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ओपिनियन

कानून का क्रियान्वयन

सिर्फ तल्ख टिप्पणियों और सख्त कानूनों से बच्चों के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाएं रुकनी होती तो कब की रुक जाती। मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार के बाद उनकी हत्या समाज में आज आम बात हो चली है लेकिन उसे रोकने की दिशा में सार्थक प्रयास नजर नहीं आ रहे।

Oct 28, 2015 / 04:55 am

afjal

सिर्फ तल्ख टिप्पणियों और सख्त कानूनों से बच्चों के साथ होने वाली बलात्कार की घटनाएं रुकनी होती तो कब की रुक जाती। 

मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार के बाद उनकी हत्या समाज में आज आम बात हो चली है लेकिन उसे रोकने की दिशा में सार्थक प्रयास नजर नहीं आ रहे। 

दूसरी अदालतों की तरह मद्रास हाईकोर्ट ने भी एक तल्ख टिप्पणी कर डाली। कोर्ट ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि बच्चियों के साथ रेप करने वालों को नपुंसक बना दिया जाना चाहिए। 

इससे पहले भी अनेक अदालतें और संगठन इसी तरह की मांग कर चुके हैं लेकिन नतीजा ‘ढाक के तीन पातÓ रहा है। 

पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार के बाद उसकी हत्या की खबर हमारे समाज और सरकार को कुंभकर्णी नींद से जागने को मजबूर क्यों नहीं करती? हम कब तक कैंडल मार्च निकालकर अपने गुस्से का इजहार करते रहेंगे। कोई भी सभ्य समाज ऐसी घटनाओं को स्वीकार कर ही नहीं सकता। बहुत हो लीं तल्ख टिप्पणियां और बन लिए सख्त कानून। 

अब तो ये चाहिए कि ऐसे जघन्य अपराध करने वालों को चौराहे पर फांसी देने का कानून बने। देश में दस लोगों को सरेआम फांसी पर लटकाया नहीं कि नतीजा दिखने लगेगा। ऐसी सजा बेशक असभ्य समाज की सोच मानी जाए लेकिन इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प नजर भी नहीं आ रहा।

 हो सकता है ऐसी सजा के खिलाफ कुछ संगठन खड़े हो जाएं जो हर बात पर मानवाधिकारों की दुहाई देते रहते हैं। ऐसे लोगों के विरोध की परवाह न सरकार को करनी चाहिए और न समाज को। मानवाधिकार उनके लिए होते हैं जो मानव हों। 

बलात्कार के बाद मासूमों की हत्या तो ऐसा राक्षसी कृत्य है जिसकी जितनी निंदा की जाए कम है। ऐसे अपराध करने वालों के समर्थन में खड़े होने वाले स्वयं भी मानव कहलाने के अधिकारी नहीं हैं। ऐसे अपराधों को रोकने के लिए देश में सख्त कानून तो बन गए, अब तो जरूरत उनको समयबद्ध लागू करने की है। 

जैसे ऐसे मामलों का निपटारा 3 से 6 माह में हो जाएगा। आरोपी को अपील करने का अधिकार भी दो बार से अधिक नहीं होगा। ऐसा करने में कोई अड़चन भी नहीं होनी चाहिए। 

ये मुद्दा राजनीति का भी नहीं है। यह तो विशुद्ध रूप से इंसानी भावनाओं का सवाल है। उम्मीद है सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर सरकार के साथ खड़े नजर आएंगे।

सख्त कानून तो बन गए, अब जरूरत उनको लागू करने की है। जैसे ऐसे मामलों का निपटारा 3 से 6 माह में हो जाएगा। आरोपी को अपील का अधिकार भी दो बार से अधिक नहीं होगा।

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