scriptसरकारें ढो रहीं अपनों से खींचतान का बोझ | BJP changed four chief ministers in four months | Patrika News
ओपिनियन

सरकारें ढो रहीं अपनों से खींचतान का बोझ

राजनीतिक दलों को अपना मुख्यमंत्री बनाने और बदलने का पूरा अधिकार है। लेकिन बार-बार मुख्यमंत्री बदलने की मजबूरी अंदरूनी उठापटक की तरफ इशारा करती है।

नई दिल्लीJul 27, 2021 / 07:43 am

विकास गुप्ता

सरकारें ढो रहीं अपनों से खींचतान का बोझ

सरकारें ढो रहीं अपनों से खींचतान का बोझ

तो आखिर बी.एस. येड्डियुरप्पा ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे ही दिया। चार महीने में भाजपा ने अपने चार मुख्यमंत्रियों को बदल डाला। पहले उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाया। फिर असम में चुनावी जीत दिलाने वाले सर्वानंद सोनोवाल को बदल दिया। इसी महीने की शुरुआत में त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह मुख्यमंत्री बने तीरथ सिंह रावत को भी बदल दिया। और अब इसी कड़ी में येड्डियुरप्पा का नाम भी जुड़ गया। न चाहते हुए भी उन्हें पद छोडऩा पड़ गया। येड्डियुरप्पा चार बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने, लेकिन पांच साल का कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर पाए। एक बार दो दिन, तो एक बार सात दिन के लिए ही उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी।

राजनीतिक दलों को अपना मुख्यमंत्री बनाने और बदलने का पूरा अधिकार है। लेकिन बार-बार मुख्यमंत्री बदलने की मजबूरी अंदरूनी उठापटक की तरफ इशारा करती है। कर्नाटक और उत्तराखंड को ही ले लें। उत्तराखंड बनने के बाद 21 वर्षों में भाजपा के यहां छह मुख्यमंत्री बन चुके हैं, लेकिन एक को भी पांच साल पूरे करने का मौका नहीं मिला। कर्नाटक में भी 14 साल में भाजपा के तीन मुख्यमंत्री बने, लेकिन सबको बीच में ही पद छोडऩा पड़ा। कर्नाटक में भाजपा ने जोड़-तोड़ करके सरकार बनाई थी, पर उत्तराखंड में तो पार्टी को 70 में से 57 सीटों पर जीत मिली थी। फिर भी साढ़े चार साल में तीसरा मुख्यमंत्री लाना पड़ा।
उत्तरप्रदेश, हरियाणा, अरुणाचल प्रदेश और गुजरात में भाजपा के मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं या करने जा रहे हैं।

कांग्रेस की बात करें तो वहां भी पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में आपसी खींचतान की खबरें आती रहती हैं। क्षेत्रीय दलों में इस तरह का संकट नहीं है। ओडिशा में नवीन पटनायक हों या प. बंगाल में ममता बनर्जी, लंबे समय बाद भी दोनों को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। लोकतंत्र में सबको साथ लेकर चलने की परंपरा बीते कुछ सालों में टूटती नजर आ रही है, खासकर भाजपा और कांग्रेस में। एक-दूसरे की शिकायतों के सिलसिले के बीच चलने वाली सरकारें जनहित में कुछ नया कर ही नहीं पातीं। मुख्यमंत्री कुर्सी बचाते रह जाते हैं। राजस्थान का उदाहरण सामने है। ढाई साल पहले बनी सरकार अपनों की खींचतान का बोझ ढो रही है।

दोनों बड़े दल सबसे अधिक अनुशासित होने का दावा करते हैं, लेकिन ऐसा नजर नहीं आता। कर्नाटक में अगला मुख्यमंत्री कौन होगा, जल्दी सामने आ जाएगा। येड्डियुरप्पा के कद का दूसरा नेता वहां भाजपा के पास नहीं है। जो भी मुख्यमंत्री बनेगा, उसे तलवार की धार पर ही चलना होगा, विपक्ष के मुकाबले अपनों के वार सहने के लिए तैयार रहना होगा।

Home / Prime / Opinion / सरकारें ढो रहीं अपनों से खींचतान का बोझ

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो