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बेहतर चिकित्सा सेवा हर नागरिक का अधिकार

गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में 7 से 11 अगस्त के बीच साठ बच्चे मर गए। इस झकझोर देने वाली घटना से चिकित्सा व्यवस्था पर कई सवाल उठ रहे हैं

Sep 04, 2017 / 02:05 pm

सुनील शर्मा

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– वरुण गांधी, सांसद

12वीं पंचवर्षीय योजना में हेल्थकेयर के लिए 10.7 लाख करोड़ रुपए खर्च का आंकलन किया गया था, लेकिन 3.8 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए और इसमें से भी चौथे साल तक सिर्फ 30,000 करोड़ रुपए खर्च किए जा सके।
गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में 7 से 11 अगस्त के बीच साठ बच्चे मर गए। इस झकझोर देने वाली घटना से चिकित्सा व्यवस्था पर कई सवाल उठ रहे हैं। देश के अन्य राज्यों की तुलना में उत्तर प्रदेश हेल्थकेयर पर सबसे कम खर्च करने वाला राज्य है। यहां दवाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा पर प्रदेश की जीडीपी का मात्र 0.8 फीसद यानी 452 रुपए प्रति व्यक्ति खर्च किया जाता है। इसकी तुलना में वर्ष 2014 में उत्तराखंड में 1042 रुपए और देश में 647 रुपए खर्च किए गए। गांवों में प्राइमरी हेल्थ सेंटर पर डॉक्टरों के अनुमोदित पदों में से आधे खाली हैं। भारत में मां-बच्चे के स्वास्थ्य, संक्रमण और गैर-संचारी रोग का गजब घालमेल है। यहां 6.3 करोड़ लोगों को डायबिटीज है, जबकि संचारी रोगों से हर साल एक लाख पर 253 मौतें होती हैं। जबकि विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार इनका वैश्विक औसत 17८ है।
भारत में 6.5 लाख डॉक्टर हैं, जबकि 2020 तक चार लाख और डॉक्टरों की जरूरत होगी। दशकों तक्र्र हेल्थकेयर पर सालाना छह खरब रुपए तक खर्च करने के बाद भी देश की हेल्थकेयर प्रणाली न्यूनतम स्वास्थ्य सेवाएं दे पाने में नाकाम हैं। हमारे यहां अस्पतालों में बेड की उपलब्धता प्रति हजार आबादी पर 0.9 है, जबकि डब्ल्यूएचओ की सिफारिश के अनुसार यह कम से कम 3.5 होना चाहिए। 12वीं पंचवर्षीय योजना में हेल्थकेयर के लिए 10.7 लाख करोड़ रुपए खर्च का आंकलन किया गया था, लेकिन सिर्फ 3.8 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए गए और इसमें से भी चौथे साल तक सिर्फ 30,000 करोड़ रुपए खर्च किए जा सके।
सभी लोगों को प्राइमरी हेल्थकेयर सेवा दायरे के लिए हम हमारे जैसे बड़ी आबादी वाले देश चीन से प्ररेणा ले सकते हैं जिसने इस क्षेत्र में एक दशक में काफी अच्छा कार्य किया है। हेल्थकेयर फाइनेंस को लेकर भी हमें नजरिया बदलने की जरूरत है। वर्ष 2020 तक भारत में हेल्थकेयर पर होने वाला खर्च 280 अरब डॉलर पर पहुंच जाने का अनुमान है। कुल स्वास्थ्य खर्च का बमुश्किल पांच फीसदी स्वास्थ्य बीमा के दायरे में आता है। वर्ष 2015 में देश में सिर्फ 5 हेल्थकेयर बीमा कंपनियां और 17 जनरल बीमा कंपनियां हेल्थकेयर बीमा स्कीम बेच रही थीं, जबकि इसकी तुलना में ब्रिटेन में 911 कंपनियां हैं। भारत को अन्य देशों के कामयाब तरीकों से सीख लेने की जरूरत है। हेल्थकेयर सिस्टम के लिए सेस लगाकर अतिरिक्त फंड जुटाया जा सकता है। इस अनिश्चित समय में, सस्ती व समय पर मिलने वाली हेल्थकेयर हर भारतीय नागरिक का मूल अधिकार होना चाहिए।

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