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ओपिनियन

युद्ध के विरुद्ध

विभीषण और मंदोदरी रावण को समझाते रहे, राम से युद्ध न करें। लंकापति नहीं माना और उसे मरना पड़ा।

Mar 02, 2017 / 12:23 pm

विश्व इतिहास के सबसे घनघोर युद्ध को रोकने के लिए अपनी जान और अपने मान-सम्मान के नष्ट हो जाने का जोखिम उठा कर भी कृष्ण कौरवों को समझाने के लिए पांडवों का दूत बन कर हस्तिनापुर गए थे। संधि प्रस्ताव दुर्बुद्धि दुर्योधन ने नहीं माना। युद्ध हुआ। लाखों बेकसूर मरे। 
कुरुवंश का भविष्य समाप्त हो गया। विभीषण और मंदोदरी रावण को समझाते रहे, राम से युद्ध न करें। लंकापति नहीं माना और उसे मरना पड़ा। शहीद की बेटी गुरमेहर ने यही कहा था कि मेरे पिता को पाकिस्तान ने नहीं युद्ध ने मारा था। 
उस बहादुर युवती ने ‘युद्ध के विरुद्ध’ आवाज उठाई थी जो हर समझदार मनुष्य उठाता रहा है। लेकिन उसे मिला क्या? बलात्कार की धमकी। यही फासीवाद, यही तानाशाही है। भारत के प्रधानमंत्री, चाहे वह भूतपूर्व हो या अभूतपूर्व। 
दोनों पाकिस्तानी वजीरे आजम को बिरयानी खिलाते हैं बगैर निमंत्रण उसके घर पहुंच जाते हैं, तो सारे भक्त तालियां बजा कर जै-जै कार करने लगते हैं, वाह, क्या कूटनीति है हमारे नेता की! लेकिन घृणा की आग में अपने पिता को खो चुकी एक किशोरी सलीके से नफरत के खिलाफ कुछ कहती है तो वह हमारे देश के गृह राज्यमंत्री तक की नजरों में ‘राष्ट्रद्रोह’ का सबब बन जाती है। 
युद्ध के विरुद्ध तो बंसी बजाने वाले कन्हैया भी थे। उनके इस कृत्य को कोई गलत तो कहे। नफरत ने पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांट दिया। और, मजे की बात यह कि चार दिन सत्ता पाये लोग अब अपने अलावा सबको ‘राष्ट्रविरोधी’ सिद्ध करने में जुटे हैं। 
हे मर्यादा पुरुषोत्तम! इन्हें सद्बुद्धि दे। क्योंकि ये नहीं जानते कि शहीद की पुत्री का अपमान करके ये क्या कर रहे हैं। चाहे कोई हो या न हो पर हम ‘कृष्ण’ की तरह युद्ध के विरुद्ध हैं इसलिए गुरमेहर के साथ हैं। युद्ध स्वस्थ को विकलांग, बच्चे को अनाथ और सधवा को विधवा बनाता है। हां युद्ध से सत्ताधारियों को हमेशा लाभ हुआ है। यह अटल सत्य है।
व्यंग्य राही की कलम से 

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