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बिरसा मुंडा : शौर्य, साहस और नेतृत्व के अद्भुत प्रतीक एक जन नेता, जिसने पाया भगवान का दर्जा

बिरसा मुंडा आदिवासियों के जीवन एवं उनकी संस्कृति को कमतर आंकने वालों के खिलाफ मजबूती से डटे रहे। यही नहीं, बिरसा ने धार्मिक प्रथाओं को परिष्कृत करने और उनमें सुधार लाने के लिए काम किया। उन्होंने कई अंधविश्वासों को हतोत्साहित किया। उन्होंने आदिवासियों की कई आदतों में सुधार किया और जनजातीय गौरव को बहाल एवं पुनर्जीवित करने की दिशा में काम किया। यही वजह है कि उनका नाम आज भी पूरे सम्मान के साथ लिया जाता है।

Nov 16, 2021 / 08:12 am

Giriraj Sharma

बिरसा मुंडा : शौर्य, साहस और नेतृत्व के अद्भुत प्रतीक एक जन नेता, जिसने पाया भगवान का दर्जा

बिरसा मुंडा : शौर्य, साहस और नेतृत्व के अद्भुत प्रतीक एक जन नेता, जिसने पाया भगवान का दर्जा

एल मुरुगन
(सूचना एवं प्रसारण और मत्स्य पालन, पशुपालन व डेयरी राज्य मंत्री)

वर्तमान में भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। दमनकारी ब्रिटिश राज के खिलाफ मातृभूमि की स्वतंत्रता के लिए निडर होकर प्रयास करने वाले महान सेनानियों में एक विशिष्ट नाम है – बिरसा मुंडा। बिरसा मुंडा ने केवल 25 वर्षों का छोटा, लेकिन बहादुरी से भरा जीवन व्यतीत किया। वीरतापूर्ण कार्यों और उनकी नेक भावना ने बिरसा को उनके अनुयाइयों के लिए भगवान बना दिया। अन्याय और उत्पीडऩ के खिलाफ लडऩे के वीरतापूर्ण प्रयासों से भरी उनकी जीवन कहानी, औपनिवेशिक ब्रिटिश राज के खिलाफ प्रतिरोध की एक बुलंद आवाज का प्रतिनिधित्व करती है।

बिरसा का जन्म 15 नवंबर, 1875 को वर्तमान झारखंड के उलिहातू गांव के एक आदिवासी मुंडा परिवार में हुआ था। उन्होंने अपना बचपन अत्यंत गरीबी में बिताया। यह वह समय था, जब शोषक ब्रिटिश राज मध्य और पूर्वी भारत के घने जंगलों में घुसने लगा था और प्रकृति व प्राकृतिक संसाधनों के साथ तालमेल बिठाकर रहने वाले आदिवासियों के लिए कई तरह की बाधाएं पैदा कर रहा था। बिरसा ने आदिवासियों के हितों से जुड़े मुद्दों पर आवाज उठाना शुरू कर दिया। उन्होंने आदिवासियों को धर्म से जुड़े मामलों में एक नई रोशनी दिखाई। वे आदिवासियों के जीवन एवं उनकी संस्कृति को कमतर आंकने वालों के खिलाफ मजबूती से डटे रहे। यही नहीं, बिरसा ने धार्मिक प्रथाओं को परिष्कृत करने और उनमें सुधार लाने के लिए काम किया। उन्होंने कई अंधविश्वासों को हतोत्साहित किया। उन्होंने आदिवासियों की कई आदतों में सुधार किया और जनजातीय गौरव को बहाल एवं पुनर्जीवित करने की दिशा में काम किया। बिरसा मुंडा ने भूमि पर आदिवासियों के पैतृक स्वायत्त नियंत्रण की संप्रभुता का आह्वान किया। बिरसा मुंडा एक जन नेता बन गए और उन्हें उनके अनुयाइयों द्वारा भगवान और धरती आबा के रूप में माना जाने लगा।

उन्होंने आदिवासियों को सभी निहित स्वार्थी तत्वों की शोषक एवं अत्याचारी प्रकृति से अवगत कराया। बिरसा मुंडा ने स्पष्ट रूप से इस तथ्य को पहचान लिया था कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन ही सभी समस्याओं और उत्पीडऩ का मूल कारण है। उनके जेहन में यह पूरी तरह से स्पष्ट था कि ‘अबुआ राज सेतर जाना, महारानी राज टुंडू जाना ( महारानी का राज समाप्त हो और हमारा राज कायम हो)। बिरसा ने जनता के मन मे ंविरोध की चिंगारी जलाई। मुंडा, उरांव एवं अन्य आदिवासी और गैर-आदिवासी लोग उनके आह्वान पर उठ खड़े हुए और ‘उलगुलान’ या विद्रोह में शामिल हो गए। उन लोगों ने बिरसा के नेतृत्व में अपनी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक मुक्ति के लिए औपनिवेशिक आकाओं और शोषकों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। बिरसा ने लोगों से कोई लगान नहीं देने के लिए कहा और हमले शुरू कर दिए। मध्य और पूर्वी भारत के आदिवासियों ने पारंपरिक तीर और धनुष के साथ ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक प्रभावी सशस्त्र प्रतिरोध किया। हालांकि, ऐसा करते हुए बिरसा इस बात को लेकर सचेत थे कि सिर्फ असली शोषकों पर ही हमला किया जाए और आम लोगों को कोई परेशानी न हो। बिरसा जीवटता और देवत्व के प्रतीक बन गए। जल्द ही उन्हें ब्रिटिश पुलिस ने पकड़ लिया और जेल में डाल दिया गया, जहां 9 जून 1900 को कैद में उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन बिरसा मुंडा का ओजपूर्ण संघर्ष व्यर्थ नहीं गया। इसने ब्रिटिश राज को आदिवासियों की दुर्दशा और शोषण का संज्ञान लेने और आदिवासियों की सुरक्षा के लिए ‘छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम, 1908 लाने पर मजबूर किया। इस महत्त्वपूर्ण अधिनियम ने आदिवासी भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगा दी, जिससे आदिवासियों को भारी राहत मिली और यह जनजातीय लोगों के अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में एक ऐतिहासिक कानून बन गया। ब्रिटिश शासन ने जबरन मजदूरी की प्रथा को समाप्त करने के लिए भी कदम उठाए।

बिरसा मुंडा अपनी मृत्यु के 121 साल बाद यानी आज भी लाखों भारतीयों को निरंतर प्रेरित करते रहे हैं। वह शौर्य, साहस और नेतृत्व के अद्भुत प्रतीक हैं। वे एक ऐसे नायक थे, जो अपनी समृद्ध संस्कृति और महान परंपराओं पर गर्व किया करते थे। इसके साथ ही जब भी आवश्यकता महसूस होती थी, तो वे अपने स्वयं की विचारधारा को परिष्कृत करने से भी पीछे नहीं हटते थे।

बिरसा मुंडा हमारे स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महान प्रतीकों में से एक हैं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम को मुंडा, उरांव, संथाल, तामार, कोल, भील, खासी, कोया और मिजो जैसे अनगिनत जनजातीय समुदायों ने काफी मजबूती प्रदान की थी। जनजातीय समुदायों द्वारा आरंभ किए गए क्रांतिकारी आंदोलनों और संघर्षों में उनके अपार साहस एवं सर्वोच्च बलिदान की स्पष्ट झलक नजर आती थी और उन्होंने देश भर के भारतीयों को प्रेरित किया था। बिरसा मुंडा की जयंती पर 15 नवंबर को पहली बार ‘जनजातीय गौरव दिवस’ मनाकर जनजातीय गौरव और योगदान को पूरी श्रद्धा के साथ स्मरण किया गया।

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