लोकतांत्रिक प्रणाली में सबके लिए अनुशासन जरूरी
तोडफ़ोड़ पर उतारू हो जाना और मनचाही बयानबाजी कर देना लोकतंत्र के लिए दीमक की तरह है। लोकतंत्र को चलाने के लिए जनता में भी अनुशासन की आवश्यकता होती है।
लोकतांत्रिक प्रणाली में सबके लिए अनुशासन जरूरी
लोकतांत्रिक प्रणाली में सबके लिए अनुशासन जरूरी एन.एम. सिंघवी
प्रशासनिक सुधार मानव संसाधन विकास व जनशक्ति आयोजना समिति, राजस्थान के अध्यक्ष रहे हैं अब्राहम लिंकन ने लोकतंत्र के लिए अवधारणा दी थी कि जनता का राज, जनता के लिए, जनता द्वारा ही किया जाना चाहिए। इस अवधारणा में जो मान्यताएं मानी गई होंगी, वे जनता का शिक्षित होना, जनता की संकुचित मनोवृत्ति न होना, जनता का रूढि़वादी नहीं होना तथा अधिकारों से अधिक देश और समाज के लिए अपने कत्र्तव्य के प्रति जागरूक होना भी सोचकर कहा गया होगा। आज के परिदृश्य में हम सोचें तो क्या हम इन मान्यताओं पर खरे उतरते हैं? लोकतंत्र में हर घटना की प्रतिक्रिया संभव है, परंतु हमें याद रखना चाहिए कि हमारे देश में सत्य और अहिंसा की अवधारणा पर स्वतंत्रता प्राप्त कर लोकतंत्र की स्थापना की गई है।
लोकतंत्र के बारे में और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमारी सोच बन गई है कि हम कुछ भी कर सकते हैं और कुछ भी बोल सकते हैं। हम हर बात के लिए सरकारों पर दोष मढ़ कर अपने कत्र्तव्य की इति श्री समझ लेते हैं। हमारी जनसंख्या के आकार को देखते हुए पुलिस बिना जन सहयोग के अकेले कुछ नहीं कर सकती।
तोडफ़ोड़ पर उतारू हो जाना और मनचाही बयानबाजी कर देना लोकतंत्र के लिए दीमक की तरह है। लोकतंत्र को चलाने के लिए जनता में भी अनुशासन की आवश्यकता होती है। कार्ल माक्र्स ने पूंजीवाद और साम्यवाद के लिए लिखा है कि पूंजीवाद में साम्यवाद के बीज छिपे होते हैं और साम्यवाद में ही पूंजीवाद के बीज छिपे होते हैं। यदि अनुशासित रह कर किसी भी प्रणाली को नहीं अपनाया गया, तो उसके विरोधियों को अवश्य अवसर मिलता है। अब्राहम लिंकन यह कहना भूल गए कि लोकतंत्र में तानाशाही के बीज पलते हैं और तानाशाही में ही लोकतंत्र के बीज पलते हैं। हमें सावधान और अनुशासित रहकर लोकतंत्र को पोषित करना चाहिए।
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