हमें अभ्यास है। पहले अंग्रेजों के जूते खाते थे, बाद में आपके खाने लगे। फर्क कुछ खास नहीं हुआ। पहले ‘परदेसीÓ मारते थे अब ‘देसी’ मार रहे हैं। आप तो हुकुम करो। ‘जूता’ और ‘नेता’ दोनों भाई हैं मालिक।
दोनों में ‘ता’ है। यह ‘ता’ ही आपकी ताकत है क्योंकि ‘ता’ से ही बनती है ‘ताकत’। अगर कोई आपका ‘ता’ हटा दे तो आप पल भर भी ‘खस्सी’ हो जाएंगे। सच कहें हुजूर। हमें आपके ‘ता’ से बड़ा डर लगता है। आपके पास ‘चमचे’ हैं। चाटुकार हैं। आपको विशेषाधिकार है।
आप कुछ भी कर लें कोई ससुरा आपका एक बाल भी टेढ़ा नहीं कर सकता। सच्ची बात तो यह है हुजूर कि हम गधों से भी गये बीते लोग हैं। कल की बात है। हमारे घर के सामने एक गधा खड़ा था। हमने सोचा कि कहीं यह लीद न कर दे तो हम भगाने के लिए लकड़ी हाथ में लेकर उसके पिछवाड़े गए तो उसने ‘आत्मरक्षा’ के लिए दुलत्ती झाड़ दी।
कसम से सामने का एक दांत टूट गया। आप जब चाहे हमें जूते मार लेते हैं लेकिन आपके सामने हम चिड़ी चुप रहते हैं। कोई प्रतिरोध नहीं। कोई प्रतिशोध नहीं। कोई प्रतिकार नहीं। हमारी बातों का बुरा न मानना नेताजी।
आपने सरेआम एक आदमी के जूते ही नहीं मारे वरन टीवी पर आकर स्वीकारा भी। कमाल की स्वीकारोक्ति है। इतना ‘साहस’। इतनी ‘वीरता’। इतनी बेशर्मी। कसम से जी चाह रहा है कि आपको माथे पर रख कर नाचें। हैरत की बात तो यह है कि आपके इस महान कृत्य पर गोल इमारत चुप है। हम भी चुप ही हैं। बस दिल में आपकी प्रशंसा के चार लफ्ज फूटे तो कह दिए।
व्यंग्य राही की कलम से