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प्रवाह: झूठ का पुलिंदा-1

हाल ही में राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने इस बांध को पुनर्जीवित करने के ठोस उपाय करने का अनुरोध करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा था। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से की गई पूछताछ के जवाब में जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता ने जो ‘जलेबीनुमा’ उत्तर दिए हैं, उनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अफसर और इंजीनियर इस मामले में अपनी कछुए जैसी चाल में जरा भी तेजी लाने का कोई इरादा नहीं रखते।

Dec 02, 2020 / 08:44 am

भुवनेश जैन

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भुवनेश जैन.

अफसरशाही जनहित के फैसलों का किस तरह भट्ठा बैठा सकती है, इसका जीता-जागता उदाहरण जयपुर का रामगढ़ बांध है। इस बांध को पुनर्जीवित करने का प्रयास करने के बजाय जल संसाधन विभाग इस मामले में न सिर्फ अदालत के आदेशों का मखौल उड़ाने में लगा हुआ है, बल्कि प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय को भी गुमराह करने से बाज नहीं आ रहा।
हाल ही में राजस्थान पत्रिका के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने इस बांध को पुनर्जीवित करने के ठोस उपाय करने का अनुरोध करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा था। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से की गई पूछताछ के जवाब में जल संसाधन विभाग के मुख्य अभियंता ने जो ‘जलेबीनुमा’ उत्तर दिए हैं, उनसे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि अफसर और इंजीनियर इस मामले में अपनी कछुए जैसी चाल में जरा भी तेजी लाने का कोई इरादा नहीं रखते। उच्च न्यायालय के निर्देशों के एक दशक बाद भी उनकी गति नौ दिन चले अढ़ाई कोस वाली है। इस गति से चले तो अगले सौ साल में भी रामगढ़ बांध को पुनर्जीवित करने का जयपुर की जनता का सपना पूरा नहीं हो सकता। बल्कि इस बीच अफसरों के कृपापात्र बांध के पूरे जलग्रहण क्षेत्र पर अवैध कब्जे कर चुके होंगे।
उच्च न्यायालय ने रामगढ़ बांध संबंधी याचिका (11153/2011) में स्पष्ट निर्देश दिए कि जलग्रहण क्षेत्र में बने एनिकटों की ऊंचाई दो मीटर तक सीमित कर दी जाए। मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में दावा किया गया है कि एनिकटों को तोड़कर ऊंचाई दो मीटर तक सीमित कर दी गई है। जलग्रहण क्षेत्र में 400 से ज्यादा एनिकट हैं। कितने एनिकटों को तोड़ा गया, इसका जवाब विभाग ने गोल कर दिया। हालांकि सब जानते हैं कि जब रामगढ़ में पानी भरा रहता था तब बिना एनिकटों के भी जलग्रहण क्षेत्र के आसपास के गांवों में जलस्तर अच्छा रहता था। अब इसी जलस्तर के नीचे जाने की बात करके अफसर एनिकटों को बनाए रखना चाहते हैं। ताकि पानी का प्रवाह रुक जाए और ‘कृपापात्रों’ के कब्जे बने रहें।
न्यायालय ने अपने निर्देशों में अतिक्रमणों को हटाकर जलग्रहण क्षेत्र में निर्माण और अन्य गतिविधियां प्रतिबंधित कर दी थीं। इस बिंदू के जवाब में पत्र में कहा गया कि इसके लिए विभाग 2012 में ही विभिन्न विभागों को परिपत्र जारी कर चुका है। परिपत्रों से फाइलों के पेट भले की भर जाएं, पर क्या अतिक्रमण हट जाएंगे या निर्माण गतिविधियां रुक जाएंगी? आज भी एक निजी मेडिकल कॉलेज जलग्रहण क्षेत्र पर कब्जा कर इन परिपत्रों की खिल्ली उड़ा रहा है। अन्य छोटे-बड़े कब्जों की तो गिनती ही नहीं है। विभाग का दावा है कि 323.30 हैक्टेयर भूमि से अतिक्रमण हटाए जा चुके हैं। किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए तो यह दावा झूठ का पुलिंदा साबित होगा। वास्तविकता यह है कि जयपुर विकास प्राधिकरण तो बांध के बहाव क्षेत्र में अपनी जमीन कम बताकर अदालत की फटकार खा चुका है। जमवारामगढ़ तहसील में जेडीए परिधि क्षेत्र के कई अतिक्रमण अब भी जयपुर की जनता को मुंह चिढ़ा रहे हैं।
(कल जारी..)

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