जवाब मे कुछ लोग कह सकते हैं कि चिकित्सा के क्षेत्र मे हुई प्रगति के चलते व्यक्ति की औसत आयु मे वृद्धि हो चली है और जो साधन सुविधाएं किसी जमाने मे समाज के आभिजात्य वर्ग तक ही सीमित थी वे अब सामान्य जन की पहुँच मे भी आती जा रही हैं। बात सही तो है लेकिन अधूरी है क्योंकि ध्यान इस ओर भी दीजिए कि क्या इंसानी शरीर मे पहले जैसी ताकत आज भी हैं ?, क्या आज हम बिना कृत्रिम विटामिन-प्रोटीन और दवाओं के अपने पूर्वजों जितने साल भी जीवित रह सकते हैं ? ऐसे प्रश्नों के उत्तर हमे म्यूजियम मे रखे आभूषणों, वस्त्रों और शस्त्रों को देखने मात्र से ही मिल जाने चाहिए। यही हाल कमोबेश हमारी मानसिक क्षमताओं का भी होता जा रहा है।
कोरोना के शोर से पहले चारों ओर आर्टिफिसियल इंटेलिजेन्स का शोर था और जीवन मे टेक्नोलोजी के उत्तरोत्तर बढ़ते इस्तेमाल को लेकर हम बेहद उत्साहित थे। रोबोट और मानवरहित उपग्रहों के बाद ड्राईवरलेस गाड़ियों का इंतज़ार कर रहे थे। अपने जीवन काल मे ही न जाने ऐसे कितने ही कल्पनातीत और असंभव प्रतीत होने वाले कार्यों को घटित होते देखने की ओर बढ़ रहे थे । किसी जमाने मे दिमाग से की जाने वाली छोटी सी गणना मे लगने वाले समय के स्थान पर कैल्कुलेटर से बड़ी से बड़ी गणना को तुरंत होते देख रोमांचित हो उठते थे; कुछ ही टेलीफ़ोन नंबर याद करने के बदले टेलीफ़ोन की एड्रैसबुक मे हजारों नंबर दर्ज़ होते देख विस्मित होते थे तथा कितने ही ऐसे दुष्कर कार्य थे जिन्हें मशीनों द्वारा बड़ी आसानी से होता देख खुशी से झूम उठते थे।
असल मे बात यह है कि मशीन, तकनीक और कम्प्यूटर टेक्नालोजी ने आज जीवन के अधिकांश क्षेत्रों मे ऐसा बहुत कुछ कर दिखाया जिसकी कभी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। इसलिए यह तो मानना ही पड़ेगा कि तकनीकी प्रगति ने हमारे जीवन को अपेक्षाकृत अधिक सुगम और उत्पादक बनाया है। मसलन कुछ बरस पहले कहीं भी जाने के लिए रास्ता ढूँढने मे काफी मशक्कत करनी पड़ती थी जबकि आज यह काम गूगल मैप की मदद से बड़ी आसानी से हो रहा है। इसी तरह किसी से फोन पर क्या बात हुई इसे याद करने के लिए पहले दिमाग पर काफी ज़ोर डालना पड़ता था जबकि आज कॉल रिकॉर्डिंग की सहायता से यह काम स्वतः शत-प्रतिशत संभव है और वह भी बिना समय और दिमाग लगाए।
लेकिन अब समय आ गया है तकनीकी सुगमता के कारण उत्पन्न हो रही मानसिक स्थितियों पर ध्यान देने का भी, जिनमे सबसे प्रमुख है दिमागी मशक्कत की कमी के चलते हमारी दिमागी क्षमता का क्षीण पड़ते जाना। इंसानी दिमाग के बारे मे कहा ही जाता हैं कि इसे जितना अधिक इस्तेमाल किया जाए यह उतना ही अधिक परिष्कृत होता है, इसका मतलब यह हुआ कि इसका कम इस्तेमाल इसे कम परिष्कृत और न के बराबर इस्तेमाल इसे न के बराबर इस्तेमाल योग्य बना सकता है। जहां तक विज्ञान का सवाल है उसे इससे कोई खास फर्क नही पड़ेगा क्योंकि वह इसकी भरपाई प्रोग्रामिंग से चलने वाले रोबोट और आर्टिफ़िसियल इंटेलिजेंस से कर सकता है। लेकिन जो लोग इंसानी क्षमताओं मे बढ़ोत्तरी देखना चाहते हैं उन्हें चिंता है कि कहीं यह वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति आज के मानव को पंगू तो नही बना रही है ?
दरअसल वैज्ञानिक आविष्कारों का मूल ध्येय इंसानी जीवन को सुविधाजनक और सुगम्य बनाना रहा है और इसमे आधुनिक विज्ञान ने काफी हद तक सफलता भी पाई है। कई घंटों मे होने वाला काम अब चंद सेकंडों और कई व्यक्तियों का काम एक व्यक्ति या बल्कि बिना व्यक्ति के भी होने लगा है। सुगमता और सुविधा की चाहत ने जहां विज्ञान और तकनीक पर निर्भरता को बढ़ाया है वहीं शारीरिक और मानसिक क्षमता को कुंद करने का भी काम किया है, जिसका ठीकरा अकेले विज्ञान के सिर फोड़ना उचित नहीं होगा। यह चूक हमसे भी हुई है।
विज्ञान ने कैल्कुलेटर और गूगल मैप का आविष्कार इसलिए किया था कि इससे इंसानी जीवन आसान होगा तथा समय एवं संसाधनों की बचत होगी। विज्ञान ने कभी नहीं कहा कि कैल्कुलेटर और गूगल मैप के जमाने मे लोग अपने दिमाग का इस्तेमाल करना ही छोड़ दें। कभी पाश्चात्य लोगों का हम यह कहकर उपहास उड़ाते थे कि वे टू प्लस टू का जवाब देने के लिए भी कैल्कुलेटर की सहायता लेते हैं। जबकि ये काम अब आर्यभट्ट की संततियाँ भी करने लगी हैं। पहले कहीं भी जाने से पहले उस स्थान का रूटमैप/ खाका हमारे दिमाग मे स्वतः ही बन जाता था जबकि अब आलम यह है कि आसपास के स्थानों पर जाने के लिए भी हमें गूगल मैप चाहिए।
ऐसे साधनों का आविष्कार दिमागी और शारीरिक क्षमता मे इजाफा करने के उद्देश्य से किया गया था न कि क्षमता घटाने या कुंद करने के उद्देश्य से । यह विज्ञान की नही हमारी कमजोरी है जिसके चलते हम दिमाग के कम इस्तेमाल की प्रवृति के शिकार होते जा रहे हैं। इसलिए टेक्नोलोजी के बढ़ते इस्तेमाल के दौर मे आज सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि हम इसपर बढ़ती अत्यधिक निर्भरता के प्रति सजग रहें और अपनी मानसिक और शारीरिक क्षमताओं के संवर्धन के प्रति भी सचेत रहें । ऐसा करना स्वस्थ्य जीवन जीने और कोरोना जैसे वाइरसों से बचने के लिए बेहद जरूरी है ( लेखक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग मे कार्यरत भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी)