scriptजल संकट की समस्या से कैसे निपटा जा सकता है? | How can the problem of water crisis be tackled? | Patrika News
ओपिनियन

जल संकट की समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?

पत्रिकायन में सवाल पूछा गया था। पाठकों की मिलीजुली प्रतिक्रियाएं आईं, पेश हैं चुनिंदा प्रतिक्रियाएं।

Jun 09, 2021 / 05:40 pm

Gyan Chand Patni

जल संकट की समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?

जल संकट की समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?

कुओं-तालाबों का जीर्णोद्धार करवाया जाए
देश में ग्रामीण क्षेत्रों में जल समस्या की विकट स्थिति है। राजस्थान के जालौर जिले के रानीवाड़ा के धोरों में प्यास से ६ साल की मासूम बालिका की मौत हो गई। गांव में हैंडपंपों में जल स्तर काफी नीचे चला गया है या रीत गया है। तालाब, बावड़ी व कुएं सूखे पड़े हैं या निम्न जल स्तर है, जो मानव व पशु-पक्षियों की पहुंच से दूर है। इनके जीर्णोद्धार का कार्य सरकार एवं जन सहयोग से पूरा करना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में नदियों पर एनीकट बनाकर नदियों के गहराई वाले पानी को लिफ्ट करके 3५ – 40 गांव की सामूहिक पेयजल योजनाएं बनाई जानी चाहिए। लोगों को जल संरक्षण के बारे में जागरूक करना चाहिए। अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाकर उनका संरक्षण करना चाहिए, ताकि वायुमंडल में नमी होने पर बादल आकर्षित होकर वर्षा करें। जल प्रदूषण नहीं होना चाहिए। घरों में स्नान करते समय बाल्टी का प्रयोग करें। टूथब्रश के समय नल की टोटी को कम खोलें या मग के पानी का उपयोग करें। खेतों की सिंचाई उचित प्रबंधन से हो। वाहनों को धोने की बजाय, किसी पात्र में पानी लेकर कपड़े से पोंछे। आवश्यक नहीं होने पर समय पर बिजली की मोटर को बंद कर दें। सार्वजनिक नलों को चालू करने के बाद बंद नहीं करते, पानी व्यर्थ चला जाता है। यह प्रवृत्ति बदलनी होगी। वाटर हार्वेस्टिंग द्वारा जल संचय की व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि भूगर्भीय जलस्तर बढ़े। वर्षा का पानी किसान अपने खेत के किसी हिस्से में इकट्ठा कर सकता है।
-छोटू लाल मालव, अंता, बारां
………………………………..
स्वयं से करें शुरुआत
जल है तो कल है। यदि हमें कल देखना है, तो उसकी शुरुआत हमें आज से ही करनी होगी। जल संकट को कम करने के लिए हमें पानी की बर्बादी, जल बाहुल्य क्षेत्र में अत्यधिक पानी की सप्लाई को तथा अंधाधुंध अनियंत्रित भूजल दोहन के लिए बोरिंग बनाने पर रोक लगानी होगी। साथ ही रसोई घर के पानी को घर के मिट्टी युक्त कच्चे स्थानों पर निस्तारण करना होगा। घर में यदि एसी, आरओ और ऑटोमेटिक वॉशिंग मशीन है, तो उससे निकलने वाले पानी का इस्तेमाल करना चाहिए। वर्षा जल व्यर्थ न जाए, इसका ध्यान रखना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्र में सामुदायिक जल प्रबंधन कार्यक्रम तथा ड्रिप इरिगेशन को बढ़ावा देकर और तालाब, ताल तलैया आदि का निर्माण कर हम भूमिगत जल स्तर में वृद्धि कर सकते हैं। गिरते भूजल की स्थिति से निपटने के लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम का भी प्रयोग अधिक से अधिक करना चाहिए और जन जागरूकता अभियान के साथ अत्यधिक वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए। कपड़ों की बर्बादी कम से कम करनी होगी, क्योंकि इनके निर्माण में बहुत अधिक जल का प्रयोग होता है। हमें अपनी पारंपरिक तथा प्राकृतिक अवधारणा के साथ जल स्रोतों का संरक्षण करना चाहिए।
-एकता शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़
……………………………
रोकनी होगी जल की बर्बादी
जल ही जीवन है। चिंताजनक बात यह है कि जल संकट बढ़ता जा रहा है। भारत के कई राज्यों और ग्रामीण इलाकों में पानी की कमी की समस्या गहराती जा रही है। लोगों को कई किलोमीटर पैदल चलकर पानी लाना पड़ता है। जल का सही उपयोग करके हम इस संकट से निपट सकते हैं। सबसे पहले हमें नदियों, तालाबों, कुओं तथा अन्य पानी के स्रोतों को प्रदूषित होने से बचाना होगा। घरों में नहाने, बर्तन धोने और शौचालय में बहुत पानी इस्तेमाल होता है। वहां हमें जल का उपयोग समझदारी से करना चाहिए और व्यर्थ में जल की बर्बादी को रोकना होगा। खेतों में सिंचाई के लिए फव्वारे का उपयोग करें। जल संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। बारिश के जल को एकत्रित करने की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। बारिश के पानी को संरक्षित रखने के लिए शहरों और गांव के आस-पास छोटे-छोटे तालाब और नहर बनानी चाहिए। धरती में जल की कमी होती जा रही है। इसलिए भूगर्भ जल संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा। साथ ही घरों में भी पानी की बचत करने के लिए नल को अच्छे से बंद रखें। घर में या कहीं आसपास किसी पानी की पाइप लाइन में लीकेज हो तो तुरंत सही करवाएं। जल सभी के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है इसलिए जल संकट की समस्या का निस्तारण बहुत आवश्यक है ।
-नीलिमा जैन, उदयपुर
………………………
वर्षा जल बचाने का समय
समय आ गया है कि अब हम वर्षा का जल अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें, क्योंकि जल का कोई विकल्प नहीं है। इसकी एक-एक बूंद अमृत है। आधारभूत जल संकट की समस्या के समाधान के लिए अधिक दक्ष सिंचाई पद्धतियों को अपनाने की आवश्यकता हैं। रेन वाटर हार्वेस्टिंग द्वारा जल का संचयन किया जाना चाहिए। वर्षा जल को सतह पर संग्रहित करने के लिए टैंकों, तालाबों और चेक डैम आदि की व्यवस्था किया जाना चाहिए। झीलों, नदियों और समुद्र जैसे प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण करके जल संकट की समस्या से निपटा जा सकता है।
-सोहन लाल देवांगन, समोदा आरंग, रायपुर, छत्तीसगढ़
……………………….
वर्षा जल संचय ही जल संकट का समाधान
यूं तो संपूर्ण पृथ्वी लगभग 70 प्रतिशत जल से घिरी हुई हैं, पर मात्र दो से तीन प्रतिशत जल ही पीने योग्य है। शेष समुद्र का खारा पानी है, जो पीने लायक ही नहीं है। जिस प्रकार धरती के गर्भ से अंधाधुंध जल का दोहन हो रहा है, निश्चित ही आने वाले समय में एक युद्ध पेयजल के लिए हो सकता है। समय रहते हमें इसके लिए जागरूक होना होगा , सर्वप्रथम जो भूजल है उसका उपयोग जितनी आवश्यकता है, उतना ही करना होगा। नदियां, झीलें, तालाब एवं सार्वजनिक कुएं पेयजल के लिए काफी उपयोगी हंै। इन्हें प्रदूषित होने से बचाना होगा, वहीं प्रकृति द्वारा मिलने वाले वर्षा के जल को संरक्षित करके वर्ष भर उपयोग में लाया जा सकता है। रेन वाटर हार्वेस्टिंग को सभी के लिए अनिवार्य किया जाना चाहिए। वृक्ष वर्षा के जल को संचित करते हैं। इसलिए वृक्षारोपण कार्यक्रम को बढ़ावा देना चाहिए। इसके अलावा स्कूल-कॉलेज में जल संचयन विषय पर प्रतियोगिताएं आयोजित की जानी चाहिए। सार्वजनिक नलों में पानी बहुत व्यर्थ होता है। इन नलों की टोटियां ठीक रहनी चाहिए।
-लक्ष्मण नायडू, रायपुर, छत्तीसगढ़
…………………………….
समझना होगा जल का महत्त्व
जल इंसान की सबसे आवश्यक जरूरतों में से एक है। बिना जल के जीवन सम्भव नहीं है। देश में आज भी एक बड़ी आबादी को स्वच्छ पेयजल नसीब नहीं है। यह बेहद शर्मनाक है। देश में जल जीवन मिशन जैसी योजनाओं को निर्धारित समय सीमा में पूरा करके लागू किया जाए। इससे हर घर तक नल का शुद्ध पानी उपलब्ध हो पाएगा। प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण किया जाए। पुराने समय के बांध, बावड़ी,कुओं और तालाबों की दुर्दशा हो रही हैं। हम प्रकृति के प्रति एकदम लापरवाह हो गए हैं। जब तक जल का वास्तविक मूल्य नहीं समझ आएगा, हम इसका दोहन ही करेंगे। अधिक से अधिक पेड़ लगाए जाएं। जन जागरूकता फैलाई जाए। जल के दुरुपयोग को रोका जाए। प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण किया जाए। वर्षा जल संचयन की सुनियोजित योजना बनाकर उस पर अमल किया जाए। जल के महत्व के पाठ, प्राथमिक स्तर पर पाठ्यक्रम में सम्मिलित किए जाएं।
-अंकित शर्मा ‘पीपलवा’, जयपुर
…………………………………..
भू-जल स्तर बढ़ाने पर ध्यान दिया जाए
लगातार पानी का गिरता स्तर हमारे लिए बेहद चिंता का विषय बनता जा रहा है। आज गर्मी में क्या हालत होती है, सभी जानते हैं। गर्मी में थोड़ी बात जल समस्या को लेकर हो जाती है, बरसात आते ही सब भूल जाते हैं। भू-जल का स्तर भी लगातार नीचे जा रहा है। पानी अनमोल है। इसके बावजूद हम इसे संभालने – सहेजने के लिए गंभीर नहीं हंै। काफी कम पानी ही संग्रहित कर पाते हैं। करोड़ों लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। हम पानी का उपयोग तो कर लेते हैं, लेकिन उसे वापस पृथ्वी को नहीं देते। नदी, तालाब, कुएं, बावड़ी सूख रहे हैं। जल संकट से निपटने का सबसे अच्छा तरीका वर्षा जल संचयन है। परंपरागत जल स्रोतों का जीर्णोद्धार का कार्य कर जल का संग्रह किया जाए। वाटर हार्वेस्टिंग भी जरूरी है। जल अपने आप में अमृत है। इसका दुरुपयोग रोकना होग। एक- एक बूंद सहेजने की जरूरत है।
-साजिद अली, चंदन नगर, इंदौर
………………………
अमृतम् जलम् जैसे अभियान चलाए जाएं
भूजल स्तर में हो रही लगातार कमी के कारण वर्तमान में जल संकट काफी बढ़ता जा रहा है। वर्षा जल पुनर्भरण करने और जल के दुरुपयोग को रोकने के लिए सरकार वर्षों से प्रयासरत है। जनता को जागरूक करने के लिए करोड़ों रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए जाते रहे हैं और कई नियम भी बनते रहे हैं। किंतु दुर्भाग्य है कि हालात सुधरने की बजाय बिगड़ते जा रहे हैं। हम अपनी जीवनशैली में जल के दुरुपयोग को नहीं रोक पा रहे हैं। अत: सरकार को ऐसी योजनाओं का निर्माण करना चाहिए, जो जमीनी स्तर पर भी काम करें। इसका एक जीवंत उदाहरण पत्रिका का ‘अमृतम् जलम्’ अभियान है, जो वर्षों से वर्षा जल पुनर्भरण के लिए काम कर रहा है और इसके सार्थक परिणाम भी नजर आते हैं। अगर हमें अपना और आने वाली पीढ़ी का कल सुरक्षित करना है तो निश्चित तौर पर जल को बचाने के तरीकों पर अमल भी करना होगा।
– पंकज कुमावत, जयपुर
…………………………….
