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रस्म अदायगी

शिक्षा विभाग के जिन अधिकारी-कर्मचारियों पर स्कूल भवनों की सुरक्षा
देखने की जिम्मेदारी है वे नियमित रूप से काम को अंजाम दें तो अभियान की
नौबत ही नहीं आए। अभिभावक भी गंभीर नहीं रहते

Feb 01, 2016 / 11:44 pm

शंकर शर्मा

Opinion news

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आग लगने के बाद कुआं खोदने’ और ‘सांप निकलने के बाद लकीर पीटने’ से कोई फायदा नहीं होता फिर भी ये ऐसी रस्म बन चुकी है जो हर हाल में निभाई जाती है। ये दिखाने के लिए कि वे जनता के कितने शुभचिंतक हैं सरकारें और उनके महकमे मानते ही नहीं हैं। यह रस्म निभाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते।

दिल्ली के एक स्कूल में पिछले दिनों एक बालक की मौत हो गई। कैसे हुई, पता लगना बाकी है। छात्र के पिता ने अपने बच्चे की मौत के लिए स्कूल प्रबंधन को दोषी ठहराया तो सरकार आ गई हरकत में। रस्म अदायगी का मिल गया एक और मौका। दिल्ली के सभी साढ़े तीन हजार स्कूलों को आनन-फानन में सुरक्षा सम्बंधी रिपोर्ट भेजने के आदेश दे डाले। शिक्षा विभाग के अधिकारियों की आपात बैठक बुलाकर गहन चिंतन-मंथन भी कर डाला।

हादसे के बाद दिल्ली सरकार ने जो किया, वह प्रशंसा योग्य है। लेकिन ये हादसा नहीं होता तो क्या स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था खंगालने की जरूरत नहीं थी। हादसे के बाद कर्मचारियों को सभी स्कूल भवनों की सुरक्षा व्यवस्था जांचने के निर्देश दिए गए लेकिन ये काम पहले भी तो हो सकता था। सवाल यहां दिल्ली या किसी राज्य सरकार का नहीं उनके काम करने के तरीकों का है। दो दशक पहले हरियाणा के मंडी डबवाली में एक स्कूल में लगी भीषण आग पांच सौ से अधिक बच्चों और उनके अभिभावकों को लील गई थी।

इस अग्निकांड ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। तब भी जांच कमेटी बनी, रिपोर्ट भी आई, कार्रवाई भी हुई लेकिन इसके बाद फिर सब कुछ सामान्य हो गया, हमेशा की तरह। बारह साल पहले तमिलनाडु के तंजावुर जिले के कुंबकोणम में फिर एक स्कूल में आग लगी और 94 नौनिहाल भस्म हो गए। स्कूल बसें आए दिन दुर्घटनाओं का शिकार होती हैं।

बच्चे मरते भी हैं, घायल भी होते हैं लेकिन व्यवस्था में स्थायी सुधार नहीं होता। कई स्कूलों में बस ड्राइवर प्रशिक्षित नहीं हैं, उनकी जांच करने की फुर्सत किसी को नहीं। न स्कूल प्रबंधन को और न शिक्षा मंत्री अथवा शिक्षा विभाग को। अभिभावक भी बस ड्राइवरों अथवा स्कूल भवनों की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर खास गंभीर नहीं रहते। स्कूलों में हादसों का मूल कारण यही है कि कुआं तभी खोदा जाता है जब आग लगती है।

शिक्षा विभाग के जिन अधिकारी-कर्मचारियों पर स्कूल भवनों की सुरक्षा देखने की जिम्मेदारी है वे नियमित रूप से काम को अंजाम दें तो अभियान की नौबत ही नहीं आए। दिल्ली के स्कूल में हुई बच्चे की मौत की जांच हो रही है। रिपोर्ट आने पर दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई हो ताकि दूसरे जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से करें।

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