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patrika opinion गौरव के साथ संकल्प और चिंतन का दिवस

संविधान में जातिवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ कड़े प्रावधान के बावजूद दोनों व्याधियां देश के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई हैं। सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों से भी देश को मुक्ति नहीं मिली है। जाहिर है, स्वाधीनता सेनानियों के कई सपने साकार नहीं हो पाए हैं।

Aug 15, 2022 / 04:49 pm

Patrika Desk

patrika opinion गौरव के साथ संकल्प और चिंतन का दिवस

patrika opinion गौरव के साथ संकल्प और चिंतन का दिवस

आज भारत की आजादी की 75वीं सालगिरह पर हर भारतीय का गौरवान्वित होना स्वाभाविक है। दो सौ साल के ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति की स्मृतियों के साथ-साथ वे उपलब्धियां भी इस गौरव का आधार हैं, जो देश ने हासिल कीं। ये 75 साल ईंट से ईंट, कंधे से कंधा और हौसले से हौसले के जुड़ाव का स्वर्णिम इतिहास रच चुके हैं। अगर कभी-कभी परेशान करने वाली आंधियां चलीं, तो विकास-रथ के पहिए भी सतत घूमते रहे। हर मोर्चे पर देश मजबूत हो रहा है। विज्ञान की सौगातों से बढ़ी सुविधाएं व जीवन-स्तर में बदलाव को महसूस किया जा सकता है।
एक अहम सवाल यह है कि क्या वे सभी सपने साकार हो चुके हैं, जो आजादी के बाद के भारत को लेकर स्वाधीनता संग्राम के सेनानियों ने देखे थे? अमृत महोत्सव के मौके पर इस दिशा में भी आत्म-चिंतन और आत्म-विश्लेषण किया जाना चाहिए। देश की 75 साल की प्रगति के ढेरों आंकड़े दिए जा सकते हैं। प्रति व्यक्ति आय और सकल घरेलू उत्पाद में साल-दर-साल हो रही बढ़ोतरी का नक्शा खींचा जा सकता है। सामाजिक, राजनीतिक और शैक्षणिक उपलब्धियों की भी लंबी फेहरिस्त रखी जा सकती है। पर क्या स्वाधीनता सेनानियों ने सिर्फ इन्हीं पहलुओं के इर्द-गिर्द भारत के नव-निर्माण की कल्पना की थी? क्या पिछले 75 साल में हर भारतीय नागरिक के आंतरिक चरित्र का निर्माण किया जा सका? और, सवाल यह भी कि क्या 1947 के मुकाबले देश के विभिन्न वर्ग, भाषा-समुदाय और संप्रदायों के लोग एक-दूसरे के ज्यादा करीब आ पाए? क्या एक नागरिक की पीड़ा दूसरे नागरिक को व्यथित करती है? क्या विद्वेष की विष-बेल देश की प्राणवायु पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डाल रही है? कई और बुनियादी सवाल हैं, जिन्हें इस मौके पर टटोला जाना चाहिए। दरअसल, जातिवाद और सांप्रदायिकता से मुक्त भारत का सपना आजादी की लड़ाई से भी काफी पहले तब से देखा जा रहा है, जब संत कबीर और गुरु नानक देव लोगों को जगाने में जुटे थे। संविधान में जातिवाद और सांप्रदायिकता के खिलाफ कड़े प्रावधान के बावजूद दोनों व्याधियां देश के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई हैं। सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों से भी देश को मुक्ति नहीं मिली है। जाहिर है, स्वाधीनता सेनानियों के कई सपने साकार नहीं हो पाए हैं।
आजादी के अमृत महोत्सव पर हर नागरिक को इन अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेना चाहिए। हर मोर्चे पर जागरूकता से ही तस्वीर बदली जा सकती है। अगर एकजुट प्रयासों से देश ने ढेरों उपलब्धियां हासिल की हैं, तो सतत जागरूकता से भविष्य को और संवारा जा सकता है।

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