scriptसुधार की दरकार | black money in elections: Need for improvement | Patrika News

सुधार की दरकार

locationजयपुरPublished: Jun 04, 2019 03:00:50 pm

Submitted by:

dilip chaturvedi

हर बार चुनावों में कालेधन का इस्तेमाल रोकने के जतन होते हैं। जिन्हें इस कालेधन का इस्तेमाल करना होता है, वे नए-नए तरीकों का इस्तेमाल कर ही लेते हैं।

black money and election

black money and election

चुनावों में कालेधन के इस्तेमाल को रोकने के प्रयास कोरी बातें ही होकर रह गईं, इसका अंदाजा लोकसभा चुनावों के दौरान जब्त की गई नकदी, सोना व शराब की कीमत के आकलन से लग जाता है। देश भर में 3456.22 करोड़ रुपए की नकदी और अन्य सामान जब्त किया गया। अब इसी साल महाराष्ट्र व हरियाणा समेत चार राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। लगातार दूसरी बार सत्ता में आई नरेन्द्र मोदी सरकार को चुनावों से पहले कालेधन की रोकथाम को लेकर सख्त कानूनी प्रावधान करने होंगे।

क्योंकि सत्रहवीं लोकसभा के चुनाव सिर्फ दिग्गज नेताओं की हार-जीत व राजनीतिक दलों को मिले जनसमर्थन के कीर्तिमान के लिए ही नहीं जाने जाएंगे। ये चुनाव, समूचे प्रचार अभियान के दौरान जब्त की गई नकदी, सोना, शराब और ड्रग्स की रिकॉर्ड जब्ती के लिए भी याद रखे जाएंगे। चुनावों के दौरान कालेधन की रोकथाम के लिए की गई व्यापक धरपकड़ के बावजूद काफी रकम तो जांच एजेंसियों की पकड़ के बाहर रह गई होगी, इसमें संदेह नहीं।

नोटबंदी के बाद सरकार ने कालेधन के प्रवाह को रोकने का दावा किया था। इस बार चुनाव आयोग ने तमिलनाडु के वेल्लोर में चुनाव स्थगित कर दिए। आयोग को यहां धनबल के उपयोग की आशंका थी। ऐसा पहली बार हुआ। वेल्लोर में भी एक राजनीतिक दल के नेता

के यहां नकदी जब्त हुई थी। हालांकि विधानसभाओं और राज्यसभा के चुनावों के दौरान ऐसी शिकायतों पर चुनाव आयोग ऐसी ही सख्ती एकाध बार पहले भी दिखा चुका है। जिस मात्रा में नकदी, शराब, ड्रग्स आदि इस बार जब्त किए गए, उससे तो यह साफ लगता है कि चुनाव नतीजों को प्रभावित करने के लिए इनका इस्तेमाल होने की पूरी आशंका थी।

हर बार चुनावों में कालेधन के इस्तेमाल को रोकने के लिए यों तो कई जतन किए जाते हैं लेकिन जिन्हें इस कालेधन का इस्तेमाल करना होता है वे नए-नए तरीकों का इस्तेमाल कर ही लेते हैं। सवाल यह है कि हर बार जब इतनी बड़ी रकम जब्त होती है तो फिर किसी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होती? जब्त की गई अधिकांश राशि आखिर क्यों लौटा दी जाती है? केन्द्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट को दिए गए एक जवाब के मुताबिक वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान नकदी आदि जब्त करने के दर्ज किए गए सैकड़ों मामलों में केवल तीन ही चल रहे हैं।

साफ है कि कानून की खामियों का फायदा उठाने वाले जब्त कालेधन को भी सफेद साबित करने में कामयाब हो जाते हैं। तो क्या यह माना जाए कि चुनावों में कालेधन का इस्तेमाल रोकना लाइलाज साबित हो गया है? क्या चुनावों में मतदाताओं को प्रभावित करने से रोकने के लिए चुनाव आयोग के प्रयास नाकाफी हैं? ये सवाल इसलिए भी हैं क्योंकि चुनाव के दौरान कालेधन के खिलाफ कार्रवाई को लेकर चुनाव आयोग और जांच एजेंसियों के बीच विवाद भी खूब हुए।

मध्यप्रदेश और तमिलनाडु में चुनाव आयोग को राजनेताओं व उनके नजदीकियों के यहां छापों की कार्रवाई पर जांच एजेंसियों को निष्पक्ष कार्रवाई की हिदायत तक देनी पड़ी। जहां तक चुनाव सुधारों की बात है, इसके लिए महज प्रयासों की वकालत करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि इस दिशा में ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत है। जब तक इस संबंध में कानूनी प्रावधान सख्त नहीं किए जाएंगे, तब तक चुनावों में कालेधन की रोकथाम मुश्किल है।

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