जाए तो मोदी को गठबंधन सहयोगियों को संभालने के लिए अपने राजनीतिक करियर में सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व वाली तेलुगु देशम पार्टी और नीतीश कुमार की जेडी (यू) ‘किंग मेकर’ के रूप में उभरी हैं। इन नेताओं के मूड को लेकर पांच साल तक आशंका बनी रहेगी। भाजपा के पास अपेक्षित बहुमत नहीं होने से वह टीडीपी और जेडी (यू) की बैसाखियों पर टिकी होगी, ये दोनों दल सौदेबाजी करने के लिए अपने पैर फैलाते रहेंगे। ऐसे में पीएम मोदी के सामने अपनी कार्यशैली बदलने की बाध्यता होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम मोदी की पहचान आश्चर्यजनक काम करने वाले व्यक्ति के रूप में है। वे इस गठबंधन के बनाए रखने के लिए उलझाने वाले मुद्दों से निपट सकते हैं।
विपक्ष ने अग्निवीर योजना पर सवाल खड़े किए हैं जिसकी समीक्षा की जरूरत हो सकती है, खासकर ऐसी स्थिति में, जब कई सेवानिवृत्त जनरलों ने सेना के लिए उनकी दीर्घकालिक उपयोगिता को लेकर अपनी आशंका जताई हों। अग्निवीर योजना के मापदंडों में संशोधन के लिए पर नई सरकार को विपक्ष और सेवानिवृत्त सेना जनरलों के साथ चर्चा करनी चाहिए। विदेश नीति के मुद्दों को लिया जाए तो मालदीव, नेपाल जैसे पड़ोसी भारत से दूर हो गए हैं। इस पर मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि उनका रुख चीन की ओर हो गया है। चीन क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए उनका उपयोग कर रहा है। पाकिस्तान के साथ रिश्तों में राजनीतिक मुद्दों को एकतरफ रखते हुए भारत को व्यापार संबंध बनाने की पहल पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए। शरीफ बंधुओं को इससे कोई आपत्ति नहीं होगी। 2015 में मोदी नवाज शरीफ की नातिन की शादी में शामिल हुए थे लेकिन उनकी पहल को सेना ने विफल कर दिया था। क्षेत्र में चीन के विस्तार के मंसूबों को देखते हुए भारत को सतर्क निगाह रखने की जरूरत है।
पड़ोसियों को लेकर भारत की सतर्कता इसलिए भी जरूरी है क्योंकि मालदीव पहले ही चीन की गोद में जा चुका है और नेपाल ने भी आंखे तरेर रखी हैं। प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल, प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार, चीन के करीब चली गई है। नेपाल में भारतीय क्षेत्रों को अपना दर्शाने वाला नक्शा छापे जाने की अपमानजनक कार्रवाई से यह स्पष्ट है। भारत ने नए मानचित्र को खारिज करते हुए इस दुस्साहस पर आश्चर्य व्यक्त किया है। भारत और यूनाइटेड किंगडम के बीच एक व्यापार समझौता पहले से ही प्रगति पर है। नई सरकार को ब्रिटेन में चुनाव खत्म होने तक इंतजार करना होगा। भारत-ब्रिटेन के बीच मुक्त-व्यापार समझौते पर वार्ता का 14वां दौर बिना किसी प्रगति के रहा। वीजा, सामाजिक सुरक्षा और बाजार तक पहुंच पर विवाद हैं, जिन्हें निपटाने की जरूरत है। लंदन में नई सरकार बनने के बाद यह वार्ता वास्तविकता में बदल सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान के साथ हुए चाबहार पोर्ट समझौते को लेकर अमरीकी रुख के मद्देनजर भारत को संभल कर चलना होगा क्योंकि अमरीका ने चेतावनी दी है कि समझौता रद्द न किए जाने पर भारत पर पाबंदियां लगाई जा सकती हंै। समझौते के तहत इस बंदरगाह का प्रबंधन और नियंत्रण भारत के पास रहेगा। दिलचस्प तो यह है कि पूर्व में अमरीका ने भारत को छूट दी थी कि वह चाबहार बंदरगाह को तैयार कर सकता है। अमरीका ने उस समय कोई आपत्ति नहीं जताई थी जब भारत ने इस बंदरगाह का निर्माण शुरू किया था क्योंकि अफगानिस्तान पर कब्जे के कारण यह उसके अनुकूल था। लेकिन अब अमरीका अफगानिस्तान से हट गया है और उसकी इस बंदरगाह में कोई रुचि नहीं रह गई है। साथ ही, ईरान अमरीकी प्रतिबंधों का सामना कर रहा है। अमरीका, भारत सहित किसी भी मित्र राष्ट्र को ईरान के साथ किसी प्रकार का व्यापारिक संबंध रखने पर संभावित जोखिम के बारे में जागरूक होने की आवश्यकता जताता है।
पंजाब और पश्चिम बंगाल में अकेले चुनाव लडऩे का कांग्रेस का फैसला फायदेमंद रहा क्योंकि आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने सीधे तौर पर भगवा पार्टी के प्रदर्शन पर असर डाला। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को छह सीटों पर सफलता मिली है। कांग्रेस का पुनरुद्धार पार्टी कार्यकर्ताओं को फिर जीवंत करेगा जो सबसे पुरानी पार्टी के प्रदर्शन में लगातार गिरावट देख रहे थे। यूपी में अखिलेश यादव ‘सुपर हीरो’ के रूप में उभरे हैं क्योंकि उन्होंने सोशल इंजीनियरिंग करते हुए गैर यादवों को टिकट आवंटन में प्राथमिकता दी। अखिलेश-राहुल की ‘जोड़ी’ विजयी हुई। उधर मायावती हाशिए पर चली गईं। अंतिम आकलन यही, मोदी गठबंधन की कमजोरियों के साथ भी अपने नेतृत्व में अगले पांच साल तक राष्ट्र की सेवा करते रहेंगे। उन्होंने भारत को वैश्विक शक्ति बनाने के लिए आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का संकल्प दिखाया है। इस पृष्ठभूमि में, विपक्ष को रचनात्मक भूमिका निभानी चाहिए , यही देश की जनता के हित में होगा।

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