देश में बुलेट ट्रेन चलाने के लिए जापान के साथ समझौता किया गया है। उम्मीद की जा रही है कि 1.10 लाख करोड़ रुपए की लागत से बनने वाली बुलेट ट्रेन 2022 तक देश को मिल जाएगी। दावा किया जा रहा है कि अहमदाबाद से मुबई तक 500 किलोमीटर की दूरी जो फिलहाल करीब सात घंटे में पूरी होती है, बुलेट ट्रेन चलने से दो से तीन घंटे में पूरी हो सकेगी। निस्संदेह यह अच्छी शुरुआत कही जा सकती है। यह एक दिन में किया गया फैसला बिल्कुल भी नहीं है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी का ख्वाब रहा है कि वे देश में बुलेट ट्रेन चलाएं और इसके लिए उन्होंने जी-तोड़ प्रयास भी किए। अनेक मौकों पर उन्होंने अपने भाषणों में इसका जिक्र भी किया।
मैं आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि कांग्रेस के कार्यकाल में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुलेट ट्रेन के लिए प्रयास शुरू कर दिए थे। उन्होंने इस संदर्भ में शुरुआती बातचीत जापान और फ्रांस के साथ की थी। जैसा कि मैंने कहा कि इतनी बड़ी परियोजना के फैसले एक दिन में नहीं बल्कि वर्षों की निरंतर बातचीत का परिणाम होते हैं। कांग्रेस के कार्यकाल में शुरू हुए प्रयासों का परिणाम अब जाकर सामने आया है। महत्वपूर्ण यह है कि वर्तमान परिस्थितियों में बुलेट ट्रेन चलाना किसी भी सूरत में हमारी प्राथमिकता नहीं हो सकती। सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि यह किन लोगों को
ध्यान में रखकर चलाई जा रही है? इसका लाभ बड़े उद्यमियों और व्यापारी वर्ग को ही मिलने वाला है। इसका सफर कितना महंगा फिलहाल तो इसकी कल्पना ही की जा सकती है। वैसे भी देश में हवाई सेवा अपेक्षाकृत सस्ती हो रही हंै।
साफ है कि आम लोगों से इसका कोई वास्ता नहीं है। जरूरत तो आम आदमी के लिए सस्ते किराए पर अधिक रेलगाडिय़ां चलाने की है। पिछले दिनों रेल दुर्घटनाएं भी काफी संख्या में हुई है। आवश्यकता है कि सुरक्षा के उपकरणों का आधुनिकीकरण कर सिग्निलिंग व्यवस्था को बेहतर बनाया जाए। रेलवे की पटरियों को बेहतर बनाने और उनके दोहरीकरण की जरूरत है। लम्बे समय से अपूर्ण डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर परियोजना को भी जल्द से जल्द मूर्त रूप देना होगा। यदि यह परियोजना पूरी हो जाती है तो रेलवे ट्रैक से बहुत बड़ा भार कम हो जाएगा।
मालवाहक रेलगाडि़य़ों का भार कम होने से अधिक सवारी गाडिय़ां चलाई जा सकती है। साथ ही रेलवे के डिब्बों को भी उन्नत किस्म का बनाया जाना चाहिए। रेलवे कर्मचारियों के जर्जर होते आवासों को या तो पुन: बनाया जाए नहीं तो कम से कम उनके वर्तमान आवासों की मरम्मत तो होनी ही चाहिए। इन सबके बाद ही बुलेट ट्रेन जैसी परियोजना को धरातल पर उतारने के बारे में सोचना चाहिए।