परंपरागत उपायों को अपनाया जाए
वर्तमान में हमने अपने पारंपरिक व प्राकृतिक संसाधनों और पानी सहेजने की तकनीकों व तरीकों को भुला दिया है। स्थानीय रवायतों को बिसरा दिया और लोगों के परंपरागत ज्ञान और समझ को हाशिये पर धकेल दिया। पढ़े-लिखे लोगों ने समझा कि उन्हें अनपढ़ों के अर्जित ज्ञान से कोई सरोकार नहीं और उनके किताबी ज्ञान की बराबरी वे कैसे कर सकते हैं। गौरतलब है कि समाज सदियों से जल स्रोतों से जरूरत के लिए पानी लेता रहा, जल स्रोतों में पानी बढ़ाने का ध्यान भी रखता रहा, बारिश के पानी को सहेजता रहा है। समाज में पानी बचाने, सहेजने और उसकी समझ की कई ऐसी तकनीकें मौजूद रही हैं, जो आधुनिक तकनीकी ज्ञान के मुकाबले आज भी ज्यादा कारगर साबित हो सकती हंै। बस जरूरत है तो उन पर अमल करने की।
– डॉ.अजिता शर्मा, उदयपुर
जल संकट का समाधान
व्यक्तिगत स्तर पर देश का हर नागरिक अपने घर में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बनाकर वर्षा के जल का संचय कर सकता है। स्थानीय निकाय इसमें मदद करे और जागरूकता फैलाएं। इसी प्रकार गांव, कस्बों और शहर में भी वर्षा के अमूल्य जल को तालाबों ,पोखरों और छोटे-छोटे बांधों में डाइवर्ट करना चाहिए। बड़े पैमाने पर तालाब और छोटे बांध बनवाने चाहिए, जहां जल को संचित किया जा सकता है।
-गोकलेंद्र त्रिपाठी, भिलाईनगर, छत्तीसगढ़
…………………….
वर्षा जल संग्रहण पर ध्यान दें
जल संकट की समस्या से उबरने के लिए वर्षा जल का अधिक से अधिक संग्रहण किया जाना आवश्यक है, क्योंकि जल का कोई विकल्प नहीं है। इसकी एक- एक बूंद अमृत है। केंद्र और राज्य सरकारों को नदी जोड़ो परियोजना पर अधिक बल देना चाहिए। सभी आमजनों को घरों में जल की बर्बादी रोकनी चाहिए और आने वाली पीढ़ी को जल के महत्व को समझाना चाहिए। सरकार को गंदे जल को शुद्ध करने की तकनीकी विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए।
-शिवओम पाराशर, अहमदाबाद, गुजरात
………………………
नदियों को जोड़ने का काम आगे बढ़ाया जाए
वर्षा जल को जमीन में संचित कर हम वाटर लेवल को आसानी से बढ़ा सकते हैं। तालाब, बांध, बावड़ियों के भरने में आ रही रुकावट को दूर करना है। पेड़-पौधे लगाकर भूमिगत जल स्तर बढ़ा सकते हैं। सिंचाई के लिए ड्रिप व स्प्रिंकल पद्धति को बढ़ावा दिया जाए। इसके लिए किसानों को अनुदान देना चाहिए। नदियों को जोड़कर हम आपदा को अवसर में बदल सकते हैं।
– प्रभु सिंह, झोटवाड़ा, जयपुर
…………………..
