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उपज का वाजिब दाम भी तो मिले काश्तकारों को

एक तरफ अनुदान दें, फिर उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिले और मंडी समितियों में सुधार भी न हो, इसकी बजाय तो यूरिया बिकने दीजिए।

Mar 18, 2018 / 09:34 am

सुनील शर्मा

indian farmers

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– सोमपाल शास्त्री

सरकार ने यूरिया पर किसानों को अनुदान का लाभ नहीं बल्कि उसकी अवधि को बढ़ाया है। केंद्र में करीब चार वर्ष से भारतीय जनता पार्टी की सरकार्र है, तब से किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। भारत सरकार द्वारा पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि पिछले चार वर्षों के सात सत्रों में किसानों की आय विभिन्न कारणों से 25 से 30 फीसदी तक घटी है। सर्वेक्षण के ही मुताबिक आय में यह कमी मुख्य रूप से मौसम की गड़बडिय़ों और उपज का लाभकारी उचित मूल्य नहीं मिलने के कारण हुई है।
भाजपा ने चुनाव घोषणापत्र में लिखा और बार-बार उसकी ओर से चुनाव अभियान में कहा भी गया, स्वामिनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार किसानों को सी-टू लागत पर 50 फीसदी जोडक़र उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाए। वह वायदा पूरा नहीं हुआ। जो समर्थन मूल्य घोषित भी हुए, चाहे वो सरसों, उड़द, मूंग, चना या सोयाबीन हो सभी के दाम घोषित समर्थन मूल्य से नीचे गिरे और सरकार ने उनकी खरीद का कोई इंतजाम नहीं किया।
इन बातों को बातों को ध्यान में रखते हुए सरकार ने यूरिया अनुदान की अवधि को 2020 तक के लिए बढ़ा भी दिया तो कोई बहुत बड़ी कृपा नहीं की। यह लाभ तो किसानों को पहले से भी दिया भी जा रहा था। अब इसे भी समझिए कि यूरिया पर अनुदान तो फर्टिलाइजर उत्पादक कंपनियों को मिलता है। इसके बदले में वे किसानों के लिए दाम कम करती हैं। योजना आयोग, नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड रिसर्च और टैरिफ कमीशन ऑफ इंडिया के अध्ययन में यह सामने आया है कि यूरिया पर मिलने वाले अनुदान का 60 फीसदी लाभ कंपनियां उठाती रही है। किसानों के हिस्से में तो केवल 40 फीसदी ही आता है। इसीलिए मेरा मानना है कि यूरिया पर अनुदान की घोषणा बिल्कुल धरातलीय है और पुडिय़ों-पुडिय़ों में देने से किसानों को लाभ होने वाला नहीं है।
यद्यपि बात सीधे लाभ अंतरण की हो रही है लेकिन यह तो जब होगा तब हकीकत सामने आएगी। फिर, किसान भी चुनाव के दौर में लिए गए सरकार के फैसलों को अच्छी तरह से समझता है। वह जानता है कि सरकार किसानों के हित के नाम पर जो कुछ नहीं कर पाई है, उसकी लीपा-पोती ही कर रही है। उससे उनका भला नहीं होने वाला।
मुख्य बात तो यह है उसे उसकी उपज का उचित दाम दिलवा दें। एक तरफ आप उसे अनुदान दें, फिर उसे न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिले और मंडी समितियों में सुधार भी न हो, इसकी बजाय तो यूरिया बिकने दीजिए। जितनी इसकी लागत आती है, उसे जोडक़र किसान को फसल का दाम दे दें, सारा झंझट ही खत्म हो जाएगा।

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