इस संबंध में ध्यान देने की बात यह है कि उच्चतम न्यायालय ने डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और योगेंद्र सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में गिरफ्तारी से संबंधित कानूनों की व्याख्या की है। सीआरपीसी की धारा 50(1) के तहत पुलिस को गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी का मूल कारण बताना होगा तथा ऐसे व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह अपनी गिरफ्तारी की जानकारी अपने परिवार या रिश्तेदार को दे सके। गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी को अपनी वर्दी में होना चाहिए और उसकी नेम प्लेट पर उसका नाम स्पष्ट लिखा होना चाहिए।
सीआरपीसी की धारा 41(ख) के अनुसार पुलिस को एक अरेस्ट मेमो तैयार करना होगा, जिसमें गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी की रैंक, गिरफ्तार करने का सही समय-तिथि और पुलिस अधिकारी के अतिरिक्त प्रत्यक्षदर्शी के भी दस्तखत होंगे। अरेस्ट मेमो में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति से भी हस्ताक्षर करवाना होगा। सीआरपीसी की धारा 54 स्पष्ट करती है कि यदि गिरफ्तार किया गया व्यक्ति मेडिकल जांच कराने की मांग करता है, तो पुलिस उसकी मेडिकल जांच कराएगी। मेडिकल जांच का फायदा यह होता है कि यदि गिरफ्तार व्यक्ति को कोई चोट नहीं है, तो मेडिकल जांच में इसकी पुष्टि हो जाएगी। अब यदि इसके बाद पुलिस कस्टडी में रहने के दौरान कोई चोट के निशान मिलते हैं, तो पुलिस के खिलाफ पक्का सबूत होगा। वैसे कानून के अनुसार गिरफ्तार व्यक्ति की प्रत्येक 48 घंटे के अंदर मेडिकल जांच होनी चाहिए।
सीआरपीसी की धारा 57 के तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं ले सकती है। यदि पुलिस किसी को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में रखना चाहती है, तो इसके लिए भी उसको मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी। सीआरपीसी की धारा 41(घ) के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को यह पूरा अधिकार होगा कि वह पुलिस जांच के दौरान कभी भी अपने पसंद के अधिवक्ता से मिल सकता है।
सीआरपीसी की धारा 55 (क) के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की सुरक्षा एवं सम्पूर्ण स्वास्थ्य का ध्यान रखना पुलिस की जिम्मेदारी है। यदि उपरोक्त किसी भी प्रावधान का पालन नहीं किया जाता, तो पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई संभव है।
(लेखक राजस्थान सरकार में अतिरिक्त महाधिवक्ता हैं)