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रूमान से यथार्थ के गीतकार

नीरज की काव्य कला की विशेषता है रूमानियत से यथार्थ का सफर। उनके गीत प्रेम और रोमांस की भावुक कल्पना से तैयार होते थे, जिन्हें वह यथार्थ तक ले आते थे।

Jul 22, 2018 / 01:16 pm

सुनील शर्मा

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– पल्लव, कवि और आलोचक

साहित्य को जनसाधारण तक पहुंचाने में जिन विधाओं ने सचमुच बड़ा काम किया है उनमें गीत सर्वोपरि है। हिंदी साहित्य के आधुनिक काल में गीत राष्ट्रीय आंदोलन के साथ आया। कवि सम्मेलनों के द्वारा गीत-कविताएं जन-जन तक पहुंची और इस तरह उन लोगों में भी साहित्यिक अभिरुचि पैदा करने में सफल रहीं जो साहित्य के गहरे पाठक नहीं थे। स्वातंत्रयोत्तर भारत में कवि सम्मेलनों के उतार और नई कविता के प्रभावशाली साहित्यिक आंदोलन के बावजूद जिन गीतकारों को प्रतिष्ठा मिली, उनमें नीरज का नाम ऊपर है। गुरुवार को दिल्ली के एम्स में 93 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया।
उत्तर प्रदेश के जिला इटावा में 4 जनवरी 1925 को जन्मे गोपालदास नीरज पहले शख्स रहे, जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो बार 1991 में पद्मश्री और 2007 में पद्मभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्हें ‘यश भारती पुरस्कार’ और ‘विश्व उर्दू पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। महाविद्यालय शिक्षक के रूप में शुरुआत कर वे शीघ्र ही फिल्मों की तरफ मुड़ गए, जहां उन्हें अपार यश मिला।
सत्तर का दशक उनके लिए यादगार रहा, जब लगातार तीन सालों तक उनके गीतों को फिल्मफेयर अवार्ड मिले। ये गाने थे – ‘काल का पहिया घूमे रे भइया!’ (फिल्म – चन्दा और बिजली, 1970), ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं’ (फिल्म – पहचान, 1971), ‘ए भाई! जरा देख के चलो’ (फिल्म – मेरा नाम जोकर, 1972)। अपनी शैली के मशहूर देवानंद के साथ उनका तालमेल खूब लोकप्रिय हुआ, जब ‘प्रेम पुजारी’ के लिए उन्होंने ‘शोखियों में घोला जाए फूलों का शबाब’ और ‘गैंबलर’ के लिए ‘दिल आज शायर है’ जैसे सदाबहार गीत लिखे। फिल्मों के अलावा उनके रचना-संसार में विशेष रूप से ‘दर्द दिया है’, ‘आसावरी’, ‘मुक्तकी’, ‘कारवां गुजर गया’ (गीत संग्रह), ‘लिख-लिख भेजत पाती’ (पत्र संकलन), पंत-कला, काव्य और दर्शन (आलोचना) को याद किया जाता है।
नीरज की काव्य कला की विशेषता है रूमानियत से यथार्थ का सफर। उनके गीत प्रेम और रोमांस की भावुक कल्पना से तैयार होते थे, जिन्हें वह यथार्थ तक ले आते थे। ‘अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए, जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए’ या ‘कारवां गुजर गया’ जैसी पंक्तियां इसकी गवाही देती हैं।

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