scriptयह कैसा मखौल! | Govt policy and VIP behaviour in corona | Patrika News
ओपिनियन

यह कैसा मखौल!

राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री ने मंगलवार को जिस तरह का गैरजिम्मेदाराना व्यवहार किया, वह बताता है कि हमारा लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है। कोरोना पॉजीटिव होते हुए वे अस्पताल का ‘निरीक्षण’ करने निकल पड़े।

Nov 26, 2020 / 08:52 am

भुवनेश जैन

raghu_sharma.jpg
– भुवनेश जैन

राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री ने मंगलवार को जिस तरह का गैरजिम्मेदाराना व्यवहार किया, वह बताता है कि हमारा लोकतंत्र किस दिशा में जा रहा है। कोरोना पॉजीटिव होते हुए वे अस्पताल का ‘निरीक्षण’ करने निकल पड़े । वो भी अकेले नहीं , करीब आधा दर्जन चिकित्सकों की टीम के घेरे के बीच। शायद सत्ता के गुमान में वे यह भूल गए कि ऐसा करके उन्होंने न जाने कितने चिकित्सकों, नर्सिंगकर्मियों और मरीजों की जान जोखिम में डाल दी।
हैरानी की बात तो यह रही कि नियम- कानूनों से उनके इस खिलवाड़ को सरकार के नेतृत्व ने भी पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। और तो और न्यायपालिका तक ने इस मामले में स्व: प्रेरणा से प्रसंज्ञान लेने की आवश्यकता नहीं समझी। लोकतंत्र में जनप्रतिनिधियों से अपेक्षा की जाती है कि सार्वजनिक जीवन में उनका आचार-व्यवहार ऐसा रहेगा कि आम जनता उनका अनुसरण कर सके। पर यहां तो उलटा हो रहा है। जन प्रतिनिधियों का व्यवहार दिनों- दिन मनमानीपूर्ण होता जा रहा है। वे खुले -आम अपनी ही सरकार के बनाए कानूनों का मखौल उड़ाने से नहीं हिचकते। उनका आचरण सामंती युग की याद दिलाने लगा है।
आज पूरा विश्व कोरोना महामारी से त्रस्त है। महामारी को फैलने से रोकने के लिए तमाम कड़े कानून बनाए जा रहे हैं। स्वयं मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ‘नो मास्क, नो एंट्री’ जैसे अभियान को कड़ाई से चलवा रहे हैं। जयपुर सहित आठ शहरों में रात्रिकालीन कफ्र्यू लगा दिया गया है। यह सब इसलिए किया जा रहा है कि आम जनता स्थिति की गंभीरता को समझे और लापरवाही न बरते। तमाम तरह के जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। पर अफसोस तब होता है जब सरकार के वरिष्ठ मंत्री ही सरेआम उनका उल्लंघन करते नजर आते हैं। हाल ही जिला परिषद चुनाव के दौरान भी कई जनप्रतिनिधि बिना मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग के प्रचार करते नजर आए थे। जयपुर के एक विधायक ने तो बिना मास्क सड़कों पर निकलने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने पर पुलिस को ही आड़े हाथों ले लिया था। पर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।
प्रदेश के मुखिया के तौर पर यह मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी बनती है कि वे ऐसा कोई संदेश जनता में नहीं जाने दें कि उनके मंत्री और विधायक ही नियम-कानूनों का उल्लंघन कर रहे हैं। तो जनता क्यों नहीं करे। सार्वजनिक रूप से गैर जिम्मेदाराना व्यवहार करने वालों के प्रति आंखें मूंद लेना और कोई कार्रवाई नहीं करना सरकार की इच्छा शक्ति और क्षमता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाता है।

Home / Prime / Opinion / यह कैसा मखौल!

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो