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स्वास्थ्य : सवालों के घेरे में क्यों है एफडीए

असरदार होने का प्रमाण सुनिश्चित किए बिना दवाओं को मंजूरी देने वाली प्रणाली नहीं चाहिए

नई दिल्लीJun 19, 2021 / 08:26 am

विकास गुप्ता

स्वास्थ्य : सवालों के घेरे में क्यों है एफडीए

स्वास्थ्य : सवालों के घेरे में क्यों है एफडीए

आम तौर पर किसी भी भयावह रोग के लिए फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए, अमरीकी स्वास्थ्य विभाग की संघीय एजेंसी) द्वारा किसी नई दवा को मंजूरी देना जश्न का विषय होता था, लेकिन हाल ही अल्जाइमर रोग के लिए मंजूर की गई एडुकैनुमैब कोई साधारण दवा नहीं है। इस मसले में वे सब तत्व मौजूद हैं, जो फार्मा इंडस्ट्री के नियमन को ही बीमार बताते हैं और एफडीए के आत्ममंथन की जरूरत को रेखांकित करते हैं। एफडीए पहले भी कई दवाओं को बिना परखे मंजूरी दे चुका है। दरअसल, ऐसा इसलिए हो रहा है कि ‘प्रेस्क्रिप्शन ड्रग यूजर फी एक्ट’ (पीडीयूएफए) के तहत एफडीए की दक्षता का आकलन प्रति वर्ष दवाओं की मंजूरी की संख्या, फैसले करने की तीव्रता और फार्मा उद्योग द्वारा तय डेडलाइन पर खरा उतरने के आधार पर होता है।

आखिर एडुकैनुमैब दवा में बुराई क्या है? कानून के अनुसार एफडीए केवल उन्हीं दवाओं को मंजूरी देता है, जो सुरक्षित और असरदार हों। परन्तु, एफडीए के स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति के अनुसार, इस दवा के बारे में ऐसे कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं। इसके विरोध में समिति के तीन सदस्य इस्तीफा दे चुके हैं। एफडीए एडुकैनुमैब दवा के निर्माता बायोजेन को और क्लिनिकल ट्रायल के लिए कहेगा, लेकिन 2030 तक उसके नतीजों का इंतजार करेगा। मतलब नौ साल तक लोग इस दवा का सेवन कर लेंगे, बिना यह जाने कि यह कारगर भी है कि नहीं। इसके ट्रायल के दौरान भागीदारों को एडुकैनुमैब की हाई डोज देने पर 40 प्रतिशत के मस्तिष्क में सूजन और ब्लीडिंग की शिकायत पाई गई।

इस महंगी दवा की खरीद से अमरीकी स्वास्थ्य खर्च में सालाना 112 बिलियन डॉलर का इजाफा होने की संभावना है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि एफडीए मानकों पर खरा न उतरा हो। 2016 में एफडीए ने मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के लिए एटिप्लिरसेन दवा को मंजूरी दे दी, जबकि इससे इलाज के कोई साक्ष्य नहीं हैं। इसके अलावा एफडीए कारगर होने के प्रमाण के बिना स्त्री रोगों व कैंसर की भी दवाएं मंजूर कर चुका है।

विधेयक ‘ट्वेंटी फस्र्ट सेंचुरी क्योर्स एक्ट’, जिसका सदन में दोनों ओर बैठे राजनेताओं ने समर्थन किया, और जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने हस्ताक्षर कर कानून बनाया, के चलते नई दवाओं को मंजूरी देने के सख्त सुरक्षा व प्रभावशीलता मानक लागू करने की एफडीए की क्षमता और क्षीण हुई है। एक कानून की मंशा भले ही मरीजों तक नई दवाएं जल्द पहुंचाने की रही हो, लेकिन वास्तविक असर यह पड़ा है कि जनता को असुरक्षित व बेअसर दवाओं के सेवन से बचाने की एफडीए की ताकत कम हुई है। एफडीए पर फार्मा उद्योग को लाभ पहुंचाने के आरोप लगते रहे हैं। इसके आयुक्त स्कॉट गॉटलिएब इस्तीफा देने के कुछ समय बाद ही फाइजर के बोर्ड में शामिल हो गए। उनके बाद के आयुक्त स्टीफन हेन ने मॉडर्ना को वित्तीय मदद देने वाली कम्पनी जॉइन कर ली। एडुकैनुमैब जैसी दवाओं को मंजूरी दिए जाना किसी के हित में नहीं है। यदि हम अल्जाइमर रोग का प्रभावी उपचार चाहते हैं तो नवाचार को प्रोत्साहन देने वाली प्रणाली तैयार करनी ही होगी।

ग्रेग गोंजाल्विस, (एसोसिएट प्रोफेसर, एपिडिमियोलॉजी, येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ)
रेशमा रामचंद्रन, (फिजिशियन फेलो, नेशनल क्लिनिशियन स्कॉलर्स प्रोग्राम, येल स्कूल ऑफ मेडिसिन)
क्रिस्टोफर मोर्टन, (उप निदेशक, टेक्नोलॉजी लॉ एंड पॉलिसी क्लिनिक, न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ लॉ)
जोसेफ एस. रॉस, (प्रोफेसर, जनरल मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ, येल स्कूल ऑफ मेडिसिन)
द वॉशिंगटन पोस्ट

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