बेटियों के साथ कुछ भी गलत हो, माता-पिता के ऐसे शब्द उन्हें हिम्मत देने की बजाय, उनकी रही-सही हिम्मत भी तोड़ देते हैं। पुलिस भी आसानी से सुनती नहीं है। अगर किसी पुरुष मित्र से सहायता लेती हंै, तो बाज की तरह नजर गढ़ाए लोग घर वालों को भड़का देते हैं कि तुम्हारी लड़की का फलां लड़के से चक्कर चल रहा है। ऐसे में लड़की क्या करे? अपने रास्ते बदल ले या ख़ुद को सात तालों में छुपा ले?
‘इधर कुआं, उधर खाई,Ó शायद यह कहावत लड़कियों के लिए ही बनाई गई होगी। वे नटनी की तरह एकाग्र होकर चलने की भरसक कोशिश करें, लेकिन उनकी एकाग्रत तोडऩे और उन्हें गिराने के लिए अनगिनत तत्व मौजूद हैं।
तकनीक ने जहां ईव-टीजर्स के हाथ में हथियार बढ़ा दिए हैं, वहीं लड़कियों को बचने के लिए अपने सुरक्षा कवच भी मजबूत करने होंगे। माता-पिता का भरोसा और भावनात्मक सपोर्ट लड़कियों के लिए सबसे बड़ा सुरक्षा कवच होता है। दूसरा सुरक्षा कवच है शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनना। डिफेन्स ट्रेनिंग और चौकन्ने रहने की ट्रेनिंग।
तीसरा और अंतिम सुरक्षा कवच है प्रशासनिक सावधानी। इस तरह की घटनाओं पर पुलिस का चौकन्ना होना, फौरन हरकत में आना और जरूरी कदम उठाना ताकि अपराध को बढऩे से पहले ही रोका जा सके।