scriptगिरती बचत और बढ़ता गोल्ड लोन गहराते संकट के संकेत | Falling savings and rising gold loans indicate a deepening crisis | Patrika News
ओपिनियन

गिरती बचत और बढ़ता गोल्ड लोन गहराते संकट के संकेत

दूसरी लहर की आर्थिक मार के आंकड़े कुछ माह में सामने आ ही जाएंगे, पर घरेलू बचत पर इसके प्रतिकूल असर के निशान लंबे समय तक रहेंगे।

नई दिल्लीJun 24, 2021 / 09:19 am

विकास गुप्ता

गिरती बचत और बढ़ता गोल्ड लोन गहराते संकट के संकेत

गिरती बचत और बढ़ता गोल्ड लोन गहराते संकट के संकेत

प्रोसेनजीत दत्ता (‘बिजनेस वर्ल्ड’ व ‘बिजनेस टुडे’ के सम्पादक रह चुके हैं)

भारतीय रिजर्व बैंक के घरेलू बचत और कर्ज के रुझान कोविड-19 महामारी के भारतीय परिवारों की वित्तीय हालत पर असर का अच्छा-खासा अनुमान देते हैं। हालांकि ये आंकड़े कुछ अंतराल के बाद आए हैं, लेकिन दूसरी लहर के असर से जुड़े आंकड़ों की अनुपलब्धता के बावजूद इनसे इतना स्पष्ट है कि तस्वीर भयावह है। आरबीआइ ने जून 2021 बुलेटिन में रेखांकित किया है कि महामारी से घरेलू बचत के स्वरूप में किस प्रकार बदलाव आया। वित्त वर्ष 20-21 की पहली तिमाही (अप्रेल से जून) में घरेलू बचत जीडीपी की 21 प्रतिशत तक बढ़ गई थी, पर तीसरी तिमाही (अक्टूबर से दिसम्बर) तक आते-आते यह 8.2 प्रतिशत रह गई। बैंकों में रखी घरेलू बचत राशि में भी गिरावट देखी गई। तीसरी तिमाही तक आते-आते घरेलू बचत जीडीपी की मात्र 3 प्रतिशत रह गई जो पिछली तिमाही में 7.7 प्रतिशत थी।

क्या नकदी घर पर ही रखी जा रही थी? आरबीआइ के अनुसार, आंकड़े बताते हैं कि अप्रेल 2021 तक जनता के पास 1.7 प्रतिशत भारतीय मुद्रा थी जो गत वर्ष इसी माह के दौरान 3.5 प्रतिशत थी। केंद्रीय बैंक का मानना है कि कोविड-19 के चलते चिकित्सकीय व्यय के कारण ऐसा हुआ है। आरबीआइ ने पारिवारिक कर्ज के जो आंकड़े जारी किए हैं, वे भी चिंतानजक हैं। मार्च माह में आई एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 20-21 की दूसरी तिमाही (जुलाई से सितम्बर) में घरेलू कर्ज में तीव्र बढ़ोतरी देखी गई, तीसरी तिमाही में यह और बढ़ा। भारत में पिछले कुछ सालों से घरेलू कर्ज बढ़ता ही जा रहा है लेकिन यह चिंताजनक नहीं है, यदि यह नई सम्पत्ति व उपभोक्ता वस्तु खरीद को प्रोत्साहित करता है। लेकिन केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के अनुसार, निजी उपभोग में कमी आई है।

आरबीआइ के आंकड़ों से घरेलू वित्तीय स्थिति फिर भी पूरी तरह स्पष्ट नहीं होती, क्योंकि बचत आंकड़ों का आधार बैंक जमा, बचत खाते और म्युचुअल फंड संबंधी आंकड़े होते हैं। इसी तरह घरेलू कर्ज के आंकड़ों का आधार व्यावसायिक बैंकों, को-ऑपरेटिव सोसाइटियों, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों व गैर वित्तीय बैंकिंग कंपनियों से लिए गए कर्ज। इसलिए आरबीआइ द्वारा जिन कर्ज आंकड़ों की गणना की जाती है, उनमें गैर संस्थानिक क्षेत्र से लिए गए ऋण शामिल नहीं हैं। यानी वे कर्ज जो लोग उधार देने वालों, जान-पहचान वालों या रिश्तेदारों से लेते हैं। इस कर्ज का ताल्लुक उस बेहद गरीब तबके से है जो कर्ज के लिए बैंक या हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों तक नहीं जा पाता।

इस वर्ष मई माह में जब दूसरी लहर चरम पर थी तब घरेलू तंगी के साक्ष्य सामने आने लगे। अस्पतालों में भर्ती होने की ऊंची लागत के चलते पारिवारिक आर्थिक तंगी की कहानियां सुनने को मिलती रहीं। इनमें से कई लोगों की आय गत वर्ष ही कम हो गई थी। इस दौरान गोल्ड लोन में भी तीव्र वृद्धि देखी गई है। यह सदा से ही भारत में मंदी का स्पष्ट संकेत रहा है क्योंकि भारत में लोग तब तक अपने आभूषण गिरवी नहीं रखते, जब तक गहरा वित्तीय संकट सामने न खड़ा हो। एक बड़ी गोल्ड लोन कंपनी के अनुसार, लोन नहीं चुकाने के कारण गिरवी रखा सोना नहीं छुड़वा पाने वालों की संख्या बढ़ रही है।

शहरी व ग्रामीण इलाकों में अत्यधिक गरीब लोगों पर दूसरी लहर की आर्थिक मार के आंकड़े अगले कुछ माह में सामने आ ही जाएंगे, पर घरेलू बचत पर इसके प्रतिकूल असर के निशान लंबे समय तक रहने वाले हैं। कारण जितनी नौकरियां लॉकडाउन में छूटीं, सभी वापस बहाल नहीं होंगी; न तो संगठित क्षेत्र में और न ही असंगठित क्षेत्र में। इसके अलावा दूसरी लहर के दौरान लिए गए कर्ज चुकाने का असर उपभोग पर पड़ेगा। ऐसे में कितने ही परिवारों का निकट भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। जाहिर है दूसरी लहर के बाद अर्थव्यवस्था को दोबारा गति देने की नीति बनाते समय सरकार को इन तथ्यों को अनदेखा नहीं करना चाहिए।

Home / Prime / Opinion / गिरती बचत और बढ़ता गोल्ड लोन गहराते संकट के संकेत

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो