एनसीबी ने जो ड्रग्स जब्त किए हैं वह पिछले बीस साल में सर्वाधिक हैं। ड्रग्स सिंडिकेट के छह सदस्यों को गिरफ्तार कर नशीली दवा लीसर्जिक एसिड डाइएथिलेमाइड (एलएसडी) के 15 हजार पैकेट्स बरामद किए गए हैं। इस नशीली दवा की युवाओं को लत लगने लगी है लेकिन इसका सेवन करने के खतरे भी हजार हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस नशीली दवा के सेवन से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। बात तस्करों के जाल की करें तो डार्कनेट को ड्रग्स तस्करी का सबसे मुफीद तरीका माना जाता है। गुमनामी और कम जोखिम के कारण इसे ट्रेस करना मुश्किल होता है। अध्ययनों से पता चलता है कि 62 प्रतिशत डार्कनेट का उपयोग अवैध मादक पदार्थों की तस्करी के लिए हो रहा है। देखा जाए तो विश्व भर में डार्कनेट का उपयोग कर अवैध व्यापार करने वालों को पकडऩे की सफलता दर बहुत कम रही है।
क्रिप्टोकरेंसी भुगतान और डोरस्टेप डिलीवरी ने डार्कनेट लेन-देन को सरल और आसान बना दिया है। बड़ी चिंता इस बात की है कि ड्रग्स तस्कर लगातार हाईटेक हो रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि सीमा पार के तस्करों ने पंजाब और कश्मीर में ड्रोन के माध्यम से नशीली दवाओं और बंदूकों की आपूर्ति करने जैसी नई तकनीकों को अपनाया है। कोरोना महामारी के बाद परिवहन साधनों पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद मादक पदार्थों के तस्करों ने कूरियर या डाक माध्यमों के जरिए इसका तोड़ निकाल लिया है।
देश में ड्रग्स के काले कारोबार की कमर तोडऩे के लिए केंद्र सरकार की मुहिम के आशातीत परिणाम भी सामने आए हैं। लेकिन, ड्रग्स तस्करी के बदलते तरीकों के कारण इसका नेटवर्क पूरी तरह ध्वस्त नहीं हो पाया है। तस्करी के नेटवर्क को तोडऩे के लिए एनसीबी जैसी सरकारी एजेंसियों को अधिक हाईटेक और चौकन्ना रहकर काम करने की जरूरत है।