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समझदारी दिखाएं, स्वाद की बजाय सेहत को चुनें

Published: Jun 07, 2023 10:16:56 pm

Submitted by:

Patrika Desk

संयुक्त राष्ट्र के दो प्रमुख संगठनों विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) और खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के आह्वान पर 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जा रहा है। खाद्य मानदंड जीवन की रक्षा करते हैं, लेकिन भारत को इस दिशा में अब भी कड़े कदम उठाने हैं। हमारा देश गैर संचारी रोगों (एनसीडी) संबंधी स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है।

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डॉ. अरुण गुप्ता
शिशु रोग विशेषज्ञ व न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट के समन्वयक

संयुक्त राष्ट्र के दो प्रमुख संगठनों विश्व स्वास्थ्य संगठन(डब्ल्यूएचओ) और खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के आह्वान पर 7 जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जा रहा है। खाद्य मानदंड जीवन की रक्षा करते हैं, लेकिन भारत को इस दिशा में अब भी कड़े कदम उठाने हैं। हमारा देश गैर संचारी रोगों (एनसीडी) संबंधी स्वास्थ्य संकट से जूझ रहा है। पांच वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों में भी मोटापे की समस्या है। प्रति 4 में से 1 वयस्क अधिक वजन का शिकार है। पिछले पांच सालों में यह समस्या बढ़ी है। मोटापा टाइप-2 डायबिटीज, कैंसर और हृदय रोगों का कारण है। हर साल गैर संचारी बीमारियों के कारण 58 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है, जो कुल मौतों का 60 प्रतिशत है।
पैकेट बंद अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों(यूपीएफ) का बढ़ता चलन अत्यधिक मोटापे और बीमारियों का कारण है। विशषज्ञों का कहना है कि इन बीमारियों की रोकथाम के लिए यूपीएफ पदार्थों का सेवन कम करना होगा। इनके विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगना चाहिए और पैकेट के सामने वाले हिस्से पर स्वास्थ्य चेतावनी छपनी चाहिए। सवाल यह है कि खाद्य सुरक्षा क्या है? संसद ने खाद्य सामग्री का नियमन करने और मानव उपभोग के लिए सुरक्षित व पौष्टिक भोजन की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए खाद्य सुरक्षा और मानक (एफएसएस) अधिनियम 2006 लागू किया था। अधिनियम के अनुसार, खाद्य सुरक्षा का अर्थ है यह सुनिश्चित करना कि खाद्य सामग्री मानव उपयोग के लिए स्वीकार्य है। अधिनियम में कहा गया है कि 'असुरक्षित खाद्य' वह खाद्य सामग्री है, जिसकी प्रकृति या गुणवत्ता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। असुरक्षित खाद्य को अच्छा दिखाने के लिए रंगीन, सुगंधित या कोटेड बना कर प्रस्तुत किया जा सकता है। बिक्री बढ़ाने के लिए भी ऐसा किया जाता है। यूपीएफ खाद्य पदार्थ असुरक्षित हैं। संयुक्त राष्ट्र की खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार यूपीएफ यानी अतिप्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ उन सामग्रियों से बने होते हैं, जो अधिकतर सिर्फ औद्योगिक उपयोग के लिए होते हैं। इन्हें तैयार करने में औद्योगिक तकनीक और प्रक्रिया का इस्तेमाल होता है।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल के अनुसार, ये खाद्य पदार्थ आपके घर पर नहीं बनाए जा सकते। इनमें कई सामग्रियों का इस्तेमाल किया जाता है। ये एक तरह से एडिटिव, फ्लेवर, इमल्सीफायर और रंगों का कॉकटेल होते हंैं। इन्हें खाने की आदत लग जाती है, तो हम धीरे-धीरे स्वास्थ्यकर भोजन खाना छोड़ देते हैं। यूपीएफ में शर्करा, वसा और नमक/सोडियम की मात्रा अत्यधिक होती है। यूपीएफ इसीलिए अधिनियम में बताई गई 'असुरक्षित खाद्यÓ की श्रेणी में फिट बैठते हैं। वैज्ञानिक प्रमाणों से स्पष्ट है कि यूपीएफ सेवन में प्रति 10 प्रतिशत की वृद्धि से टाइप-2 डायबिटीज का खतरा 15 प्रतिशत बढ़ जाता है। इससे ओवरईटिंग और वजन बढऩे, शर्करा के अधिक सेवन और उच्च रक्तचाप के जोखिम रहते हैं। ऐसे भी प्रमाण हैं कि इन खाद्य पदार्थों के सेवन से कैंसर, हृदय रोग, अवसाद और अन्य कई बीमारियों का खतरा रहता है।
डब्ल्यूएचओ ने हाल ही चेताया है कि ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक समय तक करना ठीक नहीं है। एफएसएस अधिनियम 2006 के अनुसार, ' किसी भी ऐसे खाद्य पदार्थ का विज्ञापन नहीं करना चाहिए, जो भ्रामक हो या धोखा देने वाला हो या इस अधिनियम का उल्लंघन करे।Ó उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 2 (28) के अनुसार किसी उत्पाद या सेवा के 'भ्रामक विज्ञापनÓ से तात्पर्य है कि इसमें जानबूझ कर महत्त्वपूर्ण जानकारी छिपाई गई है। उदाहरण के लिए अगर किसी मीठे खाद्य पदार्थ के विज्ञापन में इसके कुल शर्करा घटक की जानकारी नहीं है, तो यह विज्ञापन 'भ्रामक' कहलाएगा। क्या ये नियमन प्रभावी हंै? नहीं। नियमन तंत्र शिकायत पर आधारित हैं। भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआइ) ने कथित तौर पर 150 से ज्यादा विज्ञापन भ्रामक पाए हैं और उन्हें निर्णय के लिए एक समिति को सौंप दिया है। इस बीच, खाद्य कम्पनियां लोगों के स्वास्थ्य की कीमत पर पैसा कमा रही हैं। इसलिए मौजूदा नियमन की समीक्षा भारतीय जनता के हित में है। नीति निर्माताओं को सुनिश्चित करना होगा कि भारतवासी 'स्वास्थ्यकर भोजनÓ का सेवन करें।
असुरक्षित भोजन का विज्ञापन रोकने के लिए तीन कदम उठाने होंगे। पहला, आवश्यक स्वास्थ्य चेतावनी जारी हो। अगर खाद्य सामग्री में शर्करा की मात्रा 10 प्रतिशत से ज्यादा हो, 10 प्रतिशत से ज्यादा संतृप्त वसा हो और 1एमजी/ किलोकैलारी से ज्यादा सोडियम हो। दूसरा, भारत सरकार ऐसे खाद्य पदार्थों के विज्ञापन, अन्य प्रोत्साहनों पर प्रतिबंध लगा सकती है। ये दो उपाय असुरक्षित भोजन के बढ़ते सेवन पर रोक लगा सकते हैं। तीसरा, ऐसे खाद्य पदार्थों पर उच्चतम जीएसटी लगा दिया जाए। दक्षिणी अफ्रीका की सरकार ने इसी तरह के नियमन का प्रावधान किया है। भारत के लिए यह उदाहरण हो सकता है। निस्संदेह ऐसा करके हम कई जानें बचा सकेंगे। साथ ही गैर संचारी रोगों पर खर्च होने वाला पैसा बचा सकते हैं।
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