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निगरानी से ही सुधरेगी सेहत

गरीबी को बढ़ाने में स्वास्थ्य पर खर्च बड़ा कारण है। इलाज के लिए व्यक्ति कुछ भी करने को तैयार रहता है, चाहे उसे उधार लेना पड़े या अपनी संपत्ति गिरवी रखनी पड़े या उसे बेचना पड़े।

Jun 27, 2018 / 10:28 am

सुनील शर्मा

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– अश्विनी महाजन, आर्थिक मामलों के जानकार

पिछले लम्बे समय से देश भर में सरकारी अस्पतालों में सुलभ उपचार के लिहाज से हालात काफी अच्छे नहीं है। इसकी बड़ी वजह यह मानी जाती रही है कि केन्द्र और राज्य सरकारें स्वास्थ्य सेवाओं की बढ़ती जरूरतों के मुकाबले इन पर बहुत कम खर्च कर रही हैं। कई राज्यों में नए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) तो खुले हैं, लेकिन जरूरत के मुताबिक वे बहुत कम हैं। संक्रामक और गैर-संक्रामक बीमारियों को लेकर सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं का अभाव ही गैर-सरकारी अस्पतालों को पनपा रहा है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2018-19 के बजट भाषण में जब यह घोषणा की कि 10 करोड़ परिवारों यानी 50 करोड़ लोगों के स्वास्थ्य पर 5 लाख रुपए तक के खर्च को सरकार वहन करेगी, तो यह मुश्किल-सा लग रहा था। वित्त मंत्री ने ‘आयुष्मान भारत’ योजना का जिक्र कर दो प्रकार की स्वास्थ्य योजनाओं की घोषणा की थी। पहली, देशभर में स्वास्थ्य एवं आरोग्य केन्द्रों की स्थापना और दूसरी, राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना। एक सरकारी अधिसूचना में योजना की विस्तृत जानकारी दी गई है।
इस योजना में जो प्रावधान हैं, वे उन लोगों को राहत देने वाले हैं जो महंगा उपचार कराने में असमर्थ हैं। पिछले सालों में सामान्य एवं विशेषज्ञता वाले इलाज के लिए बड़ी संख्या में गैर-सरकारी अस्पताल खुले हैं। सरकारी अस्पतालों में मुश्किल होते इलाज के बीच ऐसे अस्पतालों में सुविधाओं के साथ उपचार काफी महंगा है।
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2004 और 2014 के बीच ग्रामीण क्षेत्रों में अस्पताल भर्ती का औसत बिल 5,695 रुपए से बढक़र 14,855 रुपए पहुंच गया। इसी कालखंड में शहरी क्षेत्रों में यह 8,851 रुपए से बढक़र 24,456 रुपए पहुंच गया।
जहां एक ओर 1354 प्रकार के इलाज के लिए पैकेज की दरें ‘आयुष्मान भारत’ योजना के तहत तय कर दी गई हैं, तो दूसरी ओर सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना, 2011 के आधार पर ‘आयुष्मान भारत’ योजना के लाभार्थियों की सूची तैयार करने की घोषणा की गई है।
प्रस्ताव है कि 15 अगस्त 2018 को इस योजना को विधिवत पूरे देश के लिए लागू कर दिया जाए। कई सरकारी रिपोर्टों में यह बात कही गई है कि देश में गरीबी को बढ़ाने में स्वास्थ्य पर खर्च एक बड़ा कारण है। इलाज के लिए व्यक्ति स्वाभाविक रूप से कुछ भी करने को तैयार रहता है, चाहे उसे उधार लेना पड़े या अपनी संपत्ति गिरवी रखनी पड़े या उसे बेचना पड़े। स्वास्थ्य पर कुल खर्च जीडीपी के 4 प्रतिशत से भी कम है, जबकि सरकार का स्वास्थ्य पर खर्च तो जीडीपी के मात्र 1.3 प्रतिशत से भी कम है। यानी स्वास्थ्य पर लोगों की जेब से खर्च जीडीपी के 2.7 प्रतिशत तक पहुंच चुका है। ‘आयुष्मान भारत’ योजना को बाद में सर्वव्यापी बनाने की योजना भी है।
फिलहाल न केवल लगभग 40 प्रतिशत जनसंख्या को इस योजना का लाभ मिलेगा बल्कि सरकार का भी भारी खर्च इस पर होने वाला है। लगभग इसी प्रकार की योजना अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी जारी की थी, जिसे विश्व में ‘ओबामा केयर’ के नाम से जाना जाता है।
नीति आयोग और अन्य सरकारी थिंक टैंक, इस योजना का विस्तृत खाका बनाने में जुटे हैं। अभी जिन बीमारियों के इलाज के अधिकतम शुल्क तय किए गए हैं, उनसे पता चलता है कि ये शुल्क सरकारी अस्पतालों के शुल्क से भी बहुत कम है। मसलन घुटना बदलने की लागत, जो गैर-सरकारी अस्पतालों में करीब 3.5 लाख रुपए है, इस योजना के तहत मात्र 80 हजार रुपए ही रहेगी। हृदय धमनियों में स्टेंट लगाने का कुल खर्च 1.5 से 2 लाख रुपए होता है, जो अब 50 से 65 हजार रुपए के बीच रहेगा। योजना से लाभान्वित होने वालों का सरकारी व चयनित गैर-सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क उपचार हो सकेगा। इस योजना मेें चिह्नित सभी परिवारों का स्वास्थ्य बीमा भी होगा। इस संबंध में या तो बीमा कंपनियों के माध्यम से कार्य होगा, अन्यथा राज्य स्तर पर ट्रस्ट बनाकर योजना को क्रियान्वित किया जाएगा।
देश में एक को छोडक़र अन्य गैर-सरकारी बीमा कंपनियां, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भागीदारी में हैं। इन कंपनियों को बीमा कार्य सौंपा जाता है तो दो तरह के खतरे हो सकते हैं। पहला, उनके दावों को निपटाने की दर कम होने से कई जरूरतमंद योजना के लाभ से वंचित हो जाएंगे। दूसरा, ये कंपनियां अपने जोखिम को कम करने के लिए पुन:बीमा यानी री-इंश्योरेंस कंपनियों से सौदा करती हैं। भारत में कोई री-इंश्योरेंस कंपनी न होने से ये सारा धन विदेशों में जाने की आशंका है। भले ही थोड़ा-सा ज्यादा प्रीमियम देना पड़े, सरकारी कंपनियों से ही बीमा कराया जाना चाहिए।
‘आयुष्मान भारत’ योजना को लेकर उम्मीद है कि यह गरीबों के लिए संजीवनी साबित होगी। सवाल योजना के बेहतर क्रियान्वयन व निगरानी का है। तब ही लोगों की सेहत में सुधार होगा।

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