देश में सामाजिक सद््भाव और संतुलन स्थापित करना सबसे जरूरी है, ताकि प्रत्येक नागरिक शांति से अपना जीवनयापन कर सके। एक सक्रिय उपभोक्ता की तरह वह अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे सके। साथ ही डेटा और सांख्यिकीय प्रणाली को सटीक बनाना भी जरूरी है। चूंकि स्वास्थ्य, शिक्षा और कौशल विकास राज्य की सूची से जुड़े विषय हैं। इसलिए केंद्र सरकार राज्यों को उदारतापूर्वक संसाधन को उपलब्ध कराए। सरकार को जीएसटी परिषद को एक राज्य वित्त मंत्री परिषद में परिवर्तित करना होगा, जिसकी अध्यक्षता पुरानी वैट परिषद की तरह एक राज्य के वित्त मंत्री द्वारा की जाए। इस परिषद के क्षेत्राधिकार में जीएसटी से जुड़े व अन्य वित्तीय मामले होने चाहिए। वित्त आयोग को एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री की अध्यक्षता में एक स्थाई निकाय में बदलना होगा, जो बजटीय आवंटन, जवाबदेही आदि को आधिकारिक रूप से संभाले।
हमें प्रशासनिक सुधारों की आवश्यकता है। अभी के प्रशासनिक अधिकारी विकास की मानसिकता के साथ शासन करने में अक्षम हैं । इनमें से अधिकतर को जवाबदेही के विपरीत प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे सिस्टम में जवाबदेही की कमी रहती है। रंगे हाथों भष्टाचार व दुर्भावना के मामलों को छोड़कर, गलती करने वालों को शायद ही दण्डित किया जाता है। भ्रष्ट अधिकारी प्रभावी जवाबदेही प्रणाली के अभाव में बहाल ही नहीं, पदोन्नत तक हो जाते हैं। जैसा कि हम ‘सम्पूर्ण सरकार’ के दृष्टिकोण पर जोर देते हंै। इस दृष्टिकोण को शासन प्रणाली में सम्मिलित करने के लिए पीएमओ और सीएमओ में एक नीति समन्वय इकाई की जरूरत है। इसकी अध्यक्षता एक विख्यात विशेषज्ञ द्वारा होनी चाहिए, ताकि नीति समन्वय में मदद मिल सके और निवेशकों की शिकायतों का समाधान हो सके। भ्रष्टाचार और गैर-समावेशी तरीके से तैयार किए गए कानून हमारे व्यवसाय करने व जीवनयापन में प्रमुख बाधाएं हैं। वास्तव में, 1991 के आर्थिक सुधारों ने हमारी अर्थव्यवस्था को लाइसेंस राज से तो मुक्त कर दिया, लेकिन इंस्पेक्टर राज से नहीं बचा पाए। हम जानते हैं कि संकट की स्थिति भारी परिवर्तन की राह पर ले जाती है।
1991 में आर्थिक सुधार गंभीर वित्तीय समस्याओं के कारण शुरू हुए थे। इन सुधारों ने ज्यादातर नागरिकों को लाभ पहुंचाया है, जिसमें तीस करोड़ से अधिक लोगों को गरीबी से बाहर निकालना शामिल है। अदालतों में बड़ी संख्या में मुकदमे लम्बित हैं। अदालतों का बोझ कम करने के लिए व्यापक न्यायिक सुधारों की आवश्यकता है। साथ ही सतत विकास को मापने के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से अधिक समावेशी संकेतकों को आधार बनाने पर ध्यान देना होगा।