हमारे यहां कई तरह के तंबाकू उत्पादों का उपयोग है। सिर्फ धूम्रपान को ही देखें, तो सिगरेट के अलावा बीड़ी, हुक्का जैसे कई तरह के उत्पाद पाए जाते हैं। इसके अलावा चबा कर खाए जाने वाले उत्पाद भी कम नुकसानदेह नहीं हैं। हमें इन सबका उपयोग कम करना है। इसके लिए यह जरूरी है कि इन उत्पादों को लोगों की पहुंच से दूर किया जाए।
दुनिया भर के विशेषज्ञ मानते हैं कि तंबाकू उत्पादों के खुदरा मूल्य का 75 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न करों का होना चाहिए। अभी भारत में यह बहुत कम है। किसी तंबाकू उत्पाद को गरीब लोग उपयोग करते हैं या पारंपरिक रूप से उपयोग होता रहा है, इस वजह से वह कम नुकसानदेह नहीं हो जाता। उसकी सामाजिक स्वीकृति हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसे बहुत गंभीरता से प्रयास करके तोडऩा होगा। तंबाकू का कोई भी उत्पाद हो, वह उतना ही जानलेवा है। यह बात हमें एक समाज के रूप से स्वीकार करनी होगी।
तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ाना बहुत उपयोगी है। अगर किसी खास तरह के तंबाकू उत्पाद पर इस आधार पर टैक्स कम रखा गया कि इसका उपयोग गरीब करते हैं, तो वह उन गरीबों के साथ अन्याय होगा। एक गरीब व्यक्ति इन उत्पादों की वजह से बीमार होता है, तो उसके पूरे परिवार पर उसका ज्यादा प्रभाव पड़ता है। बीड़ी या गुटखा किसी भी तरह से कम नुकसानदायक नहीं हैं। दुर्भाग्य से अब तक इन पर टैक्स बहुत कम है। इस वजह से तंबाकू से निपटने के सारे उपाय कमजोर हो सकते हैं। इन पर भी बराबरी से टैक्स नहीं लगा, तो लोग दूसरे उत्पादों का उपयोग छोड़ कर इन्हें अपनाने को प्रेरित हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से निर्धारित खुदरा मूल्य के 75 प्रतिशत कर की सीमा सभी उत्पादों पर लागू होनी चाहिए।
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दुनिया भर के विशेषज्ञ मानते हैं कि तंबाकू उत्पादों के खुदरा मूल्य का 75 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न करों का होना चाहिए। अभी भारत में यह बहुत कम है। किसी तंबाकू उत्पाद को गरीब लोग उपयोग करते हैं या पारंपरिक रूप से उपयोग होता रहा है, इस वजह से वह कम नुकसानदेह नहीं हो जाता। उसकी सामाजिक स्वीकृति हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसे बहुत गंभीरता से प्रयास करके तोडऩा होगा। तंबाकू का कोई भी उत्पाद हो, वह उतना ही जानलेवा है। यह बात हमें एक समाज के रूप से स्वीकार करनी होगी।
तंबाकू उत्पादों पर टैक्स बढ़ाना बहुत उपयोगी है। अगर किसी खास तरह के तंबाकू उत्पाद पर इस आधार पर टैक्स कम रखा गया कि इसका उपयोग गरीब करते हैं, तो वह उन गरीबों के साथ अन्याय होगा। एक गरीब व्यक्ति इन उत्पादों की वजह से बीमार होता है, तो उसके पूरे परिवार पर उसका ज्यादा प्रभाव पड़ता है। बीड़ी या गुटखा किसी भी तरह से कम नुकसानदायक नहीं हैं। दुर्भाग्य से अब तक इन पर टैक्स बहुत कम है। इस वजह से तंबाकू से निपटने के सारे उपाय कमजोर हो सकते हैं। इन पर भी बराबरी से टैक्स नहीं लगा, तो लोग दूसरे उत्पादों का उपयोग छोड़ कर इन्हें अपनाने को प्रेरित हो सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से निर्धारित खुदरा मूल्य के 75 प्रतिशत कर की सीमा सभी उत्पादों पर लागू होनी चाहिए।
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भारत ने तंबाकू के खतरे से निपटने के लिए कई कारगर कदम उठाए हैं। भारत ई-सिगरेट पर प्रतिबंध लगाने वाला अग्रणी देश बन गया है। इसी तरह सभी तंबाकू उत्पादों पर सचित्र चेतावनी की कानूनी व्यवस्था की गई है। बीड़ी, खैनी, गुटखा जैसे बहुत से उत्पादों पर यह स्पष्ट और प्रभावी रूप से नहीं दिख पाती। इन पर यह चेतावनी न सिर्फ साफ समझ में आए, बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं में भी हो, क्योंकि इनका उपयोग करने वाले बहुत से लोग सिर्फ स्थानीय भाषा ही समझते हैं। यहां तक कि चूने के साथ खाई जाने वाली सुरती या खैनी और हुक्का का तंबाकू भी चेतावनी के बिना नहीं मिलना चाहिए।
इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि तंबाकू की खेती करने वालों और बीड़ी बनाने वालों को वैकल्पिक रोजगार उपलब्ध करवाने पर राज्य सरकारें गंभीरता से काम करें। जिन इलाकों में तंबाकू की खेती ज्यादा होती है, वहां के कृषि विकास केंद्र को किसानों के लिए वैकल्पिक फसल पर काम करना चाहिए। स्वस्थ भारत के सपने को पूरा करने के लिए बहुत जरूरी है कि तंबाकू की खेती का इलाका लगातार कम किया जाना चाहिए। तंबाकू उत्पाद और शराब के छद्म विज्ञापनों से भी सख्ती से निपटना होगा।
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विज्ञापन पर प्रतिबंध के बावजूद ये उसी नाम के दूसरे उत्पादों के सहारे अपना विज्ञापन खूब धड़ल्ले से कर रहे हैं। कोई केसर बता रहा है, तो कोई कामयाबी का राज। फिल्मी कलाकारों का उपयोग हो रहा है। इसका खास तौर पर हमारी युवा पीढ़ी पर बहुत गंभीर असर पड़ रहा है। इस तरह हमें मांग और आपूर्ति दोनों को कम करने की दिशा में पहल करने वाले सभी उपायों को एक साथ अपनाना होगा, ताकि खास तौर पर अपनी युवा पीढ़ी और गरीब आबादी को इस खतरे में फंसने से बचाया जा सके।
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