अस्पतालों में एक ही पलंग पर दो-दो मरीजों को भर्ती करना पड़ रहा है। बरामदों में रखकर मरीजों का उपचार किया जा रहा है। साफ है कि महामारी के प्रकोप को झेलने के बावजूद अस्पतालों में पर्याप्त इंतजाम नहीं हो पाए हैं। हालात यह हैं कि अभी तक भी चिकित्सकीय अमला डेंगू, बुखार के इस हमले से बचाव की कोई कारगर रणनीति नहीं बना पाया है। इसे मौसम में बदलाव का असर भर बताया जा रहा है। ब्लड बैंकों में प्लेटलेट्स की लगातार हो रही कमी स्थिति की गम्भीरता की ओर इशारा कर रही है।
कोरोना महामारी के दौर में कोई नहीं जानता कि कौन शख्स वायरस की चपेट में आया और उसकी इम्युनिटी पर इसका कितना असर पड़ा। कमजोर इम्युनिटी का शिकार हुए शख्स के लिए अब डेंगू या वायरल की चपेट में आना जानलेवा साबित हो सकता है। आए दिन लोगों की इस वजह से जान जाने के समाचार आ रहे हैं। अस्पतालों में संसाधनों की उपलब्धता का हाल तो यह है कि टोंक के जिला अस्पताल में पांच दिन तक नीडल तक मौजूद नहीं थी। एक जिला अस्पताल की यह बानगी भर है। इससे प्रदेश के अन्य अस्पतालों के हालात का अंदाजा तो सहज ही लगाया जा सकता है। हालात के विकट होने के बाद अब सरकार निर्देश देने की स्थिति में आई है। सरकार को अब तो मीटिंग- निर्देश और विशेष अभियान की घोषणा से परे फील्ड में एक्शन मोड में आना होगा। अस्पतालों में मरीजों का उपचार करने में जुटे चिकित्सकों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों को पूरे संसाधन उपलब्ध करवाने होंगे। अस्पतालों की बदहाली के चलते किसी की जान नहीं जानी चाहिए। सबको इलाज मिलना चाहिए। (अ.सिं.)