अगला प्रश्न पूछ लिया, ‘भाई इस मकान की वसीयत कौन कर सकता है। मैं कि मेरी पत्नी?’ मैंने कहा, ‘अब आप सही मुद्दे पर आए हैं। भले ही घर भाभी के नाम पर है, पर वसीयत आप कर सकते हैं, पर एक बात का ध्यान रखें कि अपनी आयकर विवरणी में इस मकान का उल्लेख करें और वसीयत में भी इस बात का जिक्र करें कि ये घर मैंने स्वयं के पैसों से पत्नी के नाम में खरीदा था, जिसे मेरी आयकर विवरणी में दर्शाया गया है। ये वाक्य आपके भविष्य के सारे विवाद खत्म कर देगा। मैंने उन्हें उदाहरण दिया कि एक क्लाइंट की वसीयत में ये वाक्य नहीं डाला गया। उसकी मृत्यु के कुछ समय बाद पत्नी की भी मृत्यु हो गई। जिस बेटी को उन्होंने वसीयत से बाहर किया था बेटी-दामाद ने वसीयत को चुनौती दे डाली ये कहते हुए कि ये सम्पत्ति पिता की थी ही नहीं, और मां भी अब इस दुनिया में नहीं है। मां ने कोई वसीयत नहीं की इसलिए अब इस सम्पत्ति का बँटवारा सभी में होगा। मामला पेचीदा हो गया है कोर्ट में विचाराधीन है। आज का सबक ये कि पत्नी के नाम सम्पत्ति लें, लेकिन आयकर विवरणी में उसे अपनी सम्पत्ति दिखाएं। वसीयत में भी इस बात का पूर्ण खुलासा जरूरी है।