कोरोना का खतरनाक वैरिएंट ओमिक्रोन भारत पहुंच चुका है, जो ज्यादा खतरनाक और संक्रमण फैलाने वाला है। इससे बच्चों को ज्यादा खतरा है। सवाल यह है कि सरकारें क्या भयावह स्थिति होने का इंतजार कर रही हैं? क्या वे भयावह स्थिति होने पर ही एक्शन में आएंगी? बेहतर तो यह है कि स्कूल कॉलेजों को कुछ समय के लिए पहले की तरह बंद कर दिया जाए। जीवन रहेगा तो पढ़ाई भी देर-सवेर हो ही जाएगी।
-आशुतोष मोदी, सादुलपुर, चूरू
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राजनीतिक दल रैलियां और भीड़ इकट्ठा कर कोरोना गाइडलाइन की पालना नहीं कर रहे हैं, जिसकी कीमत कोरोना स्प्रेड के रूप में चुकानी पड़ रही है। कोरोना को रोकने के लिए भीड़ न होने दी जाए। राजनीतिक दल इसके विपरीत आचरण कर रहे हैं। भीड़ इक_ा करना खतरे को बुलावा देना है।
-बिहारी लाल बालान, लक्ष्मणगढ़, सीकर
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यह एक कड़वी सच्चाई है कि राजनीतिक दलों को जनता की परवाह नहीं है। सभी राजनीतिक दल केवल अपने हित का ही ध्यान रखते हैं। जनता भी इन दलों का साथ देती है। जयपुर में होने वाली रैलियां राजस्थान में कोरोना विस्फोट कर सकती हैं।
मनोज गोयल
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कोरोना के कारण बहुत नुकसान हो चुका है। फिर कोरोना संक्रमण तेजी से फैलने का खतरा मंडरा रहा है। इसके बावजूद राजनीतिक दल वर्चस्व में व्यस्त हैं। इस दौरान नेता कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाने से भी नहीं चूकते। यह वाकई चिंता की बात है।
-प्रदीप माथुर, अलवर
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नेताओं की प्राथमिकता चुनावों में जीत है। डब्ल्यूएचओ तथा अनेक विशेषज्ञों ने कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रोन को लेकर चिंता जताई है, लेकिन भारत के राजनीतिक दलों पर इसका कोई असर नहीं है। यही गलती पिछली कोरोना की लहर में भी हुई थी। इसके बाद कोरोना संक्रमण बहुत तेजी से फैला था। अनेक परिवारों ने असमय ही अपने परिजनों को खोया। पुन: वैसी स्थिति उत्पन्न न हो, इसके लिए सरकारों को पहले से ही प्रयासरत रहना चाहिए। कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन करवाया जाए।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
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आमजन से मतलब नहीं
राजनीतिक दल सियासत में लगे हुए हैं। उनको कोरोना की चिंता नहीं है, क्योंकि जब नेताओं को कोरोना होगा तो तत्काल वीआइपी उपचार मिल जाएगा। उन्हें जनता की नहीं, सिर्फ वोट की फिक्र है।
-लता अग्रवाल, चित्तौडग़ढ़
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कोरोना का संकट अभी गया नही है। यह बार-बार कोई रूप बदल कर आ रहा है। कोरोना को रोकने के लिए राजनीतिक दल अभी तक गंभीर नहीं हैं । ये सभी दल अपने अपने स्वार्थ की रोटियां सेकने में मशगूल हैं । इनको जनता की कोई भी फिक्र नहीं है। चुनाओं की रैलियों में हजारों आदमी भाग ले रहे हैं । रथ यात्राएं आयोजित की जा रही हैं । कोई भी जनता की परवाह नहीं कर रहा है। बेहतर तो यह है जनता राजनीतिक दलों के भरोसे न बैठे। स्वयं की सुरक्षा स्वयं करे और इस संकट से बचे।
-अरुण कुमार भट्ट, रावतभाटा
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राजनीतिक दलों की राजनीति के लिए भीड़ ही संजीवनी है। आए दिन वे आम सभाएं करते रहते हैं। कोरोना के ओमिक्रोन वैरिएंट ने भारत में दस्तक दे दी है। ऐसी स्थिति में तो राजनीतिक दलों को भीड़ को आमंत्रित नहीं करना चाहिए। राजनीतिक दलों को यह बात भली-भांति समझना चाहिए कि भारत में दूसरी लहर के दौरान तबाही मचाने वाले डेल्टा वैरिएंट की तुलना में ओमिक्रोन वैरिएंट ज्यादा संक्रामक है। बेहतर तो यह है कि राजनीतिक दल न कोई रैली करें और न ही सभा। वे लोगों को समझाएं कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, मास्क लगाएं एवं भीड़भाड़ की जगहों पर न जाएं।
-सतीश उपाध्याय , मनेंद्रगढ़ कोरिया , छत्तीसगढ
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राजनीतिक दल चुनाव जीतने की ही तिकड़म में व्यस्त रहते हैं। चुनाव हो जाने के बाद ही गंभीरता से ही उनका ध्यान कोरोना की तरफ जाता है। चुनावी रैलियों में बिना मास्क के आने वाले लोग नेताओं को नहीं दिखते।
-वीरेंद्र टेलर, चित्तौडग़ढ़