वर्ष1905 में जब दक्षिण अफ्रीका में प्लेग या काले ज्वर ने पैर पसारे तब महात्मा गांधी ने जो कार्य किया और उसमें वे किस तरह लोगों को जोड़ पाए, वह अनुकरणीय है। उन्होंने ऐसे सेनापति का कार्य किया, जो स्वयं योद्धा रह कर युद्धभूमि में खड़ा रहा। गांधीजी ने इंडियन ओपिनियन के 16 जनवरी 1905 के अंक में 21 ंिबंदु दिए थे, जो उस समय के प्लेग के साथ आज कोरोनाकाल के लिए भी प्रासंगिक हैं। 1935 में जब गुजरात के बोरसद में प्लेग का प्रकोप हुआ, तब सरदार पटेल एक कैंप लगा कर जमीनी रूप से कार्य कर रहे थे और गांधीजी ने भी उनके ठीक निकट शिविर लगा कर साथ में कार्य किया था।
जब घर की चारदीवारी के अंदर भी संक्रमण पहुंच ही रहा है, तो जिम्मेदार लोगों को गांधी बन कर बाहर आना ही चाहिए, ताकि बाकी लोग अंदर रह सकें। इस आधुनिक भारत में गांधी द्वारा कल्पित आत्मनिर्भरता भाव का आ सकना बहुत सी बातों पर निर्भर करता है। इसके लिए लोक लुभावन मुद्दों का लालच छोड़ कठिनाइयों का जमीनी अनुभव लेने धरती से जुडऩा होगा। इस जुड़ाव का अथ रैलियां और जुलूस नहीं, बल्कि स्वस्थ शरीर और निरोग मन के लिए गांधीवादी युद्ध लडऩे के लिए लोगों को तैयार करने का काम करना है। गांधीजी ने आत्मनिर्भर गांव का जो नारा दिया था, उस तक लौटने में हमें सौ साल लग गए।