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जनशक्ति को पशुपालन से जोड़ें

कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच पलायन कर अपने घरों की और लौटने वालों को गांवों में पशुपालन से जोड़ा जा सकता है। स्वरोजगार की दिशा में यह बड़ा कदम साबित होगा।

नई दिल्लीJun 10, 2020 / 01:38 pm

shailendra tiwari

डाॅ. सत्यनारायण सिंह , रि.आईएएस

कोरोना संक्रमण के खतरे की बीच देश भर में प्रवासी श्रमिकों का पलायन हुआ तो कमोबेश सभी जगह अब नई चिंता खड़ी हो गई है कि पलायन कर अपने घरों को लौटी इस बड़ी जनशक्ति का उपयोग कैसे हो ? ज्यादातर श्रमिक अर्धकुशल या अकुशल भी हैं। ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार पशुपालन इस बड़ी आबादी को रोजगार दे सकता है। भारत के पांच लाख 80 हजार गांवों में लगभग 74.2 करोड़ लोग आबाद हैैं। इनमें कृषक, खेतीहर मजदूर, पशुपालक, लघु व्यापारी, शिल्पियों व सेवा करने वाले परिवारों का बाहुल्य हैै। भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए ग्रामीणों का सामाजिक व आर्थिक विकास एक अहम मूलभूत आवश्यकता है। भारत में ऐसी अर्थव्यवस्था रही है जिसे अपना कर प्रत्येक गांव अपनी आधार भूत जरूरत के लिए आत्मनिर्भर थे। कृषि की प्रधान सदियों पुरानी भारतीय संस्कृति के अनुरूप, पशु मुख्यतः गाय, सदैव कृषि कार्यो में सहायक रहे है। पशुपालन व्यवसाय प्राथमिक व निंरतर रहा है। राष्ट्रीय आय का 50 प्रतिशत योगदान कृषि से है तो उसमें 20 प्रतिशत पशु से है। देश में लगभग 44 करोड़ से अधिक गाय, भैंस, ऊंट, बकरी, मुर्गियां व भेड़ें हैं।
भारत में दुधारू पशुओं की विशाल आबादी, पशु विश्व जनसंख्या की लगभग 29 प्रतिशत है। भारत में दूध जमा करने का मजबूत ढ़ांचा, अन्य देशों के मुकाबले सस्ता श्रम व संवर्धन सुविधायें व 1970 में श्वेत क्रान्ति के कारण विश्व का एक तिहाई (लगभग 7.81 करोड़ टन) दूध का उत्पादन होता है। पशुओं का उपयोग कृषि, परिवहन, चमड़ा, ऊन उद्योग, वस्त्र उद्योग, डेयरी उद्योग, आदि में होता है। पशुपालन द्वारा स्वरोजगार के अवसर पैदा कर, गरीबी निवारण हेतु कमजोर व पिछडे़ वर्गाे, बालकों , महिलाओं, वृद्धों व विकलांगों को खाद्यान रक्षा व बुनियादी सुविधायें मुहैया कराने तथा सामाजिक असंतुलन को दूर करने के लिए किया जा सकता है।

राजस्थान का ही उदहारण लें तो यहाँ पशुपालन एक जीवन शैली है, राजस्थान के बड़े शुष्क व अर्धशुष्क भू भाग में महत्वपूर्ण सहायक उद्योग है व राजस्थान की अर्थव्यवस्था व रोजगार में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पशुधन का सर्वांगीण विकास व विस्तार एक अनिवार्यता है। पशुधन का विकास कृषि की सर्वांगीण प्रगति का आवश्यक अंग है। कृषि पशुपालन के साथ सामंजस्य अत्यन्त आवश्यक है। पश्चिमी शुष्क क्षेत्रों में कृषकों का स्वास्थ्य, आर्थिक जीवन, पशुओं की संख्या व किस्म पर निर्भर करता है। पश्चिमी क्षेत्र में जीविका का मुख्य साधन है यद्यपि अकाल व प्राकृतिक विपदाओं में प्रतिकूल असर पड़ता है। रोजगार, परिवहन, अकाल, कृषि कार्य, चमड़ा व खाल, पोष्टिक पदार्थाें की उपलब्धता में पशुपालन की महत्वपूर्ण भूमिका है।

न केवल राजस्थान बल्कि समूचे देश में विकासशील अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पशुधन को रोजगार एवं दुग्ध उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण माना गया है। ऐसे में विभिन्न योजनाओं से रोजगार वृद्धि के लिए पशु सम्पदा को विकास व डेयरी व्यवसाय को उच्च प्राथमिकता प्रदान की चाहिए। नहरी इलाकों में तो भेड़पालन ऊन व्यवसाय का माध्यम है।

डेयरी उद्योग निजी, सहकारी, सार्वजनिक तीनों क्षेत्र में है। असंगठित क्षेत्र की इकाईयों व सहकारी क्षेत्र का उल्लेखनीय योगदान है। पशुओं के लिए क्रय-विक्रय बाजार का अभाव, अशिक्षा, चरागाह की कमी, पूंजी का अभाव, उत्तम चारे का अभाव, संतुलित आहार व खनिज तत्व की कमी, रोग विरोधी टीके व उपचार की कमी के कारण कठिनाईयां उत्पन्न होती है। दुधारू पशुओं में कम दूध की मात्रा, अनुपयोगी पशुओं की बड़ी संख्या, पशु रखने की मजबूरी अच्छी नस्ल व चारे का अभाव, देशी नस्ल सुधार का दोषपूर्ण अभिजनन, अस्वास्थकर स्थान, समय पर सुलभ उचित इलाज का अभाव है। वैज्ञानिक व कृत्रिम गर्भाधान, नियमित प्रजनन, संतुलित पशु आहार, संक्रमण रोगों से बचाव, विपणन में सुधार तथा पशुपालकों को शिक्षा प्रसारण की कमी है।

बेकार पशुओं की देशी नस्ल अनार्थिक गाय, भैसों की बहुतायत, दोषपूर्ण अभिजनन अनार्थिक अस्वास्थकर स्थान, उचित इलाज नहीं होना किसान की निर्धनता, सरकारी विभागों की उपेक्षा व उदासीनता प्रमुख कमियां हैं। गाय, भैसों की बहुतायत, अपर्याप्त पोषाहार, पशु स्वास्थ्य व वैज्ञानिक प्रबन्ध के अभाव के कारण सरकारी कार्यक्रम का पूरा लाभ नहीं मिलता। संघन मवैशी कार्यक्रम व परियोजनाएं, गौशाला विकास, चारा पोषाहार विकास योजनायें, संघन व समन्वित ग्रामीण विकास की सफल क्रियान्विति से इस व्यससाय को प्रोत्साहन दिया जा सकता है।

गौशाला विकास, पशुरोग सर्वेक्षण व रोग निदान, पशुआहार व विपणन लम्बे समय सुरक्षित रखने हेतु भंडारण, प्रसंस्करण, परिवहन, पैकिंग में सुधार आदि कदमों से पशुपालन को अधिक लाभप्रद बनाया जा सकता है। बडे़ नदी बेसिन चम्बल, इन्द्रागांधी नहर, उदयपुर, बनास के तालाबों आदि में बडे़ पैमाने पर मत्सय उत्पादन होता रहा है जिन्हें सुचारू प्रबन्धन व उत्तम मत्सय बीज से बढाया जा सकता है व आय के साथ रोजगार प्रदान किया जा सकता है।

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