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खानपान… बदलना होगा स्वास्थ्य रक्षक जौ के प्रति नजरिया

युवा वर्ग जौ के गुणों से वाकिफ हो जाए और इसे अपने खानपान में शामिल कर ले, तो उसकी सेहत अच्छी रहेगी। इससे जौ की मांग भी बढ़ेगी।स्वास्थ्यवर्धक और स्वास्थ्य रक्षक होने के बावजूद जौ खानपान से दूर हो रहा है।

नई दिल्लीApr 20, 2021 / 07:35 am

विकास गुप्ता

खानपान... बदलना होगा स्वास्थ्य रक्षक जौ के प्रति नजरिया

खानपान… बदलना होगा स्वास्थ्य रक्षक जौ के प्रति नजरिया

भुवनेश जैन, क्षेत्रीय निदेशक, नेहरू युवा केंद्र संगठन

खेती में आए बदलाव ने जहां भूख और गरीबी से लडऩे के रास्ते बनाए, वहीं परंपरागत खानपान से दूर होने के कारण इंसान की सेहत भी प्रभावित हुई है। आज कोविड के कहर की वजह से इम्यून सिस्टम को मजबूत करने की बात हो रही है। इम्यून सिस्टम को मजबूत करने और विभिन्न बीमारियों की रोकथाम में जौ अत्यंत असरकारी है, जिसकी उपेक्षा की गई है। व्यावसायिक लाभ में कमतर होने से जौ का उत्पादन क्षेत्र सिकुड़ गया है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ले रिसर्च करनाल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्ष 1950-51 में 31 लाख हेक्टेयर जमीन पर करीब 24 लाख टन जौ का उत्पादन हुआ था। वर्ष 2019 में यह घटकर 16.9 लाख टन हो गया। जौ उत्पादन का क्षेत्रफल भी 6.20 लाख हेक्टेयर तक सीमित रह गया है।

वैज्ञानिकों के अनुसार जौ में विटामिन, फास्फोरस, जिंक, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सेलेनियम, प्रोटीन, डाइटरी फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। कभी जौ के अनेक गुणों से युक्त होने के कारण ग्रामीण भारत में जौ के बिना खानपान की कल्पना नहीं की जा सकती थी। बेजड़ रोटी आम बात थी। जौ की घाट, सत्तू या खिचड़ी का इस्तेमाल भी खूब होता था। जौ है तो माना जाता था कि वैद्य और दवाई घर में है। दस्त, ज्वर, जलन, धातु रोग विकार, मधुमेह, कैंसर, हृदय रोग, कब्ज, मोटापा आदि में जौ औषधि का काम करता है। जौ इंसान की सेहत को सहेज कर रखता है। मुश्किल यह है कि स्वास्थ्यवर्धक और स्वास्थ्य रक्षक होने के बावजूद जौ खानपान से दूर हो रहा है। बुजुर्ग अब भी जौ को अपने खान-पान का हिस्सा बनाए रखे हुए हैं, लेकिन युवा वर्ग की थाली से जौ पूरी तरह से गायब हो गया है। खानपान में जौ की जगह गेंहू ने ले ली है। जौ का एमएसपी कम होने से किसान जौ की जगह गेहूं और सरसों का उत्पादन करना ज्यादा लाभकारी मानते हैं। जौ के उत्पादन में कमी से इंसान को स्वास्थ्यवर्धक अनाज और पशुओं को गुणवत्तापूर्ण चारे से वंचित होना पड़ेगा।

जलवायु परिवर्तन में भी जौ जीवित रहकर जीवन देने वाली फसल है, जलवायु परिवर्तन की चुनौती को स्वीकार करने वाली, कम पानी में भी तैयार होने वाली फसल है। जौ भी सभ्यता के विकास का हिस्सा रहा है। वर्तमान युग तक आते-आते जौ ने एक लंबी यात्रा की और सभ्यता की इस यात्रा में सहभागी रहा। युवा पीढ़ी को जौ जैसे मोटे अनाज को स्वास्थ्य के आधार पर अपनाने पर ध्यान देना चाहिए। यदि युवा वर्ग जौ के गुणों से वाकिफ हो जाए और उसे अपने खानपान में शामिल कर ले, तो इससे सेहत तो अच्छी रहेगी ही, मांग बढऩे से इसका उत्पादन भी बढ़ेगा।

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