इजरायल को आदर्श मानें
इजरायल के लोग जल भंडारों को एक बैंक की तरह समझते हैं। वे जितना जल भूगर्भ से निकालते हैं, उतनी ही जलनिधि वैज्ञानिक विधि द्वारा जल के मूल स्रोत को पुनः:लौटा भी देते हैं। हमें भी अब ऐसी ही तकनीक अपनानी होगी। यदि हम जल की एक-एक बूंद को जीवन का आधार मानकर उसका सोच-समझकर उपयोग करेंगे, तो बेहतर जीवन दर्शन की ओर उन्मुख हो सकेंगे। ऐसे में हमें हमारे परंपरागत जल स्रोतों की उपेक्षा नहीं करनी है। लोगों को बेहतरीन जल प्रबंधन एवं संरक्षण के प्रति सजग करने से दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही इस समस्या का समाधान हो सकेगा।
-डॉ. प्रियदर्शी ओझा, उदयपुर
…………………
पानी को सहेजने पर दें ध्यान
हमारे समाज में पानी बचाने और सहेजने की ऐसी तकनीक मौजूद रही है, जो आधुनिक तकनीकी ज्ञान के मुकाबले ज्यादा कारगर है। पारंपरिक तरीकों से पानी सहेजने के कुछ छोटे और खरे उपाय जैसे स्थानीय पारंपरिक जल स्रोतों को सुरक्षित करने, बरसाती पानी का ज्यादा से ज्यादा उपयोग करने, नदी-नालों के छोटे बांध और तालाब बनाने आदि में समाज और सरकार दोनों को दिलचस्पी लेनी चाहिए। जल-जंगल और जमीन के आपसी संबंधों को समझने की नए सिरे से कोशिश भी करनी होगी। बड़ी लागत की योजनाएं बना लेने या पानी के लिए हमेशा नदियों और जमीनी पानी पर निर्भर रहने भर से जल संकट का निदान संभव नहीं है।
-नरेश सुथार, बीकानेर
………………………….
जल ही जीवन है
जल ही जीवन है इस बात को सबको समझना होगा तथा हर घर में वर्षा जल का अधिक से अधिक संचय हो। आजकल पानी की बर्बादी ज्यादा होती है। वाहन धोने, कूलर, वाशिंग मशीन में ज्यादा पानी बर्बाद होता है पानी की बर्बादी रोकी जानी चाहिए।
-कुसुम कोठारी, मदनगंज किशनगढ़
…………………..
जन जागरूकता अभियान जरूरी
यदि हमने अपनी आदतों में सुधार नहीं किया तो जल संकट भविष्य में बढ़ता ही रहेगा । इसे नियंत्रित करना अति आवश्यक हो गया है। लोगों को जागरूक होकर जल के दुरुपयोग पर रोक लगानी होगी। ज्यादा से ज्यादा लोगों को जल संरक्षण अभियानों से जोड़ कर जल संकट की समस्या को हल करने की कोशिश की जानी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति में जल के प्रति संवेदनशील भावना विकसित करनी होगी।
—मनोज जैन, टोंक
………………………………
व्यर्थ न जाए वर्षा जल
सरकार ने घरों में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाने की अपील की थी, लेकिन खर्च से बचने के लिए ज्यादातर लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। इसका साधारण उपाय है कि पंचायत और स्थानीय निकाय यह जिम्मा उठाएं। सड़क पर आने वाले वर्षा जल को नजदीक की किसी बावड़ी, तालाब , बोरवेल या कुएं तक पहुंचाने की व्यवस्था करे।
-निर्मल पोकरणा, बेंगलूरु
………………………
जरूरी है जल का सदुपयोग
