आइपीएस अफसर की हत्या की वारदात ऐसे समय हुई है जब केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह कश्मीर दौरे पर हैं। पीएएफएफ पहले भी कई हमलों की जिम्मेदारी ले चुका है। साल भर पहले अक्टूबर में ही पुंछ जिले के सुरनकोट में घात लगाकर किए गए उस हमले की जिम्मेदारी भी इसी संगठन ने ली थी जिसमें सेना के पांच जवान शहीद हो गए थे। यह संगठन 2019 में कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने के बाद से ही सक्रिय हुआ है। यह संगठन सुरक्षा बलों को निशाना बनाने की चेतावनी जारी करता रहा है। कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा खत्म किए जाने के बाद से अलग-अलग नाम से आतंकी सुरक्षा बलों को चुनौती देते कई बार नजर आए हैं। हालांकि इस दौरान हमारे सुरक्षा बलों ने आतंकियों की कमर तोडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी। संसद के बजट सत्र में ही सरकार की ओर से बताया गया था कि अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त 2019 से 26 जनवरी 2022 तक 541 आतंकी घटनाएं हुईं थी जिनमें 439 आतंकी मारे गए। लेकिन चिंताजनक तथ्य यह भी रहा कि आतंकी कार्रवाइयों में इस दौरान सुरक्षा बलों के एक सौ से ज्यादा जवान शहीद हो गए। इसमें संदेह नहीं कि कश्मीर घाटी में सुरक्षा बलों की सतर्कता से आतंकी घटनाओं पर नियंत्रण हुआ है। लेकिन लोकतांत्रिक सरकार के गठन की प्रक्रिया के दौर में व शांति बहाली के प्रयासों को गति मिलते ही वहां अलग-अलग नाम के संगठन ऐसी वारदात कर बैठते हैं।
कश्मीर में आइपीएस की हत्या की इस वारदात के तरीके से यह भी साफ हो गया है कि आतंंककारी लगातार स्थानीय गुमराह युवाओं को नए-पुराने संगठनों से जोडक़र अपनी करतूतों को अंजाम दे रहे हैं। सुरक्षा बलों को अतिरिक्त सतर्कता बरतते हुए आतंकियों के स्थानीय मददगारों को चिह्नित करने के साथ इन्हें सीमा पार से मिलने वाली मदद पर भी निगाह रखनी होगी।