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बिहार विधानसभा चुनाव: 15 साल की एंटी-इनकंबेंसी नीतीश के लिए चुनौती

केंद्र में एनडीए सरकार की उपलब्धियां गिनाने पर रहेगा प्रधानमंत्री मोदी का जोर, पर स्थानीय मुद्दों पर नीतीश पड़ सकते हैं कमजोर

 

नई दिल्लीOct 08, 2020 / 02:02 pm

shailendra tiwari

Bihar Election: CM Nitish Kumar says pubic is boss, will give chance to serve

Bihar Election: CM Nitish Kumar says pubic is boss, will give chance to serve

बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी करने का फैसला बिहार चुनाव से ठीक पहले आया है। हो सकता है जद(यू)-भाजपा गठबंधन इसी के सहारे चुनावी नैया पार लगाने की आस लगाए हो। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने 15 साल की गठबंधन सरकार के समक्ष एंटी इनकंबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) की चुनौती है, तो बाढ़ पीडि़तों को अपर्याप्त राहत, असंख्य लोगों के रोजगार छिन जाने, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आधारभूत ढांचे में कमी, महामारी संकट, अपराध बढऩा जैसे और कई सवाल भी खड़े हैं।

सीबीआइ अदालत के फैसले से भाजपा को हिंदुत्व का एजेंडा और मजबूती से चलाने की संजीवनी मिली है, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को चौथी बार सरकार बनाने का रास्ता साफ होने का आश्वासन भी। यह गठबंधन अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के मामले को भी मुद्दा बनाए तो कोई आश्चर्य नहीं। भाजपा भावनात्मक मुद्दों पर मतदाताओं को रिझाने में कभी पीछे नहीं रही। सुशांत केस में महाराष्ट्र सरकार का कथित गैर-जिम्मेदाराना रवैया और बिहार सरकार की सीबीआइ जांच के लिए पैरवी नीतीश के पक्ष में आ सकते हैं। खैर, सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के पास ही चुनावी मुद्दों की कोई कमी नहीं है। 2015 के विधानसभा चुनाव के बजाय विपक्ष इस बार पूरी तरह अलग तेवर लिए होगा।

हालांकि भाजपा के अधिकांश पारम्परिक चुनावी मुद्दे जैसे राम मंदिर निर्माण, तीन तलाक, अनुच्छेद 370 की समाप्ति, सीएए, समान नागरिक संहिता आदि अब उसके तरकश से निकल चुके हैं। इनमें से बहुत से मुद्दों पर जद(यू) भाजपा से अलग राय जता चुकी है, जो गठबंधन के बीच मतभेद का कारण भी रही।
इसके बावजूद भाजपा किसी दबाव में नजर नहीं आ रही है, क्योंकि यदि ऐसा होता तो उसका ‘हिन्दुत्वÓ का मुद्दा कमजोर पड़ सकता था, जो पार्टी और आरएसएस, दोनों को ही गवारा नहीं हो सकता। जहां तक चुनाव प्रचार के मुद्दों की बात है, पीएम नरेंद्र मोदी का पूरा फोकस एनडीए सरकार की उपलब्धियां गिनाने पर रहेगा। वह चीन की आक्रामकता पर भारत की कड़ी प्रतिक्रिया पर वोट मांगेंगे, चीन का समर्थन करने के लिए विपक्ष को आड़े हाथों लेंगे, किसान बिल के फायदे बताएंगे और विपक्ष द्वारा विरोध के लिए अपनाए गए हथकंडों पर भी हमलावर हो सकते हैं, तो विपक्ष के पास कोरोना संकट, बाढ़ राहत कार्यों में कमी, प्रवासी मजदूरों की समस्याओं जैसे बेरोजगारी आदि मुद्दे हैं।

भारतीय राजनीति के लिए कहावत है, ‘जाति नहीं जाती भारतीय चुनावों में।’ हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार के कई युवा मतदाताओं ने जातिगत वोट परम्परा को दरकिनार कर मोदी को चुना था, लेकिन इस बार बिहार के विधानसभा चुनाव को लेकर कुछ भी निश्चित तौर पर नहीं कहा जा सकता। यह भूलना नहीं चाहिए कि नीतीश कुमार राज्य के मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के हरसंभव प्रयास कर चुके हैं।
जुलाई 2019 में जद(यू) प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा था कि राम मंदिर, तीन तलाक, समान नागरिक संहिता और अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर उनकी पार्टी भाजपा से सहमत नहीं है। 2010 में मुस्लिम समुदाय ने इस गठबंधन को वोट दिया था, जिसके बल पर यह 243 में से 206 सीटों पर जीता था। लेकिन 2013 में जब भाजपा ने मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया तो नीतीश ने भाजपा से किनारा कर लिया था। जाहिर है इस बार के बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी और नीतीश दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर है, क्योंकि इन चुनावों के नतीजे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा तय करेंगे।

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