नेता जनहित के लिए नहीं स्वहित के लिए दलबदल करते हैं। दलबदल की प्रवृत्ति प्रलोभन, धन, कुर्सी और ताकत पाने की इच्छा से नियंत्रित है। इसका समाज और जनता से कोई संबंध नहीं है। अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता, यह बात दलबदलू नेताओं पर सटीक बैठती है।
-शुभम वैष्णव, सवाई माधोपुर
………………………………
सभी नेता अपने स्वार्थ के लिए दलबदल करते हैं। अगर किसी नेता को जन सेवा करनी है, तो वह दलबदल क्यों करेगा? उसी पार्टी में रहकर या फिर स्वतंत्र रहकर भी जन सेवा कर सकता है। दल बदलने के पीछे नेताओं का निजी स्वार्थ ही होता है।
-निमत लाल मेनारिया, उदयपुर
……………………….
आमतौर पर केवल सत्तालोलुपता ही दलबदल के पीछे मुख्य भूमिका निभाती है। इसमें वैचारिक प्रतिबद्धता कहीं भी मायने नहीं रखती है। सत्ता में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से या फिर किसी पार्टी का टिकट पाने के आश्वासन पर नेता दलबदल करते हैं। जाहिर है ऐसे दलबदलू नेताओं में सिद्धांत या विचारधारा नाम की कोई चीज नहीं होती। वे केवल अपना निजी स्वार्थ व निजी हितों को ध्यान में रखकर ऐसे निर्णय लेते रहते हैं। जाहिर है ऐसे दलबदलू नेताओं के निर्वाचन क्षेत्र की जनता चुनाव के बाद इनके दलबदल लेने पर स्वयं को ठगा हुआ ही महसूस करती है।
-पूजा शोभित जोशी, लक्ष्मणगढ़, सीकर
…………………….
नैतिक रूप से ठीक नहीं
राजनीति में अवसरवाद बड़ा घातक है। अपनी दाल न गलते देखा अक्सर नेता दूसरे दल में चले जाते हैं। चुनावों के समय ऐसा अक्सर होता है। नेता राजनीतिक माहौल देखकर दूसरे दलों का दामन थाम लेते हैं। वर्तमान में भी यही हो रहा है। अपने स्वार्थों के लिए जिस तरह से नेता पलटी मार रहे हैं, वह नैतिक रूप से उचित नहीं है। सत्ता के लिए हो रहे इस ध्रुवीकरण को रोका जाना चाहिए। राजनीति का आंचल पाक साफ रह सके।
-अमृतलाल मारू, धार, मप्र
……………………………………
ज्यादातर नेता अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए ही दलबदल करते हैं। नेताओं की केवल एक ही सोच होती है और वह है किसी भी प्रकार यानी येन-केन प्रकार से सत्ता में बना रहना। अधिकतर नेताओं को जन हित या देश हित से कोई लेना देना नहीं होता है। वे स्व हित से ऊपर उठते ही नहीं हैं।
-सुशील मेहता,ब्यावर
………………………………
नेता दलबदल जनहित के लिए नहीं, वरन अपने स्वार्थ व अपने मतलब के लिए करते हैं। जनहित व जनसेवा का वादा कर चुनाव लडऩे वाले ज्यादातर नेता स्वार्थ में लिप्त हंै। उनको जनता के दुख दर्द से कोई लेना-देना नहीं है। उन्हें ऐशोआराम के सारे साधन चाहिए।
-लादूलाल पालीवाल सिंगोली
……………
आजकल के नेता स्वार्थी होते हैं। जन हित किस चिडिय़ा का नाम होता है, वे नहीं जानते। जिस दल से उन्हें अधिक अर्थ लाभ होता है, वे उसकी डोर थाम लेते हैं। जन हित से उनका कोई लेना देना नहीं होता है।
-पारस जे. नाहर, चेन्नई
………………………….
आज के नेता गिरगिट की तरह रंग बदलते हंै। वे अपने स्वार्थ की खातिर दलबदल करते हैं, न कि जनहित में। सत्ता के लिए वे कब दलबदल लें कुछ नहीं कहा जा सकता हैं । चुनाव जीतने के बाद भी जो नेता दलबदल करता है, वह तो निश्चित रूप से स्वार्थ के लिए ही करता है।
-सुनील कुमार माथुर, जोधपुर
………………………………
जनहित में दल बदलने के मामले कम ही होते हैं। सांसद या विधायक कार्यकाल पूरा करने से पहले ही दल बदलते हैं, तो इसका कारण जनहित नहीं होता। जनप्रतिनिधि कार्यकाल पूर्ण करने के बाद ही दल बदलने का फैसला लें। दल बदलने से पहले जनता की राय भी लें।
-नरेश पांचाल ्र नागदा
………………………….
आज के अधिकतर नेता सत्ता प्राप्ति की चाह में दलबदल का सहारा लेते हैं। उन्हें अपने आदर्शों, सिद्धांतों और नैतिक मूल्यों से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं होता। विचारधाराओं की विभिन्नता को आदर्श हथियार के रूप में प्रयोग कर जनमत की भावना का खुला उल्लंघन करते हैं। अगर ऐसा ना होता, तो देश को दलबदल कानून की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
……………………….
वर्चस्व की खातिर पार्टी के नेताओं का दल बदलना आज आम बात हो गई है। आम जनता के लिए यह एक सबक है, जो अपने कीमती मतों के माध्यम से अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। देश की प्रमुख पार्टियों के नेताओं ने दल बदलना सामान्य बात मान लिया है। किसी भी पार्टी की पहचान उसके नेताओं और उनके द्वारा किए गए कार्यों पर निर्भर करती है। जब पार्टी के नेता ही पार्टी हितों की बजाय आपसी तनातनी में लगे रहेंगे, तो जनता के सामने कैसा आदर्श प्रस्तुत करेंगे? जनता को ऐसे नेताओं के लिए सोचने की आवश्यकता है।
-डॉ. अजिता शर्मा, उदयपुर
………………………..
आजकल के नेता दलबदल अपने निजी स्वार्थ पूर्ति के लिए करते हैं। वे सत्ता का सुख भोगने के लिए ऐसा करते हैं। आजकल के नेताओं में सिद्धांतों की राजनीति के प्रति आस्था नहीं बची। वे अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए कुछ भी कर सकते हैं।
-छगनलाल, मालपुरा, टोंक