देश में संभवत: अपनी किस्म का यह पहला मामला होगा, जहां हाईकोर्ट ने किसी मंत्री को हटाने की सिफारिश की हो। यह विडंबना ही है कि भ्रष्टाचार के ऐसे मामलों में कार्रवाई करने का जो काम सरकार का होना चाहिए, उसमें कोर्ट को आगे आना पड़ा और मंत्री को हटाने तक की बात कहनी पड़ी। बताया जा रहा है कि सरकार की ओर से इस मामले को नजरअंदाज किया जा रहा था। बाद में कोर्ट को इस मामले में दखल देकर जांच के लिए सीबीआइ को कहना पड़ा। देश में यह एक तरह से धारा चल निकली है कि सरकारें संवेदनशील मामलों में भी राजनीतिक बाध्यता के कारण अपने दायित्वों से पीछे हट जाती हैं। बाद में संबंधित पक्षकारों के कोर्ट में शरण लेने पर ऐसे मामले में न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है। लोकतंत्र में सभी स्तंभों का अपना महत्त्व है, लेकिन उसका एक पाया कमजोर दिखता है, तो जनता का चिंता होना स्वाभाविक है। बाद में जनता को न्यायपालिका से ही उम्मीद दिखती है।
युवाओं के भविष्य से जुड़े इस मामले में न्यायपालिका की भूमिका सराहनीय ही कही जाएगी। भ्रष्टाचार के मामले को लेकर मंत्री को हटाने के लिए कोर्ट को सीधे तौर पर कहना पड़ा, यह वाकई पश्चिम बंगाल सरकार के लिए सोच विचार की बात होनी चाहिए। भ्रष्टाचार देश की बड़ी समस्या बनता जा रहा है। भ्रष्टाचार के समंदर में छोटी से लेकर बड़ी मछलियां तक गोता लगाती दिख रही हैं। सरकारें राजनीतिक दबाव में कार्रवाई से पीछे हटती नजर आती हैं। सरकारों को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। अन्यथा कोर्ट तो समय-समय पर उनको आईना दिखाता ही रहता है।