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चेहरा देखो,चरित्र भूलो!

भाजपा ने शुक्रवार को पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना और अरुणाचल प्रदेश में नये प्रदेश अध्यक्षों

Apr 08, 2016 / 11:52 pm

मुकेश शर्मा

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भाजपा ने शुक्रवार को पांच राज्यों- उत्तर प्रदेश, पंजाब, कर्नाटक, तेलंगाना और अरुणाचल प्रदेश में नये प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति का फरमान जारी कर दिया। पंजाब और उत्तर प्रदेश में 2017 में विधानसभा चुनाव होने हैं जबकि कर्नाटक में 2018 के मई से पहले। हाल ही दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने फूलपुर से सांसद केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश, होशियारपुर से सांसद केन्द्र में मंत्री विजय सांपला को पंजाब, शिमोगा से सांसद येदियुरप्पा को कर्नाटक, डॉ. के. लक्ष्मण को तेलंगाना तथा तापिर गाओ को अरुणाचल प्रदेश की कमान सौंपी है।


 स्थापना दिवस पर अमित शाह ने दावा किया था कि भाजपा चतुराई नहीं चरित्र की राजनीति करती है। सिद्धातों के लिए सत्ता भी छोड़ देंगे। चाल, चरित्र और चेहरा उनका ध्येय है और इसी को आगे रखकर पार्टी चलती है। लेकिन अब लगता है कि पार्टी का लक्ष्य चुनाव में जीत, जीत और सिर्फ जीत भर रह गया है। उत्तराखंड और अरुणाचल में हाल के घटनाक्रम सबके सामने हैं। इसके लिए वह अब ना नेताओं की चाल देखती है, ना चरित्र उसके लिए कोई मायना है, चेहरा भी समय के साथ गौण हो गया है। इसका ताजा उदाहरण पांच राज्यों में प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति है। चुनाव में जीत के लिए मूल्यों के बजाय जातीय समीकरण ज्यादा मायने रखने लगे हैं।


तभी तो यूपी में मायावती और मुलायम से लड़ाई के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग के दबंग मौर्य, पंजाब में आम आदमी पार्टी के पिछड़ों में बढ़ते प्रभाव से लड़ने को दलित विजय सांपला और कर्नाटक में लिंगायतों में लोकप्रिय येदियुरप्पा को सेनापति बनाया गया है। मौर्य पर हत्या, धोखाधड़ी, दंगे फैलाने, सरकारी कर्मचारियों को धमकी देने जैसे गंभीर मुकदमे चल रहे हैं। फूलपुर से मोदी लहर में अतीक अहमद जैसे बाहुबली को रिकार्ड मतों से हराने वाले मौर्य राज्य में विभिन्न गुटों और जातियों में बंटी भाजपा को एक मंच पर ला पाएंगे ये तो समय ही बताएगा।


इसी प्रकार सांपला की भी छवि पंजाब में दंबग वाली ही है। येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद मुख्यमंत्री पद ही नहीं पार्टी छोड़नी पड़ी थी। 2012 में वे फिर मोदी के साथ आ गए। कर्नाटक में उनका साथ कहें या देशव्यापी मोदी लहर, लोकसभा में तो भाजपा को सफलता मिली लेकिन विधानसभा चुनाव तक येदियुरप्पा कैसे स्वयं और पार्टी की छवि सुधार पाएंगे, अभी तो हर मन में इसे लेकर शंका ही है। इनकी परफॉरमेंस कैसी रहेगी, यह तो समय ही बताएगा लेकिन भाजपा ऐसे निर्णयों से ना सिर्फ मतदाताओं में बल्कि समर्पित कार्यकर्ताओं की नजर में भी उठ पाएगी, संदेह ही है।

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