बात छोटी ही है लेकिन इसमें सारे जीवन का निचोड़ भरा है। एक जोरदार किस्सा है। किसी नेक इंसान ने एक सपना देखा कि एक बादशाह तो जन्नत में बैठा है और एक फकीर दोजख यानी नर्क में।
उसने देवदूतों से पूछा कि बादशाह तो बेरहम होते हैं और फकीर नेकदिल। फिर बादशाह ने कौन-सा अच्छा काम किया कि जन्नत में आया और फकीर ने कौन-सा बुरा, जो इसे दोजख में पहुंचाया गया?
देवदूत बोला- यह बादशाह तो फकीरों में अकीदत (श्रद्धा) रखने की वजह से जन्नत में आया और यह फकीर बादशाहों के साथ रहने के वजह से नर्क में पहुंचा। बात में दम है। संतोष बड़ी चीज है। लेकिन संतोष करना तो न फकीरों के वश की बात है न योगियों के। सत्ता रानी के चंगुल में अच्छे-अच्छे योगी फंस कर भोगी हो जाते हैं।
अब एक किस्सा सुनें- एक बार एक फकीर बादशाह बन गया। उसके सिर पर ताज रखा गया और तमाम खजानों की चाबियां उसे दे दी गई। एक दिन उसका पुराना साथी उधर आ निकला और बोला- अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है कि तेरे नसीब ने जोर मारा और तू बादशाह बन गया। अब तेरे पैरों तले कांटे नहीं फूल हैं।
किसी ने ठीक ही कहा है कि मुसीबत के बाद सुख के दिन आते हैं। फकीर उदास होकर बोला- अरे भाई। मेरे संग हमदर्दी बरत। पहले मुझे सिर्फ एक रोटी की चिंता थी। अब दुनिया भर की है।
अगर दुनिया न मिले तो हम दुखी रहते हैं और मिल जाए तो भी दुखी हो जाते हैं। दरअसल इस दुनिया से बढ़कर कोई मुसीबत नहीं। यदि तुम सचमुच का बादशाह होना चाहता है तो संतोष कर। कबीर कहते हैं- चाह गयी चिन्ता गयी मनुआ बेपरवाह, जिनको कछु न चाहिए, वो शाहन के शाह।