जल ही कल है, जल जीवन का आधार है लेकिन बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में जल संसाधन बहुत कम हैं और क्षेत्रीय विषमता के कारण कहीं तो प्रचुर मात्रा में जल है, तो कही पीने योग्य पानी की भी बहुत कमी है। इस जल संकट से निपटने के लिए हमें जागरूक होना बहुत जरूरी है। हमें अपने परिवार, समाज और आस-पास के लोगों को बढ़ते जल संकट के बारे में जागरूक करना होगा और जल के महत्व को समझाना होगा। स्कूल के पाठ्यक्रम में जल के महत्व को शामिल करना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ी इसका सदुपयोग करे। साथ ही वर्षा के पानी को टांकों, बावड़ी, जोहड़ और एनीकट का निर्माण कर एकत्रित करना होगा ताकि वर्षा जल का सदुपयोग हो सके।
-सुनीता सिंह, जयपुर
…………………
जल संरक्षण पर ध्यान देने का समय
आजादी के बाद हमने हर क्षेत्र में खूब उन्नति की है, इसमें दो राय नहीं है। हमने खाद्य उत्पादन, शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार व सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल की हंै। बावजूद इसके हम जल प्रबंधन व हरियाली बढ़ाने के क्षेत्र में पिछड़ गए। नतीजे में हमें जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। जल संरक्षण की तरफ ध्यान नहीं देने से जल संकट भविष्य के लिए बड़ी चुनौती बनने वाला है। जल का कुशलतम उपयोग, प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे बावड़ियों के संरक्षण, कम पानी व कम समय में पकने वाली फसलों का चुनाव, वर्षा जल को विभिन्न तरीकों से एकत्रित कर हम एक बेहतर कल का निर्माण कर सकते हैं। आज के हालात में जल संरक्षण ही एकमात्र उपाय है, जो हमें और हमारी आने वाली पीढ़ी को इस संकट से बचा सकता है। यदि हमने जल संरक्षण की ओर ध्यान नहीं दिया तो हमारी आने वाली पीढ़ी को एक-एक बूंद जल के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।
– दिव्यांश अमित शर्मा, श्रीमाधोपुर, सीकर
……………………..
जल है तो जीवन है
जल की कमी एक महान विपत्ति बनने वाली है। इसका लोगों को तनिक भी अहसास नहीं है। आने वाले समय में पानी को लेकर महा विनाशकारी युद्ध हो सकते हैं। हम जब जब पानी का उपयोग करें तब यह बात ध्यान में रहे की हम एक बहुमूल्य वस्तु का उपयोग कर रहें है। अत: बहुत ही सावधानी बरतनी चाहिए, हर पल। रोजमर्रा के काम में कम पानी का इस्तेमाल करें। मुद्दे की बात हमें पानी के उपयोग में पूरी पूरी सावधानी रखना चाहिए। ‘जल है तो जीवन है” एकदम सही कहा गया है।
राजेन्द्र कुमार सुराणा, रायपुर
…………………………..
जल बचाना जन-जन की जिम्मेदारी
सम्पूर्ण विश्व जल संकट की समस्या से जूझ रहा हैं। जैसे जैसे जंगल कटते जा रहे है, जल संकट गहराता जा रहा है। हालत यह है कि गंगा-यमुना के पानी में भी ऑक्सीजन लेवल कम हो गया है। इसलिए कई स्थानों पर ये पानी पीने लायक नहीं रहा। जल संकट दिनों दिन गहराता जा रहा है। जल संकट से निजात पाने के लिए जल को बचाना है। जल को बचाना जन जन की जिम्मेदारी है। बारिश के पानी को संरक्षित करने के लिए तालाब बनवाने चाहिए। कुल्ला करने के लिए नल के बजाय मग का प्रयोग करना चाहिए। नहाने के लिए शॉवर के बजाय बाल्टी और मग का प्रयोग करना चाहिए। वाशिंग मशीन का प्रयोग तभी करें जब ज्यादा कपड़े हों।
-विजय गुप्ता, अजमेर

Home / Prime / Opinion / जल संकट की समस्या से कैसे निपटा जा सकता है?

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो