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भारत से संबंधों में सुधार से कम हो सकता है पाकिस्तान का संकट

भारत के साथ संबंधों में सुधार से पाकिस्तान को अपनी स्थिरता में मदद मिल सकती है। अगर ये रिश्ते सुखद हो जाते हैं, तो पाकिस्तान को ही सबसे ज्यादा लाभ होगा। अन्यथा ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके चलते पाकिस्तान आसानी से तबाही से निकलने की उम्मीद कर सके।

May 19, 2022 / 08:44 pm

Patrika Desk

भारत से संबंधों में सुधार से कम हो सकता है संकट

भारत से संबंधों में सुधार से कम हो सकता है संकट


अरुण जोशी
(दक्षिण एशियाई कूटनीतिक मामलों के जानकार)

दस अप्रेल की अल-सुबह, यह अनुमान लगाया गया था कि प्रधानमंत्री इमरान खान की लोकतांत्रिक तरीके से सत्ता से बेदखली के बाद पाकिस्तान में राजनीतिक उथल-पुथल का लम्बा दौर खत्म हो गया है। पर ऐसा नहीं हुआ। लगभग 22 करोड़ की आबादी वाले इस देश में राष्ट्र को अस्थिर करने वाले कई कारक हैं। पाकिस्तान आज दो अंक की मुद्रास्फीति का सामना कर रहा है। गरीबों तक भोजन और स्वच्छ पानी की पहुंच नहीं है। सरकार कुछ भी करने में इसलिए असमर्थ है, क्योंकि जिस गठबंधन सरकार ने इमरान को सत्ताच्युत किया, उसके सहयोगी दलों के भीतर ही समस्याओं का अम्बार है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार चलाने के तरीकों और प्राथमिकताएं तय करने के मामले में कई असहमतियां हैं। चुनाव कब कराए जाएं, इस पर भी मतैक्य नहीं हो पाया है। कुछ लोग जल्द चुनाव कराने के पक्ष में हैं, तो अन्य 2023 की तय समय सीमा में चुनाव कराने का दबाव डाल रहे हैं। इस राजनीतिक कशमकश को लगातार आतंकी हमलों ने और भी उलझा दिया है। सबसे ज्यादा दिल दहलाने वाली घटना, कराची विश्वविद्यालय में आत्मघाती हमला था, जिसमें बलूचिस्तान के एक हमलावर ने चार लोगों की हत्या कर दी थी। मृतकों में तीन चीनी शिक्षक थे। इसके बाद चीन ने पाकिस्तान की कटु आलोचना करते हुए घटना की निंदा की है।
पाकिस्तान के लिए, चीन उसकी लाइफ-लाइन है। बीजिंग उसकी आर्थिक, सैन्य रूप से सहायता तो करता ही है, रणनीतिक मामलों में भी उसके साथ खड़ा है। राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक हरेक ने चीन के सम्मुख आदर और सम्मान जताया और वादा किया कि हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। बम विस्फोट की घटना 26 अप्रेल को हुई और जांचकर्ताओं को अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है कि हमले के सूत्रधारों को कैसे पकड़ा जाए। एक अन्य समस्या, तालिबान-शासित अफगानिस्तान के साथ बिगड़ते रिश्तों को लेकर भी है। पाकिस्तान ने तालिबान की अफगानिस्तान में सत्ता हथियाने में मदद की, अमरीका को वहां से निकलना पड़ा और अब यह दांव उल्टा पड़ गया। अफगान-तालिबान ने आतंकी गुट तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान यानी टीटीपी को वश में करने के लिए कुछ नहीं किया। अफगान तालिबान की तरह ही टीटीपी भी सख्त इस्लामी शासन चाहता है। पाकिस्तान ऐसी हालत में जकड़ गया है, जहां वह कई समस्याओं से घिरा हुआ है। एक समस्या तो है नहीं, जिसे प्राथमिकता से निपटाया जाए। हर समस्या दूसरी समस्या के साथ जकड़ी हुई है। सब चीजें इतनी जटिल हैं कि किसी भी सरकार के लिए सभी मुद्दों को एकसाथ हल करना असम्भव है। परेशानी तो यह है कि पाकिस्तान न तो सामान्य राष्ट्र है और न ही वहां के हालात सामान्य हैं, चुनौतियां बेहद जटिल हैं। इसलिए यह उम्मीद करना अव्यावहारिक होगा कि पाकिस्तान जल्द ही खुद में सुधार कर सकता है।
पाकिस्तान जब तक अपनी खुद की स्थिरता पर एकमत नहीं होता, अपने सभी राजनीतिक मतभेदों को दूर नहीं करता, आर्थिक अपराधों पर लगाम के लिए सामन्तों और अभिजात्य वर्ग पर कानूनी कार्रवाई नहीं करता, तब तक सकारात्मकता आने की बहुत ही कम उम्मीद है। उसे भारत के साथ रिश्तों को सुगम बनाने के वास्ते कुछ अतिरिक्त उपाय करने होंगे जैसे- भारत की चिंताओं को दूर करना। इससे न केवल भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते बहाल होंगे, बल्कि भारत से चीनी और कपास के सस्ते आयात की संभावना भी बढ़ेगी। भारत के साथ संबंधों में सुधार से पाकिस्तान को अपनी स्थिरता में मदद मिल सकती है। अगर ये रिश्ते सुखद हो जाते हैं, तो पाकिस्तान को ही सबसे ज्यादा लाभ होगा। अन्यथा ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके चलते पाकिस्तान आसानी से तबाही से निकलने की उम्मीद कर सके।

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