इन संदर्भों के आस-पास संस्कृति के अध्येता डा. कपिल तिवारी से हुए लंबे संवाद को याद करना जरूरी लगता है। वे कहते हैं कि गुरु-शिष्य संबंध न तो रक्त संबंध हैं और न ही किसी प्रयोजन से बनाया गया सामाजिक संबंध। यह एक ‘आध्यात्मिक संबंध’ है। गुरु के पास हम एक विशेष ज्ञान, विशेष प्रतिभा, विशेष साधना, विशेष सर्जना, विशेष आचरण और विशेष सिद्धि के लिए जाते हैं। एक शिष्य का ‘समर्पण’ ही इस संबंध की आधारशिला है।
गुरु-शिष्य परंपरा का पहला रूप आध्यात्मिक साधना से संबंध रखता है। आत्मज्ञान प्राप्ति के लिए सदियों-सदियों से भारत में जिज्ञासु, शिष्यत्व ग्रहण करने सिद्ध गुरुओं के पास जाते रहे हैं। गुरु-शिष्य परंपरा का एक अन्य रूप लालित्य के क्षेत्र में रहा है। विविध कला अनुशासनों में दक्षता और सिद्धि के लिए शिष्य, योग्य गुरुओं के सान्निध्य में नाट्य, चित्र, शिल्प और विशेष रूप से संगीत का ज्ञान प्राप्त करने जाते रहे हैं। आज इसे समझना कठिन है। कला व्यावसायिक हो गई है। वह विभिन्न आयोजनों में लोगों के मनोरंजन का साधन है, उस पर प्रचार माध्यमों और बाजार का दबाव है। गुरु-शिष्य परंपरा में तीसरा क्षेत्र विद्या का रहा। विद्या, एक शिष्य की रुचि, प्रतिभा और पात्रता का प्रश्न है। एक शिष्य में विद्या के कौन से रूप और क्षेत्र में विशेषज्ञता प्राप्त करने की क्षमता है, इसे परख कर ही योग्य गुरु एक विद्या विशेष में शिष्य को शिक्षित करते थे। यह ‘ज्ञान’ का क्षेत्र था।
दुर्भाग्य से आज शिक्षा के केन्द्र में ‘ज्ञान’ नहीं ‘जानकारी’ है। ‘प्रतिभा’ और ‘पात्रता’ का प्रश्न बचा ही नहीं है। ‘गुरु’ की जगह ‘नौकरीपेशा अध्यापक’ ने ले ली है और ‘शिष्य’ की जगह ‘छात्र’ ने। सारा ध्यान केन्द्रित है ऐसी शिक्षा पर जो ‘नौकरी’ दे सके, इसे कहा गया-व्यावसायिक शिक्षा। अब ‘ज्ञान’ की शिक्षा का कोई अर्थ नहीं रहा। अगर दर्शन, साहित्य, भाषा या ललित कलाओं की शिक्षा ‘रोजगार’ नहीं दे सकती, तो इनका कोई मूल्य नहीं बचा। प्राकृतिक विज्ञान, वाणिज्य और प्रबंधन तथा कम्प्यूटर की शिक्षा ही सबको चाहिए। विद्या सिर्फ ‘शिक्षा’ नहीं, गुरु की सन्निधि में प्राप्त होने वाला ‘दुर्लभ संज्ञान’ है। आध्यात्मिक साधना, लालित्य के क्षेत्र में सिद्धि और विद्या के माध्यम से ज्ञान प्राप्ति ये तीन क्षेत्र विशेष रूप से भारत में गुरु-शिष्य परंपरा में अनिवार्य रहे हैं। नए संदर्भों और चुनौतियों के बीच जब भी हम गुरु-शिष्य परंपरा का स्मरण करें, इन तीनों क्षेत्रों को ठीक से समझना होगा।