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‘बेहतर ब्रांड निर्माण और वैश्विक स्तर के फोकस की जरूरत’

विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक राष्ट्रवाद को पुनगर्ठित किया जा रहा है। दुनियाभर की शीर्ष आर्थिक इकाइयों की बात करें तो कॉर्पोरेशंस इनमें शुमार हैं और इनका महत्व उतना ही है जितना एक देश का होता है।

Aug 15, 2022 / 02:10 pm

Kamlesh Sharma

विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक राष्ट्रवाद को पुनगर्ठित किया जा रहा है। दुनियाभर की शीर्ष आर्थिक इकाइयों की बात करें तो कॉर्पोरेशंस इनमें शुमार हैं और इनका महत्व उतना ही है जितना एक देश का होता है।

शुभ्रांशु सिंह, वाइस प्रेसिडेंट, टाटा मोटर्स
विश्व की अग्रणी अर्थव्यवस्थाओं में आर्थिक राष्ट्रवाद को पुनगर्ठित किया जा रहा है। दुनियाभर की शीर्ष आर्थिक इकाइयों की बात करें तो कॉर्पोरेशंस इनमें शुमार हैं और इनका महत्व उतना ही है जितना एक देश का होता है। ये विशाल आकार वाले बिजनेस हैं जो अपनी ब्रांड की ताकत और बाजार में हिस्सेदारी के बूते आर्थिक संकट और हिचकोलों का भी सामना कर लेते हैं। एप्पल, बोइंग, आइबीएम, फेसुबक, गूगल, नेस्ले, कोका कोला या टाटा का उदाहरण देख सकते हैं। यह सभी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान के साथ देखे और पहचाने जाते हैं। यह कहना है टाटा मोटर्स के वाइस प्रेसिडेंट (मार्केटिंग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार) शुभ्रांशु सिंह का।

मार्केटिंग टेलेंट विश्व स्तरीय
उन्होंने बताया कि दुनिया की शीर्ष पांच अर्थव्यवस्था में गिनती के साथ सबसे ज्यादा ग्रोथ वाले देशों में शामिल भारत को और पावरफुल ब्रांड्स बनाने पर ध्यान देने की जरूरत है। हमारा मार्केटिंग टेलेंट विश्व स्तरीय है। लगभग सभी पश्चिमी कॉर्पोरेशंस में प्रमुख पदों पर भारतीय होंगे जो उनके मैनेजमेंट और मुख्य मार्केटिंग कार्यक्रमों की समान संभाले हैं। अब सवाल उठता है कि हम भारत और भारतीय कंपनियों के लिए यह कैसे संभव कर सकते हैं? वर्तमान में एप्पल जैसा ग्लोबल ब्रांड कहता है कि डिजाइंड बाय एप्पल इन कैलिफोर्निया, असेंबल्ड इन चीन। लग्जरी सेगमेंट में फ्रांस आगे है।

अब ‘वेस्ट इज बेस्ट’ नहीं रहा
विडंम्बना यह है कि हम जितना अधिक वैश्वीकरण की तरफ बढ़ते हैं, उतनी ही जड़ों से जुड़ने और अपनेपन की इच्छा मजबूत होती जाती है। अब ‘वेस्ट इज बेस्ट’ नहीं रहा। भारत को मजबूत ब्रांडेड इंडस्ट्री लीडरशिप की जरूरत है। हम बॉलीवुड, आइटी, योग, संस्कृति, टेक्सटाइल के लिए जाने जाते हैं लेकिन क्या हमारी कंपनियां वास्तव में वैश्विक हैं? उदाहरण के रूप में टीसीएस और एयर इंडिया का नाम ही गिनाया जा सकता है। हमें बेहतर ब्रांड निर्माण, वैश्विक फोकस की जरूरत है।

वर्ल्ड लीडर बनने की ओर भारत
1955 की पहली फॉर्च्यून 500 कंपनियों की सूची की वर्ष 2019 की सूची से तुलना कर लीजिए। केवल 52 कंपनियां हैं जो दोनों सूचियों में स्थापना से हैं। 1955 में फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से केवल 10.4 प्रतिशत ही सूची में बनी हुई हैं। बाकी पिछड़ गई हैं, दिवालिया हो गईं, विलय हो गया या अधिग्रहण कर लिया गया। एक ब्रांड निर्माता के रूप में मुझे लगता है कि ब्रांड्स क्षमताओं के साथ अपने मूल कॉर्पोरेशंस से आगे निकल रहे हैं।

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