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ब्लूमबर्ग से… गुप्तचर सेवा के पूर्व कर्मियों की नियुक्ति से उपजा गंभीर संकट

2019 में यूएई ऑपरेशन के दौरान पहली बार सामने आया कि अमरीकी गुप्तचर विभाग के पूर्व कर्मी बतौर साइबर जासूस कथित तौर पर सरकार के आलोचकों की जासूसी कर रहे थे।

नई दिल्लीSep 23, 2021 / 10:27 am

Patrika Desk

ब्लूमबर्ग से... गुप्तचर सेवा के पूर्व कर्मियों की नियुक्ति से उपजा गंभीर संकट

ब्लूमबर्ग से… गुप्तचर सेवा के पूर्व कर्मियों की नियुक्ति से उपजा गंभीर संकट

बॉबी घोष (स्तम्भकार)

वर्ष 2012 में एक ईरानी कम्प्यूटर वायरस ‘शमून’ (Shamoon) ने मध्य पूर्व की दो बड़ी ऊर्जा कम्पनियों सऊदी अरामको और कतर की रास गैस के हजारों कम्प्यूटर्स का डेटा साफ कर दिया। शमून स्टक्सनेट (Stuxnet) जैसा नहीं है। इजरायली डिजिटल हथियार स्टक्सनेट ने इस इस्लामिक गणतंत्र का परमाणु केंद्र नष्ट किया लेकिन ऊर्जा कम्पनियों के ऑपरेशंस को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचाया। सऊदी अरब, कतर, यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई), कुवैत और ओमान जैसे देश साइबर हमलों से सुरक्षा के लिए अमरीका से विशेषज्ञ सलाह की मांग करने लगे। तब ओबामा प्रशासन ने इनकी मदद भी की।

साइबर सुरक्षा से जुड़ी अमरीकी फर्मों ने बढ़ती मांग के मद्देनजर अमरीकी इंटेलीजेंस एजेंसी से साइबर ऑपरेटिव्स और एनालिस्ट को इतनी तन्ख्वाह ऑफर की कि वे फरारी खरीद लें। उनके जॉब प्रोफाइल में शामिल था – हैकर्स से रक्षा, उनका प्रतिकार और साइबर हमलावरों को सेंध न लगाने देना। कुछ अन्य को आतंकवाद रोधी अभियानों में लगा दिया गया। पहले वे देश के लिए यह काम कर रहे थे और अब इन फर्मों के लिए। किसे पता था कि यह मुसीबतों की शुरुआत है।

अमरीकी गुप्तचर विभाग को पता लगा कि उनके कुछ पूर्व कर्मचारी साइबर जासूस बन चुके हैं और असंतुष्ट राजनेताओं, दक्षिणपंथियों व पत्रकारों के फोन व कम्प्यूटर में घुसपैठ कर रहे हैं। इनके निशाने पर कुछ अमरीकी नागरिक भी थे। 2019 में यूएई ऑपरेशन के दौरान पहली बार सामने आया कि ये साइबर जासूस कथित तौर पर सरकार के आलोचकों की जासूसी कर रहे थे। इससे पहले यूएई पर इजरायली कंपनी एनएसओ ग्रुप द्वारा बनाए गए स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर दुनिया भर के पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और व्यापार से जुड़े लोगों के स्मार्टफोन हैक करने का आरोप लगा था।

जनवरी माह में ही सेंट्रल इंटेलीजेंस एजेंसी (सीआइ) के काउंटर इंटेलीजेंस प्रमुख शीतल टी. पटेल ने एक अप्रत्याशित कदम के तहत सेवानिवृत्त अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि वे किसी भी विदेशी सरकार के लिए काम नहीं करेंगे। हालांकि उन्होंने साइबर जासूसी पर विशेष चिंता नहीं जताई थी लेकिन गुप्तचर विभाग से जुड़े लोग समझते थे कि असल चिंता यही है। अचरज की बात है कि तीन लोगों ने स्वीकार किया है कि उन्होंने अमीरात की सरकारी एजेंसियों और एक प्राइवेट कम्पनी के साथ अमरीकी रक्षा विभाग की महत्त्वपूर्ण तकनीक साझा की थी।

कम्प्यूटर धोखाधड़ी और निर्यात नियंत्रणों के उल्लंघन के आरोपों से बरी होने के लिए इन्हें करीब 1.7 मिलियन अमरीकी डॉलर चुकाने पड़े थे। मुसीबत यहीं नहीं टली। अमरीका अपने सहयोगी देशों की मदद के लिए अत्याधुनिक सैन्य हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर बेचता आया है और उन्हें साइबर हमलों से सुरक्षित करना अमरीका के हित में है। कुछ नियम हैं, जिनके तहत इन साइबर टूल्स का इस्तेमाल अमरीकियों के खिलाफ नहीं किया जा सकता। विदेशी सरकारों को सेवा प्रदान कर रही कम्पनियों को अमरीकी विदेश व रक्षा विभाग और राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी से अनुमति लेनी होती है। कम्पनियों के लिए लक्ष्मण रेखा तय है। उक्त तीन पूर्व गुप्तचर अधिकारियों ने अपने नियोक्ताओं को ‘जीरो क्लिक’ की ऐसी ताकत दे दी जिससे उनकी पहुंच लाखों डिवाइस तक हो गई।
(ब्लूमबर्ग से)

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