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केमिकल हमलों के खतरे के बीच दुनिया

आधुनिक युग में औद्योगिक विकास की धुन में खतरनाक रासायनिक पदार्थों का भंडार जमा किया जा रहा है और इससे अन्य खतरे भी उत्पन्न हो गये है। लेबनान की भयावह घटना के बाद जरूरत इस बात की है कि दुनिया भर में स्थापित केमिकल उद्योग को लेकर मजबूत वैश्विक नीति बने और इस पर कड़ाई से काम किया जाये।

नई दिल्लीAug 10, 2020 / 05:02 pm

shailendra tiwari

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डॉ.ब्रह्मदीप अलूने, टिप्पणीकार

अशांत समन्दर कब तबाही का मंजर पैदा कर दे यह अकल्पनीय होता है,ऐसा ही कुछ रासायनिक भंडार से उत्पन्न अकस्मात खतरों की भयावहता को लेकर भी है जिसके प्रभावों का अंदाजा लगाना मुश्किल है। दरअसल भूमध्यसागर के पूर्वी तट पर स्थित लेबनान ने करीब 7 सालों से राजधानी बेरुत के पोर्ट पर एक गोदाम में अवैध रूप से पकड़े गए साढ़े सत्ताईस हजार टन अमोनियम नाइट्रेट का भंडार जमा कर रखा था। दुनिया भर में कृषि उर्वरक और विस्फोटक के रूप में इस्तेमाल किया जाने वाला अमोनियम नाइट्रेट इतना खतरनाक होता है कि 100 से 150 किलो की इसकी मात्रा से ही विस्फोट हो जाये तो कम से कम तीन किलोमीटर का पूरा इलाक़ा तबाह हो सकता है। अमोनियम नाइट्रेट एक गंधहीन रसायन है,यह साधारण ताप व दाब पर सफेद रंग का क्रिस्टलीय ठोस है। कृषि में इसका उपयोग उच्च-नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक के रूप में तथा विस्फोटकों में आक्सीकारक के रूप में होता है। यह खतरनाक होने के बाद भी सर्व सुलभ है,क्योंकि इसका उपयोग कई कार्यो में किया जाता है। रासायनिक उद्योग कच्चे माल को औद्योगिक रसायनों में बदल देते है और इसके बहुआयामी जरूरत के कारण इसे अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है।

लेबनान की सरकार ने देश में दो सप्ताह का आपातकाल घोषित किया है लेकिन इसका खतरा और प्रभाव कितना होगा,यह किसी को पता नहीं। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि अमोनियम नाइट्रेट का प्रभाव दीर्घकालीन हो सकता है और इसकी मात्रा इतनी ज्यादा थी की पर्यावरण की दृष्टि से आनेवाले समय में इसके दूरगामी परिणाम बेहद घातक हो सकते है। इसमें ओजोन परत को नुकसान पहुँचाने की क्षमता है,अत: दुनिया का तापमान बढ़ सकता है। विस्फोट के बाद इससे निकलने वाली गैस एसिड वर्षा का कारण बन सकती है और यह दुनिया के किसी भी इलाके में हो सकती है। लेबनान,भूमध्य सागर के तट पर है और इस महासागर को दुनिया का मध्यबिंदु कहा जाता है,पूर्वी एशिया का यह देश,भूमध्यसागर के कारण एशिया के साथ अफ्रीका और यूरोप से भी जुड़ा है। इसके विस्फोट से रासायनिक जहरीले तत्व निकले है और हवा में मिल गये है,हवा का रुख किस और होगा यह कहा नहीं जा सकता है। यदि एसिड वर्षा से मनुष्य प्रभावित होते है तो साँस लेने में तकलीफ और त्वचा के कैंसर जैसे खतरे हो सकते है। इससे प्रभावित वर्षा समुद्र में होती है तब समुद्री जीवों के लिए यह बेहद घातक हो सकती है और हजारों समुद्री जीव मर सकते है। मैदानी इलाकों में होने पर इससे मिट्टी में खतरनाक रसायन शामिल होंगे जिसके परिणाम अंततः प्राणियों और पर्यावरण के लिए ही खतरनाक होंगे।

इस घटना के सामने आने के बाद एक बार फिर यह अंदेशा भी गहरा गया है कि आतंकी इस रसायन का दुरूपयोग करने की और प्रवृत्त होंगे और ऐसा करके वे दुनिया की किसी भी भाग में भारी तबाही मचा सकते है। आधुनिक युग में औद्योगिक विकास की धुन में खतरनाक रासायनिक पदार्थों का भंडार जमा किया जा रहा है और इससे अन्य खतरे भी उत्पन्न हो गये है। नार्को टेररिस्म के साथ अमोनियम नाइट्रेट की तस्करी के मामलें भी लगातार सामने आये है और भारत में कुछ आतंकियों हमलों में जांच एजेंसियों ने अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल की बात स्वीकार की है,इसमें वाराणसी,मालेगांव,दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर, हैदराबाद,पुणे और बोधगया ब्लास्ट शामिल है। इस समय भारत में अमोनियम नाइट्रेट की मुक्त आवाजाही प्रतिबंधित है। 2011 में मुंबई के झावेरी बाजार में हुए बम धमाकों में अमोनियम नाइट्रेट के इस्तेमाल के बाद केन्द्र सरकार ने अमोनियम नाइट्रेट को विस्फोटक अधिनियम-1884 के तहत ‘विस्फोटक’ पदार्थ घोषित कर दिया था। इसके साथ ही इसे बेचने पर भी पूरी तरह से रोक लगा दी गई थी। 2011 में सरकार ने आतंकी हमलों में इसके उपयोग की आशंकाओं के चलते इसे लेकर व्यापक दिशा निर्देश जारी किये थे। इसके बाद भी देश के कई इलाकों में अमोनियम नाइट्रेट की तस्करी करने वाले लगातार पकड़े जाते रहे है।

केमिकल का उत्पादन,पहुँचाने की आसान प्रक्रिया,छुपाने में आसान और रख रखाव में भी सहज होने से आतंकवादी इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर बिना परेशानी के पहुंचा सकते है और इससे होने वाला विनाश भयावह हो सकता है। केमिकल माड्यूल का उपयोग,उद्देश्य और इसकी पहचान करना भी आसान नही है। 2018 में इंदौर में डारेक्टरेट ऑफ़ रेवेन्यू इंटेलिजेंस ने डीआरडीई के वैज्ञानिकों की मदद से एक अवैध फैक्ट्री से 9 किलोग्राम फेंटानिल केमिकल ज़ब्त किया था। इस जानलेवा केमिकल के साथ पकड़ा गया आरोपी एक युवा वैज्ञानिक था।इस घटना से पूरी दुनिया सकते में आ गई और भारत की खुफियां एजेंसियों के लिए भी चुनौती बढ़ गई क्योंकि इसे रोकना,पहचान करना या काबू पाना आसान नहीं है। 2016 में अफगानिस्तान की सीमा सुरक्षा बल ने 9700 किलोग्राम अमोनियम नाइट्रेट से लदी एक पाकिस्तानी ट्रक को बरामद किया था। अफगानिस्तान में कुख्यात आतंकी संगठनों की उपस्थिति से खतरा और भी बढ़ जाता है।

केमिकल गैस के प्रभाव बेहद घातक होते है और यह सामूहिक विनाश का कारण बन सकती है। यह पर्यावरण के साथ स्नायु तंत्र को प्रभावित करती है और इसकी पहचान करना भी आसान काम नहीं है। इसी श्रृंखला में मस्टर्ड गैस,मस्टर्ड नाइट्रोजन और लिवि साईट जैसे रासायनिक तत्व भी आते है। इनका प्रभाव दीर्घकालीन और अत्यंत घातक होता है। सायनाइड का प्रयोग तो लिट्टे ने बखूबी किया भी था और वे सुरक्षा एजेंसियों के पकड़ में आने से बचने के लिए इसका उपयोग करते थे। जिस प्रकार फेंटानिल को लेब या उद्योग में आसानी से बनाया जा सकता है उसी प्रकार फासजीन या डाई फासजीन गैस होती है। स्नायु तंत्र पर घातक प्रभाव डालने वाली इस गैस को भी सरल और सस्ते उपाय द्वारा छोटे उद्योगों में आसानी से उत्पादित किया जा सकता है। फॉसजेन को अब तक के सबसे घातक रासायनिक हथियारों में गिना जाता है। प्लास्टिक और कीटनाशक बनाने में इस्तेमाल होने वाली फॉसजेन गैस रंगहीन होती है। फॉसजेन से संपर्क में आते ही इंसान की सांस फूल जाती है, कफ बनने लगता है, नाक बहने लगती है। अमोनियम नाइट्रेट को लेकर भी यह आशंका बढ़ गई है। प्रथम विश्व युद्द में भी केमिकल हमलों के कारण ही लाखों लोग मारे गए थे।

बहरहाल लेबनान की भयावह घटना के बाद जरूरत इस बात की है कि दुनिया भर में स्थापित केमिकल उद्योग को लेकर मजबूत वैश्विक नीति बने और इस पर कड़ाई से काम किया जाये। अधिकांश देशों में केमिकल विस्फोट या केमिकल हमलों से बचने के संसाधन नाकाफी है। लेबनान में अमोनियम नाइट्रेट के विस्फोट से प्रभावितों की मदद के लिए दुनिया भर के देश सामने आये है जबकि लेबनान की सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर अपनी असमर्थता जताने में देर नहीं की। जाहिर है इस प्रकार की घटनाएं सामूहिक विनाश का कारण बन सकती है, इसको रोकने के लिए रासायनिक उद्योगों की संख्या को सीमित करने की जरूरत है। इसके साथ ही रासायनिक पदार्थों का उपयोग करने वाले लोगों,संस्थानों और शोध केंद्र की गतिविधियों के साथ उससे जुड़े कर्मियों पर कड़ी नजर,इसके व्यापार पर कड़ा सरकारी नियंत्रण और वैश्विक स्तर पर सुरक्षा एजेंसियों में बेहतर समन्वय कायम करना समय की मांग है।

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