इन दिनों अमरीकी मीडिया का नया चेहरा दुनिया के सामने है और इसके साथ ही लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ के बारे में दुनिया भर के मीडिया में चर्चा शुरू हो गई है। अमरीकी राष्ट्रपति वर्तमान मीडिया को इतिहास का सबसे भ्रष्ट और बेईमान मीडिया कह रहे हैं।
अमरीकी मीडिया में यह बदलाव अब यहां तक आ गया है कि खुद राष्ट्रपति ट्रंप ने अमरीकी मीडिया पर कुछ पाबंदिया लगा दीं। उन्होंने नया अर्थात सोशल मीडिया पर भी पाबंदी लगाई। कहा गया कि राष्ट्रपति सचिव स्तर के अधिकारी द्वारा देखने के बाद ही सरकार की ओर से सोशल मीडिया पर सामग्री जारी हो सकेगी।
राष्ट्रपति की इन पाबंदियों के कारण प्रेस से अमरीकी लोकतांत्रिक चेहरा गायब हो रहा है। मीडिया जिस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अगुवाई करता रहा है, वह ट्रंप ने बिल्कुल बदल दी है। ट्रंप ने इसको सबसे बुरे व्यवहार वाला मीडिया करार दिया है।
मीडिया के इन परिवर्तनों के बारे में अमरीका में विरोध शुरू हुआ है जो थमने का नाम नहीं ले रहा है। विश्व के मीडिया विशेषज्ञ भी अमरीकी मीडिया को बडे ध्यान से देख रहे हैं। एक तरफ सर्वेक्षणों में विशेषज्ञों द्वारा इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन करने वाला बताया जा रहा है।
दूसरी तरफ, डोनाल्ड ट्रंप कहते हैं कि वे केवल फर्जी खबरों के खिलाफ हैं, प्रेस की आजादी के खिलाफ नहीं है। ट्रंप पहले अमरीकी राष्टपति हैं जो मीडिया को सीधे-सीधे खुद नाम से निशाने पर ले रहे हैं। भारतीय मीडिया को भी अमरीकी मीडिया के इस तरह से परिवर्तन से सावधान होना होगा।
भारतीय मीडिया विकासशील है और जो सरकार एवं देश की जनता के बीच सेतु का कार्य कर रहा है। उसके लिए भी एक बड़ा खतरा है कि वह भी कहीं धनवान उद्योगपतियो के हाथ में ही सीमित ना हो जाए।
भारतीय मीडिया के लिए भी यह वो लम्हा है जब विश्व के दो लोकतांत्रिक देशों में मीडिया की लोगों के प्रति प्रतिबद्धता को भी देखा जाना चाहिए। परंतु यह तो स्पष्ट है कि अब मीडिया का जो स्वरूप समूचे विश्व के सामने आ रहा है वो पहले कभी नहीं था।
अब यह देखना होगा कि अभिव्यक्ति की आजादी एवं तथाकथित तानाशाही के बीच में पहली बार निशाने पर आया मीडिया किस तरह से अपनी भूमिका निभाएगा।