वित्त मंत्री ने बजट को आत्मनिर्भर भारत की तरफ बढ़ता कदम बताया है। स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता देने के सरकार के इरादे को भी जाहिर किया। वैक्सीन के लिए 35 हजार करोड़ रुपए की बात भी की, तो राजमार्गों के लिए अतिरिक्त राशि के प्रावधान का भी ऐलान किया। 75 साल से अधिक उम्र के लोगों को आयकर रिटर्न दाखिल करने की छूट से लेकर अन्य राहत की बातें की। अफोर्डेबल मकानों के लिए भी सरकार का पक्ष रखा। टैक्स में छूट देकर सोना-चांदी और लोहा- स्टील सस्ते करने की भी घोषणा की, लेकिन बजट में वेतनभोगी मध्यवर्ग और महिलाओं को निराशा ही हाथ लगी है। आयकर छूट की उम्मीदें पाले लोगों को निराशा हाथ लगी, तो पेट्रोल- डीजल पर सेस की घोषणा ने पहले से त्रस्त जनता पर और बोझ बढ़ाया है। कोरोना से जूझ रही अर्थव्यवस्था के दौर में आयकर स्लैब का दायरा बढ़ाने की उम्मीदों को भी झटका लगा है। इससे सभी सहमत हैं कि देश अभी असाधारण दौर से गुजर रहा है। आजादी के बाद पहली बार छह महीने ठहरे रहे देश में करोड़ों की नौकरी छिन गईं। करोड़ों छोटे व्यापारियों की गाड़ी भी बेपटरी हो गई। इनकी जिंदगी में खुशहाली कैसे आएगी, इसकी दिशा बजट में नहीं दिखती। रोजगार के नए अवसर पैदा करना इस समय सबसे बड़ी चुनौती थी। बजट में इस चुनौती से लडऩे की तैयारी भी नजर नहीं आई।
प्रधानमंत्री ने सही कहा कि कोविड के बावजूद आम आदमी पर बोझ नहीं डाला गया, लेकिन इस समय जरूरत आम आदमी को राहत की थी। बजट पर अर्थशास्त्रियों की जुदा राय हो सकती है, लेकिन संतुलित बजट होने के बावजूद यह समय की मांग पर खरा उतर पाएगा, कहना मुश्किल है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ का नारा अच्छा है, लेकिन ये जमीन पर नजर भी आना चाहिए। कोरोनाकाल में शहरों से गांवों में पहुंचे श्रमिकों की जेब व हाथ अब भी खाली है। उन्हें रोजगार गांवों में कैसे मिलेगा, इसका रोडमैप नजर आया नहीं। बजट का असर आने वाले महीनों में नजर आएगा। तीस कंपनियों वाले सेंसेक्स के उछाल की तरह आम आदमी की उम्मीदें भी उछलें, बजट इसी पैमाने पर कसा जाएगा।