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द वाशिंगटन पोस्ट से… अफगान युद्ध में दफन किए गए सवाल और सार्वजनिक छल

Afghan war, : पुस्तक चर्चा : द अफगानिस्तान पेपर्स (The Afghanistan Papers) …’यह एक साल की अवधि वाला वह युद्ध था जो बीस बार लड़ा गया’

नई दिल्लीAug 28, 2021 / 08:26 am

Patrika Desk

पुस्तक चर्चा : द अफगानिस्तान पेपर्स

पुस्तक चर्चा : द अफगानिस्तान पेपर्स

क्रेग व्हिटलॉक, (पत्रकार, पेंटागन और राष्ट्रीय सुरक्षा पर कवरेज के लिए जाने जाते हैं)

बात 1979 की है, वाशिंगटन स्थित ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूटशन के दो वरिष्ठ शोधकर्ता लेस्ली गेल्ब और रिचर्ड बेट्स दक्षिण-पूर्व एशिया में बिना वजह छेड़े गए युद्ध में अमरीका को झोंके जाने के कारणों का अध्ययन कर रहे थे। उनकी कोशिश सरकार के भीतर गोपनीय निर्णय लेने की प्रक्रिया को समझने की थी, जिसके चलते लगातार चार सरकारें इस युद्ध के लिए प्रवृत्त हुईं। इसके लिए उन्होंने अमरीकी रक्षा विभाग पेंटागन के कागजात खंगाले।

वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि अमरीकी नेता मूर्खतावश इस युद्ध में नहीं उलझे थे, बल्कि वे नौकरशाही की सामूहिक सोच का शिकार हुए थे। वियतनाम को साम्यवाद के हाथ में नहीं जाने देने की सोच इस कदर हावी थी कि इस बात की अनदेखी कर दी गई कि अमरीका को इसकी क्या कीमत चुकानी पड़ेगी। वियतनाम और अफगाानिस्तान के बीच समानता की बहुत बातें हो गईं। आधी सदी के अंतर वाली इन घटनाओं ने कमजोर लेकिन दृढ़निश्चयी विद्रोहियों के समक्ष शक्तिशाली अमरीकी सेना की खामियां को उजागर किया। मैं यह तथ्य तब तक नहीं समझ पाई थी जब तक कि मैंने क्रेग व्हिटलॉक की नई किताब ‘द अफगानिस्तान पेपर्स: ए सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ द वॉर’ नहीं पढ़ी थी।

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व्हिटलॉक की किताब में कई जगह उल्लेख है कि अमरीका की विदेश नीति से जुड़े उच्च अधिकारी जानते थे कि अफगानिस्तान हाथ से निकलने वाला है। वियतनाम का उदाहरण सामने होने पर भी उन्होंने अन्य विकल्प पर विचार नहीं किया। नीति निर्माताओं ने अमरीकी जनता को वास्तविक हालात से बेखबर रखा। व्हिटलॉक ने रक्षा विभाग के आंतरिक सूत्रों के हवाले से इन्हीं बातों को रेखांकित किया है। पूर्व में वर्गीकृत दस्तावेज ‘द अफगानिस्तान पेपर्स’ को पहली बार किताब की शक्ल दी गई है। ये दस्तावेज 2019 में वाशिंगटन पोस्ट में पहली बार प्रकाशित हुए थे। किताब का ताना-बाना ‘अफगान युद्ध में अमरीका विफल क्यों हुआ’ सवाल के इर्द-गिर्द बुना गया है, पर सबसे रोचक पहलू सार्वजनिक छल की विस्तृत कहानी है।

व्हिटलॉक ने घटनाक्रम के कुछ संभावित मोड़ों का जिक्र किया है, जहां अफगानिस्तान की तकदीर कुछ और लिखी जा सकती थी: यदि ओसामा बिन लादेन 2001 में अमरीकी सेना से बच कर तोरा बोरा से न भागा होता, यदि 2001 के बॉन सम्मेलन में तालिबान को भी शामिल किया गया होता, यदि इराक में पहुंचने के बाद नीति-निर्माता अफगानिस्तान को न भूल गए होते। व्हिटलॉक ने ऐेसे किस्सों का भी जिक्र किया है, जब अमरीका ने खुद अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी। उन्होंने लिखा है कि अफगान युद्ध 20 वर्ष तक नहीं लड़ा गया बल्कि एक वर्ष की अवधि वाला यह युद्ध बीस बार लड़ा गया। किताब में अमरीका की खुद को भरम में रखने की प्रवृत्ति पर प्रकाश डाला गया है। ‘द अफगानिस्तान पेपर्स’ अमरीकी नीतियों की बार-बार विफलता की कहानी है। किताब में सही कहा गया है कि मौजूदा समस्या की शुरुआत बीस साल पहले हो गई थी जब अमरीकी नेताओं ने विफलता छिपाने के लिए सफलता की झूठी मुस्कान ओढ़ ली थी।
– एमा एशफोर्ड, स्कोक्रोफ्ट सेंटर फॉर स्ट्रेटजी एंड सिक्योरिटी, अटलांटिक काउंसिल में सीनियर फेलो
(प्रकाशक: साइमन एंड शूस्टर
पृ.सं.: 346, मूल्य: 30 डॉलर)
(द वाशिंगटन पोस्ट से विशेष अनुबंध के तहत)

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