यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव की खुमारी अभी उतरी भी नहीं है कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने को है। इनके नतीजे आएंगे तब तक कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू हो चुकी होंगी। उसके छह महीने बाद राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव दिसम्बर १८ में होंगे। चार महीने बाद लोकसभा चुनाव की कसरत शुरू हो जाएगी।
ऐसे में नीति आयोग ने एक नया सुझाव दे डाला। आयोग का मानना है कि एक बार नहीं, दो बार में हों देश के चुनाव। सुझाव अच्छा है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या ऐसा होना संभव है? सालों से बहस पर बहस तो हो रही है लेकिन सरकारी स्तर पर पहल होती नजर नहीं आ रही। चुनाव आयोग भी अपनी राय तो रख रहा है लेकिन ये बताने से पीछे नहीं है कि इस बारे में फैसला सरकार को ही लेना होगा। साथ ही संविधान में संशोधन भी कराना पड़ेगा।
सरकार यदि एक साथ चुनाव कराना चाहती है तो उसे पहल करनी चाहिए। राजनीतिक दलों को विश्वास में लेकर चुनाव आयोग को अपनी मंशा बताए। एक साथ चुनाव के फायदे व खामियों से देश को परिचित कराए। सिर्फ हवा में बहस से क्या फायदा? एक साथ चुनाव से देश को फायदा हो सकता हो तो फायदा उठाना चाहिए। खर्चे में भी कमी आएगी तथा आए दिन होने वाले चुनाव से भी मुक्ति मिल सकेगी। राजनीति अपनी जगह है लेकिन चुनाव सुधार के मामले पर तो राजनीतिक दल एक मंच पर आ ही सकते हैं।